अखबार मालिकों के संगठन ‘आईएनएस’ की मांग- पत्रकारों के लिये वेतनबोर्ड की व्यवस्था खत्म हो

बेंगलुरु : देश के समाचारपत्रों के सबसे बड़े संगठन इंडियन न्यूज़पेपर्स सोसाइटी (आईएनएस) ने सरकार से अपील की कि वे प्रिंट मीडिया की आर्थिक व्यवहार्यता के लिये अखबारों के पत्रकार एवं गैरपत्रकार कर्मियों के लिये वेतनबोर्ड की प्रणाली समाप्त कर दे और सरकारी विज्ञापनों की दरों में वृद्धि करे. आईएनएस की 76वीं वार्षिक महासभा को संबोधित करते हुए संगठन के अध्यक्ष किरण बी वडोदरिया ने कहा कि सरकार को प्रिंट मीडिया की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये सकारात्मक कदम उठाने चाहिये. मजीठिया वेतनबोर्ड की सिफारिशों के कारण वेतन में असहनीय वृद्धि और सरकारी विज्ञापनों के बजट में कटौती के कारण देश के तमाम छोटे एवं मझोले प्रकाशनों के बंद होने का खतरा पैदा हो गया है. श्री वडोदरिया ने कहा कि दशकों पुरानी वेतन निर्धारित करने की संवैधानिक प्रणाली को जारी रखने की कोई आवश्यकता नहीं है.

पत्रकारिता के गिरते स्तर के लिए मीडिया हाउसों के मालिक जिम्मेदार : आनंद बहादुर सिंह

वाराणसी। राजा टोडरमल के वंशज व सन्मार्ग अख़बार के 84 वर्षीय संपादक आनंद बहादुर सिंह ने देश में पत्रकारिता के गिरते स्तर के लिए मीडिया हाऊसों के मालिकों को जमकर कोसा। उन्होंने कहा कि अखबारों और चैनेलों पर समाचार के प्रकाशन और प्रसारण में अब पत्रकारों की सहभागिता कम हो गयी है।

निवेशकों ने पर्ल्स ग्रुप के मालिक का घर घेरा, भुगतान के लिए विरोध प्रदर्शन

सैकड़ों निवेशकों ने पिछले दिनो अपना लाखों का बकाया भुगतान न करने पर पर्ल्स ग्रुप के मालिक निर्मल सिंह भंगू के फेज-7 स्थित घर को घेर लिया।

न्यूज़ एक्सप्रेस के मालिक इस पोस्ट को पढ़ रहे हों तो गुजारिश है, दुआएँ लो, बद्दुआएँ नहीं

भड़ास4मिडिया के माध्यम से मैं आज अपना ये दर्द बाँट रहा हूँ । ये दर्द मेरा ही नहीं बल्कि उन सभी दोस्तों का है, जो इस दर्द से गुजर चुके हैं । अगर न्यूज़ एक्सप्रेस के मालिक इस पोस्ट को पढ़ रहे हों तो उनसे मेरी गुजारिश है कि दुआएँ लो, बद दुआएँ नहीं । आखिर कब तक हिंदुस्तान में दिन रात भूके प्यासे भागदौड़ करने वाले न्यूज़ चैनल स्ट्रिंगरों का शोषण होता रहेगा । वो स्ट्रिंगर जो अपने परिवार को छोड़ पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ जान हथेली पर रख इस आस में चैनल पर खबरें भेजता है कि अपने परिवार का पालन पोषण कर सके।

मीडिया का आपातकाल : उजाले के भीतर छिपा है गहन अंधेरा

पहले थोड़ा आपातकाल की यादें ताजा कर दूं। आपातकाल के दौरान एक कविता लिखी गई, ठेठ अवधी में- माई आन्‍हर बाबू आन्‍हर, हमे छोड़ कुल भाई आन्‍हर, केके केके दिया देखाईं, बिजली एस भौजाई आन्‍हर…. यह कविता यदि आप नहीं समझ पा रहे हैं तो इसका अर्थ भी बता देता हूं। मां अंधी है, पिता अंधे हैं। भाई भी अंधे हैं। किसको किसको दीपक दिखाऊं, बिजली की तरह चमक दमक वाली भाभी भी तो अंधी हैं। आपातकाल के दौरान इस कविता में निहित लक्षणा, व्‍यंजना मोटी बुद्धि के लोगों की समझ में नहीं आई और कवि का कुछ बुरा नहीं हुआ।

