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है कोई पत्रकार जो ज़ी समूह / एस्सेल समूह की कंपनियों के घपलों-घोटालों की जांच करे?

मुझे लगता है कि किसी वित्तीय पत्रकार को ज़ी/ एस्सेल समूह से संबंधित मामलों पर शोध करना चाहिए। बैंकों, एलआईसी और म्यूचुअल फंड के मामलों में इस समूह की स्थिति और इसके लिए इनकी उपलब्धता दोनों दिलचस्प है। इसके बावजूद इस मामले में दैवीय हस्तक्षेप दिखाई देता है जिसकी वजह से ज़ी / एस्सेल और इसके मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप दंडित हो रहा है और इसे बचा भी रहा है।

2014 तक, एस्सेल / ज़ी काफी हद तक मनोरंजन और पैकेजिंग कंपनी थी। और ये अच्छा कर रही थीं । 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद महत्वाकांक्षी सुभाष चन्द्र ने अपने क्षितिज का विस्तार किया। उनकी नजर में जो भी टॉल वे परियोजना आई, वह मौजूदा हो या भविष्य में तैयार होने वाली – उनपर दांव चला गया।

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उदाहरण के लिए बैंगलोर-हैदराबाद एक्सप्रेस वे का 2018 में नवयुग से अधिग्रहण किया गया था। जो चल रहे थे उन्हें उस समय के स्वामियों ने बेच दिया था, जबकि अधिकांश नए टेंडर उनके हित में रहे। मित्रवत एलआईसी और बैंकों ने इस कु प्रयास (मिस-एडवेंचर) को वित्त पोषित किया। म्यूचुअल फंड ने भी एनसीडी (नॉन कनवर्टिबल डिबेंचर) लिए।

ज़ी के शेयर जब 600 रुपए की मजबूती से गिरकर 240 रुपए पर आ गए तो निजी म्युचुअल फंड परेशान होने लगे। रिलायंस एमएफ जैसे कुछ ने अपना हिस्सा बेच दिया और बंधक रखे गए शेयर एनकैश करा लिए। कुछ ने ज़ी के साथ अनैतिक और बिना सिद्धांत वाले करार किए। संभवतः दबाव में।

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आज बहुत सारा कर्ज संदिग्ध है और रेटिंग वापस ले ली गई हैं। हम जानते हैं कि एस्सेल की कोई 14 कंपनियां येस बैंक के लिए 8400 करोड़ रुपए की कर्जदार हैं। पूरी बैंकिंग प्रणाली के मामले यह राशि कुल कितनी है इसका तो अभी अंदाजा भी नहीं है। सिर्फ एक फर्म में, एलआईसी और अन्य बैंकों के 1414 करोड़ रुपए है जबकि येस बैंक के केवल 418 करोड़ रुपए है (कुल 8400 करोड़ रुपए में से एस्सेल को जो येस बैंक को देने हैं)। और इन कर्जों में से बहुत सा पिछले 8 महीने में बढ़ा होगा क्योंकि एस्सेल रेटिंग एजेंसियों के साथ सहयोग नहीं कर रहा था यह सूचना हवा में तैर रही थी।

जो स्थिति है, ज़ी के शेयर बिक चुके हैं और एस्सेल को कुछ करोड़ रुपए देने हैं। किसी भी संपत्ति का कोई खरीदार ढूंढ़ना संभव नहीं है।

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संभव है, सुभाष चन्द्रा इसी लायक हों। क्रोनी कैपिटलिज्म (पूंजीवाद) को सजा मिलनी ही चाहिए। पर इन कर्जों में से ज्यादातर का भुगतान हमीं लोग करेंगे – एसबीआई, एलआईसी, एमएफ को बट्टे खाते में डालकर और एनएवी में कमी के रूप में।

आज सुबह, मैंने कुछ जानकारी इकट्ठी की जो निम्नलिखित है :

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  1. एस्सेल फाइनेंस बिजनेस लोन्स लिमिटेड :
    50 करोड़ एनसीडी
    बैंक सुविधाओं के 200 करोड़
    क्रिसिल रेटिंग डी (डाउनग्रेड कर डिफ़ॉल्ट)
    दिनांक: नवंबर 2019
  2. एस्सेल इंफ्रा प्रोजेक्ट लिमिटेड
    येस बैंक: 418.22 करोड़
    एलआईसी: 550 करोड़
    विभिन्न बैंक: 864.20 करोड़
    कुल ऋण: 1832.42 करोड़
    ब्रिकवर्क रेटिंग: बीबी-नकारात्मक प्रभाव के साथ।
  3. एस्सेल देवनहल्ली टॉलवे
    दिनांक: अप्रैल 2019
    नॉन कनवर्टिबल डिबेंचर: 3680 करोड़
    टर्म लोन: 2380 करोड़
    टर्म लोन: 2030 करोड़
    कुल ऋण: 8030 करोड़
    इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च द्वारा रेटिंग वापस ली गई ।
  4. एक्सप्रेस टोल रोड लिमिटेड:
    कोई जानकारी नहीं ।
  5. एस्सेल के पास 11 अन्य टोल रोड प्रोजेक्ट हैं ।
    दिनांक: जुलाई 2019
    एस्सेल ग्वालियर शिवपुरी टॉल रोड: 1090 करोड़ रुपए
    एस्सेल अहमदाबाद गोधरा टॉल रोड : 773 करोड़ रुपए
    महू घटबिलोड टॉल रोड,
    मुबारका चौक-पानीपत टॉल रोड
    दमोह जबलपुर टॉल रोड
    और छह अन्य टॉल रोड।
    कुल ऋण रेटेड : 4500 करोड़ रुपए
    केयर रेटिंग: सी (जारीकर्ता सहयोग नहीं कर रहा है । रेटिंग वापस ले ली गई)
  6. एस्सेल लखनऊ रायबरेली टॉल रोड:
    कुल राशि: 487.5 करोड़
    इंडिया रिसर्च एंड रेटिंग ने इसे डाउनग्रेड कर इसे रेटिंग वाच (नकारात्मक) में रखा है।
  7. एस्सेल के लिए टेम्पलटन का एक्सपोजर: 493.3 करोड़
    उन्होंने इसका 85% मुहैया कराया है।

आगे का मामला कोई पत्रकार देखे, अगर कोई हो ….

Peri Maheshwer की अंग्रेजी पोस्ट के मशीनी अनुवाद को संपादित किया है वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह ने.

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