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अमर उजाला पर विज्ञापन न मिलने से डीजीपी के खिलाफ खबर छापने का आरोप

अमर उजाला को विज्ञापन न देने पर डीजीपी के खिलाफ 31 जनवरी और 1 फरवरी को प्रकाशित खबरों के मामले ने तूल पकड लिया है। पुलिस अधिकारियों ने अमर उजाला न पढ़ने की चेतावनी जारी कर दी है। साथ ही अमर उजाला के विज्ञापन कर्मी के खिलाफ नगर कोतवाली देहरादून में मुकदमा दर्ज कर लिया है। सूत्रों की मानें तो अब अमर उजाला के पदाधिकारी मुख्यमंत्री हरीश रावत से मिलकर मामले में समझौता कराने के प्रयास में लगे हैं।

अमर उजाला को विज्ञापन न देने पर डीजीपी के खिलाफ 31 जनवरी और 1 फरवरी को प्रकाशित खबरों के मामले ने तूल पकड लिया है। पुलिस अधिकारियों ने अमर उजाला न पढ़ने की चेतावनी जारी कर दी है। साथ ही अमर उजाला के विज्ञापन कर्मी के खिलाफ नगर कोतवाली देहरादून में मुकदमा दर्ज कर लिया है। सूत्रों की मानें तो अब अमर उजाला के पदाधिकारी मुख्यमंत्री हरीश रावत से मिलकर मामले में समझौता कराने के प्रयास में लगे हैं।

पुलिस विभाग की तरफ से जारी यह पत्र चर्चा में है…

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महिला दरोगा भर्ती से सम्बंधित विज्ञापन न मिलने से बौखलाए अमर उजाला अखबार ने डीजीपी उत्तराखंड महोदय के सम्बन्ध में पहले 31.1.16 को देहरादून में तथा 1.2.16 को हरिद्वार में, फिर उसका फॉलोअप छापा जो काफी भद्दा गैरजिम्मेदाराना तरीके से छापा है. इतने बड़े अखबार को ऐसी ओछी हरकत शोभा नहीं देती. एक ही खबर को ज्यों का त्यों दो दिन प्रदेश में अलग स्थानों में छापा गया। प्रदेश पुलिस के मुखिया के बारे में इस प्रकार की टिप्पणी करना पूरे पुलिस विभाग के लिए गंभीर चिंता और मनन का विषय है जो कि सीधे तौर पर उत्तराखण्ड पुलिस के मान सम्मान को ललकारते हुऐ पीत पत्रकारिता का जीता-जागता उदाहरण है।

पिछले 2 वर्षों में डीजीपी सर द्वारा किये गए विभागीय अच्छे कार्यों को तो कभी भी अमर उजाला ने तार्किक जगह नहीं दी। यदि कभी-कभार ऐसी ख़बरें छापी भी हैं, तो बाद के पन्नों में वो भी बेमन से, और बहुत कम शब्दों में। परंतु विज्ञापन न मिलने की खबर को अमर उजाला ने फ्रंट पेज की खबर बनाया है। सही में देखा जाये तो अमर उजाला का कुछ सालों में पैटर्न पूरी तरह से पुलिस विभाग के एंटी अखबार का है, और मात्र एक ही बदनाम पुलिस अधिकारी का व्यक्तिगत अखबार तक सीमित होकर रह गया है।

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पुलिस विरोधी नकारात्मक खबरें इसमें बड़ी बड़ी और पुलिस विभाग के गुड वर्क की ख़बरें बहुत छोटी छोटी छापी जाती हैं। वर्तमान खबर तो मात्र सिर्फ और सिर्फ विज्ञापन न मिलने के कारण छापी गयी है जबकि खबर में जमीन से जुड़े जिस केस को उछालकर जिक्र किया गया है, उस केस के करंट अपडेट को तो जानने की कोशिश तक नहीं की गयी और केस से जुड़े अधिकारीयों को सजा दिए जाने के बारे में लिखा है।

हकीकत में इस केस में धोखाधड़ी तो हमारे डीजीपी सर के साथ हुई है। अपने हक़ के लिये जमकर लड़ना कोई गलत बात नहीं। लेकिन अमर उजाला डीजीपी सर के विरोध में ख़बरें छाप कर उनकी छवि ख़राब कर पूरे पुलिस विभाग को छोटा करने की कोशिश कर रहा है। पिछले 2 वर्षों में डीजीपी सर ने पुलिस परिवार का मुखिया होने की जिम्मेदारी पूरी शिद्दत से निभाई और अपने अधीनस्थों के भलाई के लिए स्वयं व्यक्तिगत रुचि लेते हुए शासन में लंबे समय से लटकी पड़ी तमाम फाइलों की पैरवी की गयी तथा सिपाहियों की वेतन विसंगति, प्रमोशन, स्थायीकरण, नये पदों और पुलिस विभाग के आधुनिकीकरण आदि मामलों का बहुत तेजी से निस्तारण करवाया।

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वर्ष 2015 में वेतन विसंगति एवं एरियर को लेकर काली पट्टी बांधने एवं सोशल मीडिया पर मेसेज फॉरवर्ड करने के मामले में जब सिपाहियों पर कार्यवाही की बात कई पुलिस अधिकारी कर रहे थे, अकेले डीजीपी सर ही थे, जिन्होंने किसी भी निर्दोष सिपाही पर कार्यवाही नहीं होने दी। उन्होंने किसी निर्दोष के साथ नाइंसाफी नहीं होने दी, जबकि उस मामले में सैकड़ों सिपाहियों पर कार्यवाही की तलवार लटकी हुई थी। यहाँ तक कि डीजीपी सर ने सिपाहियों के हक़ के लिए वेतन विसंगति समय से ठीक न होने की स्थिति में अपना इस्तीफा तक देने की बात कही थी। यह डीजीपी सर के व्यक्तिगत प्रयासों का ही नतीजा है कि माननीय मुख्यमंत्री जी ने एरियर के भुगतान के लिए अलग से बजट स्वीकृत किये जाने की बात कही है और जल्द ही सभी सिपाहियों को एरियर मिल भी जायेगा।  

साथियों, हम अपने पैसों के लिए तो एकजुट होकर लड़ते हैं, तमाम तरह के हथकंडे अपनाते हैं परंतु हमारी हक़ और इज़्ज़त की लड़ाई में हमारे साथ खड़े होने वाले डीजीपी सर जब दो महीने में रिटायर होने वाले हैं, तो ऐसे समय में एक अखबार की मनमानी के कारण क्या हम उनकी, अपने विभाग और वर्दी की छवि को धूमिल होते हुए हाथ पर हाथ रखकर यूँ ही देखते रहें? क्या हमें उनके साथ, उनके समर्थन में एकजुट होकर खड़े नहीं होना चाहिए?

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यह समय एकजुट होकर पुलिस विभाग को चुनौती देने वालों को मुंहतोड़ जवाब देने का है। यह समय डीजीपी सर के साथ उनके समर्थन में खड़े होने का समय है। ऐसा लगता है कि अमर उजाला के पत्रकार अपनी मर्जी के मालिक हैं, जो मन में आया छाप दिया। जब प्रदेश पुलिस के मुखिया को ही यह अखबार कुछ नहीं समझ रहा है, तो आने वाले दिनों में छोटे अधिकारियों और सिपाहियों का क्या हाल होगा, जरा सोचो। विचार करो। एकजुट होकर इस अखबार के विरोध में खड़े हो जाओ। दिखा दो इन्हें उत्तराखंड पुलिस की एकता और हमारी ताकत। इसलिए इस अखबार को सबक सिखाने के लिए यह जरूरी है कि इस अखबार का विरोध हर स्तर पर किया जाये।  

साथियों, आज से इस अखबार का विरोध शुरू कर दो और यह विरोध तब तक करते रहो, जब तक यह अखबार हमारे डीजीपी सर से इस खबर के बारे में माफ़ी न मांग ले। जिसके भी घर में, परिवार में, रिश्तेदारी में अमर उजाला अख़बार आता है, आज ही उसे बदलवाकर दूसरा अखबार लगवाओ और अपने हॉकर को तथा पत्रकारिता से जुड़े जिस भी शख्स को जानते हो, उसे भी बताओ कि तुमने यह अखबार क्यों बंद किया है? 

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साथियों, यह पुलिस की एकजुटता दिखाने का समय है। मीडिया की दलाली को जवाब देने का समय है। हमारे सम्मान की लड़ाई लड़ने वाले डीजीपी के स्वाभिमान की लड़ाई में साथ खड़े होने का समय है। ये दिखाने का समय है कि हम एक हैं और कोई भी हमें हल्के में नहीं ले सकता। देखना है, कौन जीतता है। हमारी एकता या बिकाऊ मीडिया।

जय हिन्द
जय उत्तराखंड पुलिस।

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पुलिस ने निकालनी शुरू की खुन्नस

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अब पुलिस ने खुन्नस में अमर उजाला के विज्ञापन कर्मी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। आरोप है कि विज्ञापन वाला पीएचक्यू में घुसा। विज्ञानकर्मी पर 384, 385, 120 बी, 185, 186 की धारा लगायी गई है। देहरादून यूनिट में कार्यरत विज्ञापन के अभिषेक शर्मा के खिलाफ दर्ज हुआ मुकदमा।

देहरादून से एक मीडियकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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