जागरण के वकील ने कोर्ट से कहा- 708 कर्मचारियों ने मजीठिया मसले पर प्रबंधन से समझौता कर लिया है

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जब पीपी राव हुए निरुत्तर…  मजीठिया वेज बोर्ड पर सुनवाई… नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट । कोर्ट नंबर 9 । आइटम नंबर 42 । जैसे ही दैनिक जागरण प्रबंधन के खिलाफ यह मामला सुनवाई के लिए सामने आया न्याययमूर्ति रंजन गोगोई ने दैनिक जागरण प्रबंधन के वकील से सीधे पूछ लिया कि क्या आपने अपने यहां मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू किया। इस पर दैनिक जागरण की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील श्री पीपी राव पहली बार तो कुछ नहीं बोले लेकिन जब न्याययमूर्ति गोगोई ने दोबारा यही सवाल किया तो श्री राव ने कहा कि उन्हें अदालत का नोटिस नहीं मिला है।

इस पर अदालत ने कहा उन्होंने दो महीने का वक्त दिया था लेकिन औपचारिक रूप से कोई नोटिस नहीं दिया था। अब दो हफ्ते वक वक्त आपको दिया जाता है। आप शपथपत्र दाखिल करें। इस बीच न्याययमूर्ति ने श्री राव से आइटम नंबर 42 की घोषणा होते ही राव से पूछा कि आप जागरण की ओर से पैरवी कर रहे हैं। अदालत ने इस संदर्भ में नोटिस भी जारी करने के आदेश दिए हैं। जब दूसरी बार न्याययमूर्ति गोगोई ने उनसे पूछा कि आपने मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू किया या नहीं तो श्री राव ने अदालत को बताया कि प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच इस मामले में एक समझौता हो गया है। उन्होंने अदालत और कर्मचारियों के वकील श्री परमानंद पांडेय को वह समझौते की फाइल भी दी।

इस कथित समझौते पर 708 कर्मचारियों के हस्ताहक्षर हैं। समझौते के मसैादे वाले पन्ने पर पांच साथियों के हस्ताक्षर हैं। इस पूरे समझौते में कहीं भी किसी गवाह के हस्ता‍क्षर नहीं हैं। इतना ही नहीं अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार सभी कर्मचारियों से लिए गए हस्ताक्षर में श्री अंशुमान तिवारी का हस्ताक्षर 17 वें नंबर है और इनके हस्ताक्षर करने की तारीख 123-11-11 है। श्री तिवारी का एम्पालाई कोड 0085 है। आप सबको पता ही है कि श्री तिवारी किन खास परिस्थितियों में संस्थान को अलविदा कह गए थे।

दैनिक जागरण के साथियों को याद दिलाना जरूरी है कि साथियों यह वही काले पन्ने हैं जिनपर आप सभी के हस्तााक्षर हैं। संलग्‍नक के 66 से 85 पृष्ठों में आपके वे हस्ताक्षर हैं। हम यहां कुछ कानूनी पहलुओं को देखते हुए इन काले पन्नों का सच नहीं लिख पा रहे हैं। हम वकील से सलाह लेने के बाद ही इस पर कोई प्रकाश या इसकी कॉपी आप सब तक पहुंचा सकेंगे।

फेसबुक के मजीठिया मंच नामक एकाउंट से साभार.



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Comments on “जागरण के वकील ने कोर्ट से कहा- 708 कर्मचारियों ने मजीठिया मसले पर प्रबंधन से समझौता कर लिया है

  • Bhupendra Pratibaddh says:

    दैनिक भास्कर के कानूनी जंग लडऩे-जीतने निकले सूरमाओं ने मालिकान-मैनेजमेंट से मोटी रकम लेकर हथियार डाल दिए हैं, सरेंडर कर दिया है। इन सूरमाओं का मकसद इस दिखाऊ जंग की आड़ में अपना उल्लू सीधा करना, अपनी जेब भरना था। जिसे उन्होंने कर लिया है। उन्हें दूसरे साथियों की जरा भी चिंता नहीं है। दूसरे साथी अगर भास्कर मैनेजमेंट की शोषक-उत्पीडक़-मारक-घातक चक्की में पिसते हैं तो पिसते रहें। अपनी बला से। सुप्रीम कोर्ट में 5 जनवरी को किसी भी सूरमा के दीदार नहीं हुए, नजर नहीं आए। इंडियन एक्सप्रेस और दैनिक जागरण के पेशी पर पहुंचे साथी इस बाबत एक दूसरे से पूछते-तहकीकात करते रहे, लेकिन कोई बता नहीं पाया, जवाब नहीं दे पाया। अंतत: यही निष्कर्ष निकला-निकाला गया कि भास्कर के सूरमाओं ने, हो न हो, समझौता कर लिया हो।

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  • BHASKAR EMPLOYEES KE LIYE BADHI DUKHAD KHABAR

    LOG SOCH TE HAI KE KOI MASHIHA AAYEGA JO UNKA HAKK DILAYEGA……..YE KALYUG HAI BHAI…………KHUD KO HI BULAND KARO, KHUD LADAI KARO AUR KHUD MAVA KHAO……….DAINIK BHASKAR VALO KE SAATH BHI KUCHH AISHA HI HUA………PAHELE GUJARAT HIGH COURT ME EMPLOYEES NE CASE KIYA TO PAISA DEKE CASE SATTLEMENT KARKE WITHDRAW HO GAYA……….AUR AB SUPREME COURT KE CASE ME EMPLOYEES KO PAISA DE KE CASE WITHDRAW KARVA LIYA………….(ORDER COPY ATTACHED))

    ABHI BHI 7 FEBRUARY SE PAHELE CONTEMPT PETITION HO SAKTI HE NAHITO USKE BAAD TO MAJETHIA MANCH BHI KUCHH NAHI KARVA PAYEGA………..CHALO BHAI HAM TO CHALE APNI LADAI KHUD LADNE………….HAKK KI LADAI…

    ORDER
    Learned counsel appearing for the petitioners prays for liberty to withdraw this Contempt Petition. Liberty, as prayed, is granted. Accordingly, the Contempt Petition is closed on withdrawal.

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  • purushottam asnora says:

    जागरण या कोई भी मीडिया प्रतिष्ठान अपने सभी कर्मियों का समझौता भी कोर्ट को दे देगा। क्योंकि बेरोजगारी के युग में कोई अपनी नौकरी नहीं खोना चाहेगा। मीडिया संस्थान उसी मजबूरी का फायदा उठा पत्रकार- गैरपत्रकारों का शोषण कर रहे हैं।मजीठिया आयोग की शिफारिसों के अनुसार वेतन देने से बचने के लिए मामला कोर्ट में ले जाने वाले संस्थान अब माननीय सर्वोंच्च न्यायालय के आदेशों को भी ठेंगा दिखाना चाहते हैं।
    माननीय न्यायालय से सादर अनुरोध है कि किसी भी ऐसे समझौते को अमान्य करने की कृपा करें जो प्रवन्धन ने दबाव देकर लिखवाया है। प्रवन्धन हर हथकन्डा अपनाकर मजीठिया आयोग की शिफारिशों के अनुसार अपने कर्मियों को लाभ देने से बच रहे हैं। ये कैसा मीडिया है जो खुद अपने लोगों का गला काट रहा है? तब ऐसे कसाईयों से न्याय और सत्यता की उम्मीद कैसे की जाय? सार्वजनिक रुप से भी ऐसे संस्थानों की साख संदिग्ध हो चुकी है।

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