Dayanadn Pandey : लोकतंत्र क्या ऐसे ही चलेगा या कायम रहेगा, इस बेरीढ़ और बेजुबान प्रेस के भरोसे? कार्ल मार्क्स ने बहुत पहले ही कहा था कि प्रेस की स्वतंत्रता का मतलब व्यवसाय की स्वतंत्रता है। और कार्ल मार्क्स ने यह बात कोई भारत के प्रसंग में नहीं, समूची दुनिया के मद्देनज़र कही थी। रही बात अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की तो यह सिर्फ़ एक झुनझुना भर है जिसे मित्र लोग अपनी सुविधा से बजाते रहते हैं। कभी तसलीमा नसरीन के लिए तो कभी सलमान रश्दी तो कभी हुसेन के लिए। कभी किसी फ़िल्म-विल्म के लिए। या ऐसे ही किसी खांसी-जुकाम के लिए। और प्रेस? अब तो प्रेस मतलब चारण और भाट ही है। कुत्ता आदि विशेषण भी बुरा नहीं है।
नरेंद्र मोदी की आज की चाय पार्टी में यह रंग और चटक हुआ है। सोचिए कि किसी एक पत्रकार ने कोई एक सवाल भी क्यों नहीं पूछा? सब के सब हिहियाते हुए सेल्फी लेते रहे, तमाम कैमरों और उन की रोशनी के बावजूद। मोदी ने सिर्फ़ इतना भर कह दिया कि कभी हम यहां आप लोगों के लिए कुर्सी लगाते थे! बस सब के सब झूम गए। गलगल हो गए। काला धन, मंहगाई, भ्रष्टाचार, महाराष्ट्र का मुख्य मंत्री, दिल्ली में चुनाव की जगह उपचुनाव क्यों, मुख्य सूचना आयुक्त और सतर्कता निदेशक की खाली कुर्सियां, लोकपाल, चीन, पाकिस्तान, अमरीका, जापान, भूटान, नेपाल की यात्रा आदि के तमाम मसले जैसे चाय की प्याली और सेल्फी में ऐसे गुम हो गए गोया ये लोग पत्रकार नहीं स्कूली बच्चे हों और स्कूल में कोई सिने कलाकार आ गया हो! मोदी की डिप्लोमेसी और प्रबंधन अपनी जगह था और इन पत्रकारों का बेरीढ़ और बेजुबान होना, अपनी जगह। लोकतंत्र क्या ऐसे ही चलेगा या कायम रहेगा, इस बेरीढ़ और बेजुबान प्रेस के भरोसे?
लखनऊ के पत्रकार और साहित्यकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से.
Comments on “किसी पत्रकार ने कोई सवाल नहीं पूछा, सब के सब हिहियाते हुए सेल्फी लेते रहे…”
Waise to Pandey ji ki baat sahi hai , magar Pandey ji ko jyada jalan is baat ki hai ki Modi ne unko party me nahi bulaya aur koi amantran nahi diya 😛
sharda chit fund ke bare me Sahara me kitna chhapa hai? Aap baa sakte hai Dayanandan ji.
kuch patrkaaro ne apna jameer apni kalam girvi rakh tdi hai agar kabhi chatukarita me prtham kaun ki prtiyogita ho to pahala inam ka faisla karne ke pahle mathapachchi karna padega