महेश जी के साथ संपादकीय विभाग में लगभग बीस साल गुजारने वाले वरिष्ठ पत्रकार अलीम बजमी कहते हैं कि, ‘उन्होंने कभी व्यवस्था की मृदंग पर राग जयजयवंती नहीं गाया. कुर्सीदासों की महफिलों की रौनक भी कभी नहीं बने. सर या बॉस जैसे शब्दों से हमेशा परहेज की. हिंदी के हमेशा हिमायती रहे महेश जी सबके बीच भाई साहब के रूप में लोकप्रिय रहे...
दिग्गज संपादक पत्रकार महेश श्रीवास्तव जी का आज जन्मदिन है. आज 27 दिसंबर वे 78 वर्ष के हो चुके हैं, बावजूद इसके आपसे बात करते हुए ये पता नहीं लगता कि आप किसी उर्जावान नवयुवक से बात कर रहे हैं अथवा जीवन के 78 वर्षों का अनुभव ले चुकी सख्शियत से. उनकी चुस्ती-फुर्ती में आज भी कोई कमी नहीं आई.
भोपाल दैनिक भास्कर में बतौर संपादक शानदार पारी का निर्वहन कर चुके महेश जी पत्रकार के साथ-साथ कवि और लेखक भी हैं. दैनिक भास्कर के संपादक के रूप में 1884 से 2000 के बीच लिखी गई उनकी कुछ विशेष संपादकीय टिप्पणियां आज भी उतनी ही शिद्दत से पढ़ी जाती हैं जितनी तब चलन में थीं. संपादक के रूप में कठोर महेश जी के लेखन में भाषा का सौंदर्य और शब्दों के चयन में मर्यादा साफ दिखती थी, जिसपर उतना ही निर्मल हृदय.
सादगी पसंद महेश जी ने 1960 में पत्रकारिता की शुरूआत बतौर रिपोर्टर की थी. हालांकि इससे पहले अंग्रेजी में पोस्ट ग्रेजुएट होने के कारण उन्हें बतौर लेक्चरर सरकारी नौकरी भी मिली. लेकिन उसमें दिल नहीं लगा. वकालत की पढ़ाई भी की. बहरहाल, दिल में व्यवस्था के खिलाफ उठी चिंगारी उन्हें पत्रकारिता में खींच लाई.
उनकी कलम से निकले शब्दों का जादू था जो भास्कर के संस्थापक स्वर्गीय सेठ द्वारका प्रसाद अग्रवाल खासे प्रभावित रहे. महेश जी से वे पुत्रवत स्नेह रखते थे. इतना ही नहीं उनकी कलम का ही जादू था जो उस वक्त दिल्ली से यूपी तक बड़े अखबारी घराने उन्हें अपने साथ जोड़ना चाहते थे. लेकिन संस्थान के प्रति उनकी निष्ठा को कोई डिगा नहीं पाया. इसके कारण उन्होंने भोपाल नहीं छोड़ा.
देनिक भास्कर में पदोन्नत होते-होते महेश जी संपादक जैसे महत्वपूर्ण पद तक पहुंचे. 12 साल तक जिम्मा संभालने के बाद संस्थान से विदा हुए. हालांकि, सेवानिवृत्ति के बाद भास्कर समूह के चेयरमैन स्वर्गीय रमेश चंद्र अग्रवाल ने उन्हें सलाहकार संपादक बनाकर एक और साल रोके रखा. भास्कर से 2001 में उनकी पूर्णतया विदाई हुई.
महेश जी के साथ संपादकीय विभाग में लगभग बीस साल गुजारने वाले वरिष्ठ पत्रकार अलीम बजमी बताते हैं कि, ‘उन्होंने कभी व्यवस्था की मृदंग पर राग जयजयवंती नहीं गाया. कुर्सीदासों की महफिलों की रौनक भी कभी नहीं बने. सर या बॉस जैसे शब्दों से हमेशा परहेज की. हिंदी के हमेशा हिमायती रहे महेश जी सबके बीच भाई साहब के रूप में लोकप्रिय रहे.’
‘आसमानी रंग की लम्बेरेटा स्कूटर उनके जीवन के कई बसंत की गवाह रही. दफ्तर में सख्त संपादक के रूप में वे कभी लापरवाही बर्दाश्त नहीं करते थे. खुद अनुशासन में रहकर सभी को उसमें बांधकर रखते थे. कई बार न्यूजरूम के बोझिल माहौल को हास-परिहास में बदल देते थे.’
किसी खबर को लेकर उनका फोकस कंटेंट पर रहता था. विशेष अवसरों पर पेज की डमी खुद बनाते थे. इंदिरा गांधी की हत्या वाले दिन पूरा अखबार अन्य खबरों से खाली कर दिया. उनका मानना था आज लोग इंदिरा से जुड़े पहलू पर गौर करेंगे. उस दिन उनकी लिखी विशेष संपादकीय, ‘काले सूरज का दिन’ लोगों की आंखों को नम कर गया था. इस घटना के कुछ ही दिन बाद विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी यानी गैस कांड हुआ. इस घटना ने पूरे विश्व को स्तब्ध कर दिया. तब महेश जी की, ‘लाशों से उठा सवाल’ नामक शीर्षक से छपे संपादकीय को काफी सराहना मिली.
इसी तरह अर्जुन सिंह के सीएम पद से हटने पर उन्होंने, ‘हे अर्जुन हर मनुष्य अपने कर्मों का फल यहीं भोगता है’ नाम के शीर्षक से छपा संपादकीय देश भर में चर्चित हुआ था. फिर सुंदरलाल पटवा के मुख्यमंत्री रहते 27 हजार कर्मचारियों के तबादले पर तीखी टिप्पणी, लाल कृष्ण आडवाड़ी की गिरफ्तारी पर ‘स्वागत है’ की खूब वाहवाही हुई. वे भोपाल के पहले ऐसे संपादक रहे, जिन्हें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ विदेश यात्राओं का मौका मिला. खुद प्रयोगधर्मी रहे और लेखन में प्रयोगधर्मिता के पक्षधर भी रहे, लोगों को खूब मौका दिया.
रामायण और महाभारत के की पौराणिक प्रसंग कंठस्थ रखने वाले महेश जी को मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा से लेकर सुंदरलाल पटवा और दिग्विजय सिंह ने कई बार सरकारी बंगला देने की पेशकश की लेकिन उन्होंने हर बार बेहद शालीनता से मना कर दिया. उनका मानना था कि सरकार की मदद उनकी स्वतंत्रता में बाधा बनेगी. पुराने शहर के शाहजहांनाबाद स्थित रामनगर कॉलोनी में वे लंबे समय तक रहे. हालांकि उन्हें कठिनाई होती लेकिन संतोष करते थे.
पत्रकारिता में उत्कृष्ट अवदान के लिए उन्हें गणेश शंकर पत्रकारिता पुरस्कार 2012 से नवाजा गया. इसके अलावा उन्हें असंख्य पत्रकारिता सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है. इसके अलावा मध्य प्रदेश की स्थापना के पांच दशक होने पर उनकी लिखी कृति को आम राय से मध्य प्रदेश राज्य शासन का आधिकारिक गीत माना गया.. जिसके बोल कुछ इस प्रकार हैं..
‘सुख का दाता सब का साथी शुभ का यह संदेश है, मां की गोद..पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेश है। विंध्याचल सा भाल नर्मदा का जल जिसके पास है.. यहां ज्ञान विज्ञान कला का लिखा गया इतिहास है।
अग्निबाण के संपादक रविंद्र जैन आज फेसबुक पर लिखते हैं-
आज पत्रकारिता के क्षेत्र में मैं जो कुछ भी हूं, उसका श्रेय परम आदरणीय श्री महेश श्रीवास्तव जी को देना चाहूंगा। खबरें खोजने का हुनर मेरे पास था, लेकिन खबरों की प्रस्तुति कैसे हो यह मुझे मेरे गुरु श्री महेश श्रीवास्तव जी ने सिखाया। आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि हिन्दी लेखन में लगातार गलतियों पर मैंने अपने इन गुरुजी की डांट और मार दोनों खाई है। 1988 में मैं पत्रकार बनने का सपना लेकर ग्वालियर से भोपाल आया था। मेरे सपने को साकार श्री महेश जी ने किया। आज भी जब अटकता भटकता हूं तो महेश जी ही संभालते हैं, रास्ता दिखाते हैं।
आज मेरे पितातुल्य गुरु, मेरे स्थानीय अभिभावक आदरणीय श्री महेश जी का जन्मदिन है। उन्होंने जीवन के 81 वर्ष पूरे किए। मैं ईश्वर से कामना करता हूं कि वे शतायु हों और उनका आशीर्वाद हम जैसे सभी पुत्रवत शिष्यों पर बना रहे। उनके श्रीचरणों में प्रणाम.
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