लखनऊ से बड़ी ख़बर है। मजीठिया वेतनमान प्रकरण में दैनिक समाचार पत्र हिंदुस्तान की अब तक की सबसे बड़ी हार हुई है। कम्पनी का झूठ भी सामने आ गया है। यह भी सामने आया है कि मजीठिया की सिफ़ारिश से बचने के लिए कम्पनी ने तरह तरह के षड्यंत्र किए। लखनऊ के श्रम विभाग ने हिंदुस्तान के 16 पत्रकारों व कर्मचारियों को क़रीब 6 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया है। लखनऊ के एडिशनल कमिशनर बी.जे. सिंह व सक्षम अधिकारी डॉ. एम॰के॰ पाण्डेय ने ६ मार्च को हिंदुस्तान के ख़िलाफ़ आरसी जारी कर दी और पैसा वसूलने के लिए ज़िलाधिकारी को अधिकृत कर दिया है।
श्रम अधिकारी ने ज़िलाधिकारी को भेजी रिकवरी-आरसी की धनराशि हिंदुस्तान से वसूल कर श्रम विभाग को देने को कहा है। डीएम की अब यह ज़िम्मेदारी होगी की वह हिंदुस्तान से पैसा वसूल के श्रम विभाग को दें और फिर श्रम विभाग यह राशि मुक़दमा करने वाले 16 कर्मचारियों को देगा। श्रम विभाग के इस आदेश से यह भी साबित हो गया है कि हिंदुस्तान मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक़ वेतनमान नहीं दे रहा है। जबकि हिंदुस्तान प्रबंधन ने श्रम विभाग को यह लिखित जानकारी दी थी कि कम्पनी मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक़ वेतन दे रही है।
इसी आधार पर श्रम विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में यह ग़लत हलफ़नामा लगा दिया कि हिंदुस्तान मजीठिया के अनुसार वेतनमान कर रहा है। अब इस प्रकरण में ग़लत हलफ़नामा देने पर कम्पनी के ख़िलाफ़ धोखाधड़ी का मुकदमा भी चल सकता है। ख़ुद श्रम विभाग ने यह लिखकर दिया है कि हिंदुस्तान मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतनमान नहीं दे रहा और न ही विभाग को काग़ज़ उपलब्ध करा रहा है।
ग़ौरतलब है कि सितम्बर २०१६ को हिंदुस्तान व हिंदुस्तान टाइम्स के पत्रकारों व ग़ैर पत्रकारों ने प्रमुख सचिव श्रम के यहाँ शिकायत कर कहा था कि प्रबंधन मजीठिया वेतनमान के अनुसार वेतन नहीं दे रहा है। इसके बाद प्रबंधन उत्पीड़न पर उतर आया। आठ पत्रकारों को नौकरी से निकाल दिया गया। इसके बाद श्रम विभाग में सभी पत्रकारों ने नौकरी से निकाले जाने और नवम्बर २०११ से २०१६ के बीच मजीठिया वेतनमान का डिफरेंस दिए जाने का वाद दायर किया। बर्ख़ास्तगी का केस अभी विभाग में लम्बित है जबकि ६ मार्च को श्रम विभाग ने पत्रकारों के पक्ष को सही मानते हुए कम्पनी के ख़िलाफ़ फ़ैसला दिया।
रिकवरी केस फ़ाइल करने में कुल 16 कर्मचारी शामिल थे। इन सभी को श्रम विभाग ने उनके वेतन के हिसाब से 10 लाख रुपए से 60 लाख रुपए तक भुगतान करने का आदेश दिया है। श्रम विभाग ने डीएम को जारी आरसी में कहा है कि यदि कम्पनी इस राशि का भुगतान तत्काल नहीं करती है तो कम्पनी की सम्पत्ति कुर्क कर राशि का भुगतान कराया जाए। हिंदुस्तान प्रबंध तंत्र का झूठ इसी से समझा जा सकता है कि चार महीने की सुनवायी के बावजूद हिंदुस्तान प्रबंध तंत्र अपनी ओर से एक भी लिखित जवाब दाख़िल नहीं कर पाया।
कर्मचारियों ने मुक़दमे में साक्ष्यों के साथ यह तर्क दिया कि हिंदुस्तान अखबार एक नम्बर कैटगरी में आता है और इसी हिसाब से भुगतान किया जाना चाहिए। प्रबंधन ने इसके ख़िलाफ़ कोई तर्क नहीं दिया जिससे यह साबित हुआ कि कम्पनी कैटगरी नंबर वन की है और मजीठिया का भुगतान इस कैटगरी के हिसाब से नहीं दिया जा रहा है। कर्मचारियों के वक़ील शरद पाण्डेय ने श्रम विभाग में अपने तर्कोंं से साबित किया कि हिंदुस्तान ने अब तक मजीठिया वेतनमान नहीं दिया है और पूर्व में जो भी पत्र दिए वह झूठे थे।
अनुभवी वक़ील शरद ने कम्पनी के नामी-गिरामी वकीलों की फ़ौज को अपने तर्कों से अनुत्तरित कर दिया। यह भी पता चला है कि हिंदुस्तान प्रबंध तंत्र पूर्व में जालसाज़ी करते हुए कोर्ट में इतने झूठे काग़ज़ात लगाए हैं कि आगे कोई भी वक़ील इनका केस लड़ने को तैयार नहीं हो रहा है। जिन १६ लोगों ने श्रम विभाग में वाद दायर किया था उनमें संजीव त्रिपाठी, प्रवीण पाण्डेय, संदीप त्रिपाठी, आलोक उपाध्याय, प्रसेनजीत रस्तोगी, हैदर, लोकेश त्रिपाठी, आशीष दीप, हिमांशु रावत, एलपी पंत, जितेंद्र नागरकोटी, आरडी रावत, बीडी अग्रवाल, सोमेश नयन, रामचंदर, पंकज वर्मा शामिल है।
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट शशिकांत सिंह की रिपोर्ट. संपर्क : 9322411335