Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

मीडिया विमर्श 2 – मीडिया संस्थानों ने अपने सिद्धांत अपनी इच्छा से बेचे हैं, कभी कॉरपोरेट तो कभी सरकार के हाथों!

अनिल भास्कर-

मीडिया का अगर राजनीतिक अनुकूलन और उसके तटस्थता-निष्पक्षता के मूलभूत सिद्धांत का अवमूल्यन हुआ तो इसकी वजह सिर्फ मीडिया संस्थानों की धनपिपासा रही, कॉरपोरेट या राजनीतिक शक्तियां नहीं। हां, कॉरपोरेट और राजनीतिक शक्तियों ने मीडिया संस्थानों की इस पिपासा को पहचाना और खूब भुनाया। अपने मतलब के लिए उनकी पिपासा का शमन करते हुए उन्हें निष्पक्षता की पटरी से उतार दिया।

आशय यह कि यह भटकाव या अवमूल्यन जबरिया नहीं स्वैच्छिक रहा। दो उदाहरण पेश कर रहा हूं। बिहार में विज्ञापन व्यवसाय का जो कुल आकार है, उसका करीब तीन चौथाई हिस्सा यानी 75 फीसदी सरकारी विज्ञापनों का होता है। बाजार से सिर्फ 25 फीसदी राजस्व ही आता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अब अगर अखबारों/न्यूज चैनलों में विज्ञापन राजस्व जुटाने की होड़ हो तो सरकार के कामकाज की निष्पक्ष समीक्षा या उसकी नाकामियों, कारगुजारियों के खिलाफ लिखने या मुहिम चलाने की होड़ में कौन शामिल होगा? क्या विज्ञापन की होड़ में शामिल मीडिया संस्थान सरकार के सामने हमेशा दण्डवत नहीं रहेंगे? नीतीश कुमार की सरकार ने शुरू से आजतक मीडिया को किस तरह अपने नियंत्रण में रखा है, यह मीडिया जगत में छिपा नहीं है।

यही स्थिति दिल्ली की है। चालू वित्तवर्ष के लिए सरकार का विज्ञापन बजट 568 करोड़ रखा गया है। इसकी बंदरबाट सरकार को मीडिया हाउसों को उपकृत और उन पर काफी हद तक नियंत्रण की शक्ति देती है। हो सकता है कमोबेश ऐसी स्थिति अन्य कई राज्यों में भी हो, लेकिन मैं यहां सिर्फ इन दो राज्यों का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ कि यहां की सरकारों ने विज्ञापन जारी करने से पहले अक्सर मीडिया संस्थानों के साथ अघोषित समझौते किए हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

किसी एक खबर पर नाराजगी का सीधा असर सम्बंधित मीडिया संस्थान का विज्ञापन प्राप्तकर्ताओं की सूची से निष्कासन के रूप में प्रकट होता रहा है। जाहिर है जो मीडिया संस्थान विज्ञापन को वरीयता देंगे, वे संपादकीय आचार संहिता भी उन्हीं के अनुरूप तय कर आगे बढ़ेंगे।

इसी तरह केंद्र सरकार और मीडिया संस्थान के रिश्ते भी विज्ञापन में वरीयता और सम्पादकीय पक्षधरता के अनुपात तय कर रहे हैं। फिर यह कहना कि सरकार ने मीडिया की आजादी छीन ली, गलत होगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सही यह है कि अधिकतर मीडिया संस्थानों ने अपने मूल्य, अपने सिद्धांत अपनी इच्छा से बेचे हैं। कभी कॉरपोरेट तो कभी सरकार के हाथों। इसलिए अधिकतर मीडिया संस्थानों का राजनीतिक रुझान भी विचारधाराओं के आधार पर नहीं, सिर्फ अर्थसम्बन्धों के अनुसार पर तय होता है।

क्रमशः

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement