उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की सरगर्मी बढ़ने लगी है। 2017 के विधान सभा चुनाव से पूर्व पंचायत चुनाव तमाम उन राजनैतिक दलों के आकाओं लिये अपनी ताकत नापने का पैमाना बन सकता है जो 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के हाथों बुरी तरह पिटने के बाद भी 2017 में यूपी की सत्ता हासिल करने का सपना देख रहे हैं।लोकसभा चुनाव में बुरी तरफ ‘पिटे’ सपा-बसपा,कांगे्रस और अन्य छोटी-छोटी राजनैतिक पार्टियों के लिये भी पंचायत चुनाव अमर बूटी साबित हो सकते हैं।पंचायत चुनाव की बिसात गांव की चैपालों पर सजती है और इसकी गूंज घर के भीतर तक सुनाई देती है।
अन्य तमाम चुनावों के मुकाबले पंचायत चुनाव का मिजाज काफी बदल होता है। इन चुनावों में रिश्ते अक्सर तार-तार हो जाते हैं।पंचायत चुनाव में इतना घालमेल होता है कि राजनैतिक दल अक्सर इन चुनावों से दूरी बनाकर चलते हैं। पंचायत चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, गाँव के नुक्क्ड़ और चैपालों में संभावित प्रत्याशियों के नामों पर बहस तेज होने लगी हैं। देश में पंचायत चुनावों में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने की नीति से महिलाओं के लिए हर प्रदेश में 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान हैं। इस वजह से पर्दे में रहने वाली महिलाएं भी पंचायत चुनाव में खूब ‘ताल’ ठोंकती हैं।एक बात और पंचायत चुनाव में सपा के सामाजिक समीकरण ओबैसी की पार्टी आल इंडिया इत्तेहादुल मुसलमीन के नए दांव से प्रभावित हो सकते हैं।मुसलमीन पार्टी मुस्लिम व दलित गठजोड़ बना कर पंचायत चुनाव में उतरने की तैयारी में है। उसका यह प्रयोग अगर थोड़ा भी कारगर रहा तो चुनाव में सत्तारुढ़ दल के लिए मुश्किल आ सकती है।
सब जानते हैं कि पंचायत चुनाव त्रिस्तरीय होते हैं जिसमे जिला पंचायत, ब्लाक पंचायत और ग्राम पंचायत शामिल हैं।ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत चुनाव का उतना ही महत्व हैं जितना एक विधानसभा या लोकसभा चुनाव का होता हैं।यूपी में पंचायत चुनाव हमेशा संवेदनशील मुद्दा रहा हैं।तमाम कठोर कदम उठाये जाने के बाद भी इन चुनावों में खून-खराबा,दारू,पैसा सब चलता हैं। प्रशासन के लिए पंचायत चुनाव हर बार एक चुनौती होते हैं। पंचायत चुनावों में महिला आरक्षण के बाद महिलाओं की सहभागिता गाँव की राजनीति में पुरुषों के बराबर हो गई हैं,लेकिन यह सिक्के का एक ही पहलू है। अगर प्रधान पद पर बैठ जाना ही सहभागिता हैं तो यकीनन महिलायें आगे आई हैं। पर महिलाओं के प्रधान बनने से क्या महिलाओं में जागृति आई हैं?यह सवाल अनसुलझा हुआ है।महिला आरक्षित सीटों पर महिला प्रधान जरूर हैं पर वो महज एक रबर स्टाम्प के रूप में कार्य करती हैं।सारे फैसले और जिम्मेदारी प्रधानपति ही निभाते हैं।किसी गाँव में शायद ही कोई ऐसी महिला प्रधान होगी जो अपने अधिकारों के विषय में जानकारी रखती हो।एक बार फिर से उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव आ गए हैं। फिर से महिला आरक्षित सीट होंगी?लेकिन क्या इस बार स्थिति सुधरेगी या फिर से एक बार फिर वह रबर स्टाम्प ही होंगी? यह सवाल फिर से उठने लगा है।
निदेशक पंचायतीराज, उत्तर प्रदेश उदयवीर सिंह का कहना है कि प्रदेश में ग्राम पंचायतों के चुनाव अपने नियत समय सितंबर और अक्टूबर, 2015 में हो जाएंगे। पंचायतीराज विभाग ने समय पर चुनाव कराने के लिए कमर कस ली है।प्रदेश के सत्तर जिलों का परिसीमन करा लिया गया है। मात्र पांच जिलों का बाकी है। इस समय वार्ड बनाए जा रहे हैं, पंचायतीराज विभाग समय से चुनाव करा लेगा।अगर सब ठीक रहा तो क्षेत्र पंचायत के चुनाव जनवरी और जिला पंचायत के चुनाव फरवरी में होंगे।70 जिलों के परिसीमन के बाद प्रदेश में 7,122 ग्राम पंचायतें बढ़ गई हैं। जबकि संतकबीरनगर, गोंडा, संभल, मुरादाबाद और गौतमबुद्धनगर में परिसीमन नहीं हो पाया है। इस तरह परिसीमन के बाद अब प्रदेश में कुल 58,036 पंचायतें हो गई हैं। ग्राम पंचायतों के आरक्षण के बारे बताते हुए निदेशक ने कहा, ”पिछड़ा वर्ग के रैपिड सर्वे के बाद ही निर्धारित होगा कि कौन सी पंचायत का क्या आरक्षण होगा। यह रैपिड सर्वे परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद शुरू होगा। इसमें करीब एक माह का वक्त लगेगा। उदयवीर सिंह यादव ने कहा ग्राम पंचायतों के लिए आरक्षण 27 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति 21 प्रतिशत और महिलाओं का 33 प्रतिशत से कम नहीं होगा, भले ही यह ज्यादा हो जाए।
बात राजनैतिक दलों की कि जाये तो इस बार सबको पंचायत चुनाव की चिंता सता रही है।गैर भाजपाई दलों के लिये खोई हुई ताकत हासिल करने का पंचायत चुना महत्वपूर्ण मौका है।शायद इसी लिये सपा-बसपा अभी से पंचायत चुनाव की तैयारी में जुट गये हैं।वहीं भाजपा जिसे 2014 से पूर्व तक शहरी पार्टी का दर्जा दिया जाता था,उसकी परीक्षा भी इन चुनावों में हो सकती है।लोकसभा चुनाव के समय गाॅव-देहात से भाजपा को जबर्दस्त वोट मिले थे।बात कांगे्रस की कि जाये तो वह अभी इस स्थिति में नहीं लग रही है पंचायत चुनाव उसके लिये ‘मील का पत्थर’ साबित हों,लेकिन यह तय है कि पंचायत चुनाव में करीब-करीब सभी दल युवाओं को मैदान में उतारना चाहते हैं ताकि 65 प्रतिशत युवाओं के वोट में उनको अच्छी भागेदारी मिल सके।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने एलान कर दिया है कि पंचायत चुनाव में जिला पंचायत अध्यक्षों को बीएसपी अपने चुनाव चिंह ‘हाथी’पर लड़ाएगी। वहीं बाकी पदों के लिये उनकी पार्टी को जो निर्दलीय प्रत्याशी बसपा की विचारधारा के करीब लगेगा उसे बसपा का समर्थन हासिल हो जायेगा।बसपा पंचायत चुनाव के बहाने विधानसभा चुनाव की तैयारियों का आंकलन कर लेना चाहती है। पंचायत चुनाव से पहले बीएसपी अपने आप को बूथ स्तर पर मजबूती करने के अलावा उन नेताओं को बाहर का भी रास्ता दिखा सकती है जो पार्टी में फिट नहीं बैठ रहे हैं।बसपा नेताओं का मानना है कि अगर बूथ स्तर पर काम मजबूत होगा तो इसका फायदा विधानसभा चुनाव में भी मिलेगा। पार्टी नेताओं का कहना है कि अधिकतर जिलों में बूथ स्तर का काम लगभग पूरा हो गया है। जिन जिलों में बूथ स्तर पर कमिटियां बनाने का काम बाकी है, वहां जून के अंत तक काम पूरा हो जाएगा।बसपा के प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर का कहना है जून के अंत तक बूथ स्तर का काम पूरा होने के बाद जुलाई से पंचायत चुनाव के लिए मायावती पूरे प्रदेश में अभियान चलाएंगी। जुलाई के पहले हफ्ते में मायावती पार्टी व संगठन के लोगों की बैठक कर पंचायत चुनाव की रणनीति तैयार करेंगी। पिछले माह(अप्रैल) हुई बैठक में मायावती ने साफ कर दिया है कि पंचायत चुनाव में भी युवाओं को वरीयता दी जाएगी। पंचायत की तैयारियों को देखते हुए पार्टी निष्क्रिय कार्यकर्ताओं व नेताओं को 30 जून तक पार्टी से बाहर करने का काम करेगी।पार्टी पंचायत चुनाव पूरे दमखम से लड़ेगी। इसके लिए पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती की ओर से निर्देश मिल चुका है। जून तक संगठन का काम होगा। उसके बाद पंचायत चुनाव की पूरी रणनीति तैयार की जाएगी।
बात समाजवादी पार्टी की कि जाये तो सपा 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए अपने दमखम की परख पंचायत चुनाव के जरिए कर लेना चाहती है।सपा नेतृत्व जानता है कि पंचायत चुनाव में उसकी भागेदारी जिनती अधिक रहेगी,उसका उतना ही फायदा विधान सभा चुनाव में मिलेगा। पंचायत चुनाव के जरिए समाजवादी पार्टी ग्रामीण क्षेत्रों में युवा नेताओं की फौज तैयार करना चाह रही है।इससे उसे विधानसभा चुनाव में जिताऊ उम्मीदवार तलाशने में भी आसानी रहेगी।सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव खुद त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर खासे गंभीर हैं। इन चुनावों के जरिए ग्रामीण इलाकों में सपा सरकार के कामकाज के असर की भी परख होनी है। यही नहीं सरकार किसान वर्ष भी मना रही है। कुछ समय पहले मुलायम सिंह यादव ने बूथ लेवल तक संगठन को चुस्त दुरुस्त करने पर जोर दिया था। पार्टी पदाधिकारियों , खास कर युवा नेताओं को गांवों में जाकर सरकार के अच्छे कामों को प्रचार करने व गांव वालों की समस्याएं सुनने की नसीहत दी थी। पार्टी इन चुनावों को लेकर इसलिए भी गंभीर है कि इन चुनावों में बढ़त हासिल होने से उसे मिशन-2017 फतेह करने का आत्म विश्वास आएगा। विधानसभा उप-चुनाव में जीत हासिल होने से पार्टी को लोकसभा चुनाव की हार का सदमा काफी हद तक कम हो चुका है।