माननीय सुप्रीम कोर्ट से मजीठिया को लेकर जो फैसला आया, उसको मालिकानों ने अपने काम कर रहे वर्कर के बीच गलत तरह से पेश किया। उदाहरण के तौर पर दैनिक जागरण को लेते हैं। सभी जानते हैं कि दैनिक जागरण का रसूख केंद्रीय सरकार से लेकर राज्य सरकारों तक में है। इनके प्यादे अक्सर इस बात की धौंस मजीठिया का केस करने वाले वर्करों को देते रहते हैं कि रविशंकर प्रसाद, जेटली जी और पी एम मोदी जागरण की बात सुनते हैं। देश में ऐसा कौन है जो जागरण की बात नहीं मानेगा? इन नेताओं की आय दिन तस्वीरें जागरण के मालिकानों के साथ अख़बारों में छपती रहती हैं। देखें तो, प्यादों की बात सही भी है, क्योंकि यह सब जागरण के वर्करों ने देखा भी है। तभी तो जागरण के मालिकान और मैनेजमेंट बेख़ौफ़ होकर किसी भी दफ्तर में गलत तर्क या गलत शपथ पत्र देते नहीं हिचकते हैं।
पर सच यह भी है कि ऐसा करके मालिकान या इनके प्यादे सिर्फ वर्कर को परेशान करते हैं और इस काम में उनके सहयोगी बनते हैं सरकारी अफसर। नोएडा जागरण की बात करें, तो यहाँ के वर्कर की मजीठिया मामले को लेकर हुए टर्मिनेशन और उसको लेकर हुई कुछ सुनवाइयों के दृश्य यहाँ उल्लेखनीय हैं। एक बार नोएडा के डी एल सी कार्यालय में तारीख के मुताबिक सवा दो सौ टर्मिनेट वर्कर की भीड़ आयी थी। कुछ लोग अंदर यानी डी एल सी के कमरे में थे बाकि सब बाहर खड़े थे। इन सुनवाइयों के दौरान अजीब दृश्य तब उत्पन्न होता था, जब डी एल सी महोदय यानी श्री बी के राय वर्कर को देखने के बाद मुस्कुराते हुए कहते, आज तारीख है क्या? वर्कर जब कहते कि जी सर, आज तारीख है। आपने 3 बजे बुलाया था। तब वे कहते, अच्छा ठीक है। फिर श्री राय अपने मोबाइल से फोन करते जागरण के कुछ अधिकारियों को। एक ने नहीं सुनी तो दूसरे को, दूसरे ने नहीं सुनी तो तीसरे को, तीसरे ने नहीं सुनी तो…..। कुल मिलाकर वर्करों को यह पता चल जाता था कि श्री राय के मोबाइल में जागरण नोएडा के सभी प्यादे के मोबाइल नंबर फीड हैं। यहाँ तक कि बिचौलिये का भी।
अजीब तो तब लगता, जब किसी एक प्यादे का नंबर लग जाता, तो श्री बी के राय दुआ सलाम करने के बाद यह पूछते कि आपके वर्कर आये हुए हैं, आप क्या कहते हैं? फिर उधर से जो जवाब मिलता था, उनके चेहरे के भाव से पता चल जाता था जैसे श्री राय यूपी के एक डीएलसी नहीं, जागरण के आदेशपाल हों। फिर ये गिड़गिड़ाते कि आ जाइये न, आ जाते तो अच्छा होता। उनके इस आग्रह और विनय पर कभी एक घंटे तो कभी दो घंटे बाद जागरण का कोई प्यादा, चाहे वह छोटा हो या बड़ा या फिर कोई बिचौलिया, जो जागरण और डी एल सी के बीच तमाम दूसरे केसों में भी शामिल होता है, आता और वह आएं, बाएं, साएं बोलकर आगे की तारीख लेता और चला जाता। इन वार्ताओं के दौरान डी एल सी साहब का रवैया एक समर्थ सरकारी अफसर जैसा न होकर ऐसा होता था, जैसे वह खरीदार और बेचने वाले के बीच का इंसान हो।
माना जा सकता है कि कमोवेश यही स्थिति हर राज्य के डी एल सी की होगी। अख़बार के मैनेजर और प्यादे इन्हें जूते की नोंक पर रखते होंगे और ये अफसर अपनी औकात भूलकर या तो कमाने या फिर डर के मारे या नौकरी बचाने के लिए ऐसा करने को मजबूर होते होंगे कि कहीं मालिकान आलाकमान से शिकायत न कर दें और डी एल सी साहब का तबादला, मऊ, बलिया, जौनपुर, अमरोहा या बाराबंकी न हो जाये, जहाँ न तो नोएडा जैसा काम है और न नोएडा जैसी कमाई।
सूत्र यह भी बताते हैं कि नोएडा में या तो मंत्री जी के खास लोगों की पोस्टिंग होती है या फिर उनकी, जो…. । बावजूद इसके आज की बात करें, तो हालिया आये माननीय सुप्रीम कोर्ट के आर्डर ने मालिकानों का चैन छीन लिया है। अब उसके दिल से डर नहीं जा रहा है। कोई जाने या न जाने, पर मालिकान जानता है कि अवमानना का जिन्न कभी भी उसकी गिरेबान पकड़ सकता है और वर्करों द्वारा इसकी तैयारी भी चल रही है। आये आदेश के मुताबिक इस बार मालिक वर्करों का पैसा देने में अगर चूके, तो अख़बार मालिकानों को जेल जाने से कोई नहीं बचा सकेगा।
दूसरी ओर डी एल सी, जो मालिकानों द्वारा वर्करों के केस में डराये, धमकाये, या सताए गए या जाते रहे हों, माननीय सुप्रीम कोर्ट का आर्डर उनके लिए ढाल बनकर आया है। वे अब उसका सहारा ले सकते हैं और मालिकानों से कह सकते हैं कि अगर मैंने गलत किया तो मेरी नौकरी चली जायेगी। …और यह सच भी है, क्योंकि अब किसी गलती पर वर्कर उन्हें नहीं छोड़ेंगे और आगे की अदालत में जायेंगे। जाहिर है, फिर उनकी भी शामत आएगी, जो गड़बड़ करेंगे।
मजीठिया क्रन्तिकारी और पत्रकार रतन भूषण की फेसबुक वॉल से.