अखबार मालिकों को सीएम और पीएम से बांस की आशंका थी तो जाकर लोट गए उनके चरणों में

जो हमें बांस करता है, हम उसी को नमस्‍कार करते हैं। इस समय सूर्य ने बांस कर रखा है तो सारी दुनिया उसे नमस्‍कार कर रही है। यही नहीं, जहां से हमें बांस होने की आशंका होती है, हम वहां भी नमस्‍कार करने से नहीं चूकते हैं। अखबार मालिकों को सीएम और पीएम से बांस की आशंका थी, तो लोट गए चरणों में। छाप दिया बड़ा-बड़ा इंटरव्‍यू। कर्मचारियों को जब अखबार मालिकों के बिचौलियों से बांस होने की आशंका थी तो घेर-घेर कर नमस्‍कार करते थे। …और जब दैनिक जागरण के कर्मचारियों ने बांस किया तो प्रबंधन ने सूर्य नमस्‍कार करना शुरू कर दिया और चार लोगों को वापस ले लिया। जिन लोगों ने बांस नहीं किया, उनको बाहर का रास्‍ता दिखा दिया। हमें बांस की आदत सी पड़ गई है।

राज बड़े गहरे हैं : राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह के साथ ‘नेशनल दुनिया’ के मालिक की जोड़ीदारी

इस तस्वीर में आप पंकज सिंह को नेशनल दुनिया अखबार के मालिक शैलेंद्र भदौरिया के साथ देख सकते है। पंकज सिंह भाजपा के महासचिव हैं और गृह मंत्री राजनाथ सिंह के सुपुत्र हैं। पंकज सिंह के चलते राजनाथ सिंह सवालों के घेरे में भी आ चुके हैं।

मजीठिया वेतनमानः मीडिया मालिकों पर बहुत भारी पड़ सकती है पत्रकारों की लड़ाई

28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर पत्रकारों में हताशा है। कारण मालिकों को जेल नहीं हुई, जो जायज है। उम्मीद तो यही लगाई जा रही थी कि सुको मजीठिया वेज बोर्ड के लिए कोई समिति गठित कर सकती है और अवमानना के मामले में मालिकों को गिरफ्तार कर सकती है, लेकिन फैसला आधा ही हुआ। खैर अब आगे जो होने वाला है वह मालिकों को लिए रूह कंपा देने वाला होगा। क्योंकि श्रम अधिकारी की रिपोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट सीधे वसूली पत्रक जारी कर सकता है। इसके लिए जरूरी है पत्रकार एकजुट हों और हर संस्थान में अपना संगठन बनाएं। नहीं तो लाभ मिलते-मिलते हाथ से चला जाएगा। 

अखबार मालिकों को क्‍यों नहीं घेरते टीवी न्‍यूज एंकर !

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अखबार मालिक मजीठिया वेतनमान नहीं दे रहे हैं। पत्रकारों की हालत खराब है। वे भी किसान परिवार से आते हैं। केंद्र सरकार किसानों की भूमि भी हड़प लेना चाहती है। ऐसे में कल पत्रकार भी आत्‍महत्‍या करने लगेंगे। कारपोरेट मीडिया आसानी से कह देगा-इसके लिए आम आदमी पार्टी जिम्‍मेदार है।

अपने मीडियाकर्मियों को ठेकेदार का आदमी बताकर बाहर निकाल रहा है अमर उजाला प्रबंधन!

अमर उजाला ने मजीठिया के डर से कर्मचारियों को ठेकेदार का कर्मचारी बताकर बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया है। अभी तक यह खेल पीटीएस डिपार्टमेंट में शुरू किया गया है, लेकिन विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि यह नियम जल्द ही संपादकीय विभाग में भी लागू कर दिया जाएगा। पिछले साल मई महीने में मजीठिया वेज बोर्ड का लेटर बांटने के बाद अखबार प्रबंधन कुछ ऐसी नीतियां अपना रहा है ताकि उसे मजीठिया वेज बोर्ड के नाम पर धेला भी न देना पड़े। कुछ महीने पहले माहेश्वरी परिवार के खासमखास बताए जाने वाले और मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब किताब करने वाले एचआर प्रमुख को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।

मोदी जी को चिट्ठी : न्यूज़ चैनल के इनामी बदमाश मालिक को हवाई जहाज उड़ाने का NOC कैसे मिला?

आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी

भारत सरकार, नई दिल्ली

विषय : न्यूज़ चैनल के इनामी बदमाश मालिक को हवाई जहाज उड़ाने का NOC कैसे मिला !

महोदय,

रजत शर्मा और सुभाष चंद्रा : पत्रकार का मालिक और मालिक का पत्रकार होना

अखबारों और केबल की दुनिया में यह बात आम है, लेकिन सेटेलाइट चैनलों की दुनिया में इसे अजूबा ही कहा जाएगा कि मालिक पत्रकार की तरह बनना चाहे और मालिक पत्रकार की तरह। रजत शर्मा का करियर पत्रकार के रूप में शुरू हुआ और आज वे इंडिया टीवी के सर्वेसर्वा है। दूसरी तरफ सुभाष चंद्रा है जिन्होंने बहुुत छोटे से स्तर पर कारोबार शुरू किया और पैकेजिंग की दुनिया से टीवी की दुनिया में आए। रजत शर्मा कभी इनके चैनल पर कार्यक्रम प्रस्तुत किया करते थे। इतने बरसों में यह अंतर आया है कि रजत शर्मा सुभाष चंद्रा की तरह मालिक बन गए और सुभाष चंद्रा रजत शर्मा की तरह टीवी प्रेजेंटर बनने की कोशिश कर रहे है। चैनलों का मालिक होने का फायदा सुभाष चंद्रा को जरूर है, लेकिन इससे वे रजत शर्मा की बराबरी नहीं कर सकते।

भास्कर चेयरमैन रमेश चंद्र अग्रवाल पर शादी का झांसा देकर देश-विदेश में रेप करने का आरोप (देखें पीड़िता की याचिका)

डीबी कार्प यानि भास्कर समूह के चेयरमैन रमेश चंद्र अग्रवाल के खिलाफ एक महिला ने शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है. इस बाबत उसने पहले पुलिस केस करने के लिए आवेदन दिया पर जब पुलिस वालों ने इतने बड़े व्यावसायिक शख्स रमेश चंद्र अग्रवाल के खिलाफ मुकदमा लिखने से मना कर दिया तो पीड़िता को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. कोर्ट में पीड़िता ने रमेश चंद्र अग्रवाल पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं. पीड़िता का कहना है कि रमेश चंद्र अग्रवाल ने उसे पहले शादी का झांसा दिया. कई जगहों पर शादी रचाने का स्वांग किया. इसके बाद वह लगातार संभोग, सहवास, बलात्कार करता रहा.

‘पंजाब केसरी’ की खबर में ‘दैनिक सवेरा’ अखबार के मालिक को ‘गंजा’ कहकर संबोधित किया गया!

पंजाब में पंजाब केसरी और दैनिक सवेरा अखबारों के बीच आपसी लड़ाई खूब होती रहती है. ये दोनों अखबार एक दूसरे की पोल खोलते रहते हैं और इसकी खबरें भी अखबार में छापते रहते हैं. पंजाब केसरी की वेबसाइट पर एक खबर फोटो समेत है जिसमें एक दैनिक अखबार की प्रतियां फूंके जाने की बात बताई गई है. दैनिक सवेरा के प्रति पंजाब केसरी के गुस्से को इस बात से समझा जा सकता है कि खबर में कहीं दैनिक सवेरा का नाम भले ही न हो लेकिन उसके मालिक को गंजा कहकर संबोधित किया गया है. फोटो से जाहिर हो जा रहा है कि अखबार दैनिक सवेरा ही है. कम से कम एक दूसरे को गंजा या काला या नाटा कहकर बिलो द बेल्ट वार तो नहीं ही की जानी चाहिए. बाकी, पोल खोल खबरों से असल फायदा जनता को, पाठकों को होता है जिन्हें बड़े-बड़ों की छोटी-चीप हरकतों के बारे में मालूमात होता रहता है. नीचे पंजाब केसरी में प्रकाशित तस्वीर और तस्वीर है.

-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया

अखबारी दुनिया के मालिकों व इस के कर्मचारियों की ज़िंदगी में झांकना हो तो ‘हारमोनियम के हज़ार टुकड़े’ उपन्यास ज़रूर पढ़ें

DN Pandey

दयानंद पांडेय

मैं दयानंद जी के ‘बांसगांव की मुनमुन’ उपन्यास को भी पढ़ चुकी हूं जो एक सामाजिक उपन्यास है। समय के साथ हर चीज़ में परिवर्तन होता रहा है। चाहें वो प्रकृति हो या इंसान, सामाजिक रीति-रिवाज या किसी व्यावसायिक संस्था से जुड़ी धारणाएं। इस उपन्यास ‘हारमोनियम के हज़ार टुकड़े’ में समय के बदलते परिवेश में अखबारी व्यवस्था का बदलता रूप दिखाया गया है। जिस किसी भी को अखबारी दुनिया के मालिकों व इस के कर्मचारियों की ज़िंदगी में झांकना हो उन से मेरा कहना है कि वो इस उपन्यास को ज़रूर पढ़ें। उपन्यास के आरंभ में सालों पहले अस्सी के दशक की दुनिया की झलक देखने को मिलती है जो आज के अखबारों की दुनिया से बिलकुल अलग थी। धीरे-धीरे अखबार के मालिक, संपादक और कर्मचारियों के संबंधों में बदलते समय की आवाज़  गूंजने लगती है।