हरियाणा में भूमि घोटाला पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा से पूछे गए सवाल पर तिलमिलाये वाड्रा ने पत्रकारों से जो बदसलूकी की उसकी गर्मी 24 घंटे तक कायम है और शायद आगे भी कायम रहेगी। प्रायः हर चैनल एएनआई का माईक झटकने का सीन हजार बार दिखा चुका है। एक पत्रकार के रूप में हम वाड्रा के कृत्य की कड़े से कड़े शब्दों में निन्दा करते हैं। पत्रकारों को स्वतंत्र रूप से कार्य करते रहने की आजादी की पुरजोर मांग करते हैं। शनिवार के प्रकरण में घटना से बड़ी राजनीति है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता।
सोनिया गांधी के दामाद को इच्छा को कोई कांग्रेस शासित प्रदेश का मुख्यमंत्री क्यों और कैसे इनकार करेगा। शायद इतनी कुव्वत किसी कांग्रेसी मुख्यमंत्री में नहीं हो सकती। इसलिए हरियाणा या किसी दूसरे राज्य में जहां भी राबर्ट वाड्रा की रुचि रही होगी, ना का सवाल ही नहीं हो सकता। यदि बिना सोचे-समझे हां है, तो घपले से भी इनकार नहीं हो सकता। वर्तमान में बदली राजनीतिक परिस्थितियों में कांग्रेस पार्टी के दामाद को घेरने का कोई मौका भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारें नहीं छोड़ेगी. भारतीय मीडिया इस प्रकरण में सरकार के प्रति निष्ठावान होने का अवसर देखे तो आश्चर्य क्या है? क्या कथित राष्ट्रीय मीडिया ने छोटे शहरों, गांव-देहात, कस्बों में पत्रकारों पर आये दिन होने वाली घटनाओं दुर्घटनाओं को कभी अपनी खबर बनाया भी है?
मीडिया संस्थानों और उसके बड़े पत्रकारों के लिए गांव देहात का पत्रकार किसी कीड़े मकोड़े से अधिक अहमियत नहीं रखता। पत्रकारों की किसी भी बड़ी यूनियन ने किसी संस्थान से नहीं पूछा कि वह कस्बों गांवों के पत्रकारों के लिए क्या नीति रखती है? उनके शोषण को तो मानों ईश्वरी देन मान लिया गया है। क्षेत्रीय अखबारों ने वर्षों से काम कर रहे पत्रकार से पत्रकार न होने और शैकिया तौर पर समाचार भेजने के अनुरोध का 10 रुपये के स्टाम्प पर अवैधानिक रुप से शपथपत्र भरवाया है। इसे संपादक जबरन भरवाता है। उनके वेतन का तो सवाल नहीं उठता। मानदेय, चिकित्सा, स्वास्थ्य और आर्थिकी सब भगवान भरोसे है।
छोटे शहरों, कस्बों और गांव देहात के पत्रकारों की समस्या का यहां उल्लेख करने का कतई मतलब नहीं है कि राबर्ट वाड्रा के मामले में कोई ढील बरती जाए। राबर्ट वाड्रा के खिलाफ जांच हो और उसे दंडित किया जाए। साथ ही हम वाड्रा मीडिया दुर्व्यवहार प्रकरण को दिखाने वाले संस्थानों, चैनलों और पत्रकारों से विनम्रता पूर्वक कहना चाहते हैं कि गांव कस्बों के पत्रकारों की सुध लें, भारत में सच्ची पत्रकारिता गांव-कस्बों से ही होती है। उस पत्रकारिता और पत्रकार के लिए आप कभी भी सहिष्णु नहीं रहे हैं बल्कि उसके शोषण में आप भी छोटे बड़े पुर्जे हैं। इसलिए पत्रकार और पत्रकारिता की दुहाई देने के बजाय अपने पाला बदलने की सहूलियत, जो आगे-पीछे आपको मिलनी थी, उसका उपयोग कर रहे हैं। इस तरह हम आपके अवसरवादी और सत्ता परस्त चेहरे को देख पा रहे हैं।
पत्रकार पुरुषोत्तम असनोरा की रिपोर्ट. संपर्क : [email protected]