Sanjaya Kumar Singh : भड़ास पर छपी ‘पुण्य प्रसून बाजपेयी, सुप्रिय प्रसाद, राहुल कंवल और दीपक शर्मा कल क्यों जा रहे हैं लखनऊ?‘ खबर को पढ़कर एक पुरानी घटना याद आ गई। जनसत्ता के लिए जब मेरा चुनाव हुआ उन्हीं दिनों जमशेदपुर से निकलने वाले एक अंग्रेजी अखबार के संवाददाता की हत्या हो गई थी। पत्रकारिता को पेशे के रूप में चुनने से पहले मुझे यह तय करना था कि कितना खतरनाक है यह पेशा। मैंने जमशेदपुर के एक बहुत ही ईमानदार पत्रकार से इस बाबत बात की। उनसे लगभग सीधे पूछा था कि जिस पत्रकार की हत्या हुई उसकी तो कोई खबर मुझे याद नहीं है। दूसरी ओर आप एक से बढ़कर एक खबरें लिखते हैं – क्या आपको डर नहीं लगता धमकी नहीं मिलती।
तब उन्होंने कहा था कि अगर आप अपना काम करो, ईमानदारी से करो तो कोई बुरा नहीं मानता, कोई खुंदक नहीं पालता। लेकिन आप खबरें करने में सेलेक्टिव होगे, किसी के खिलाफ लिखोगे, किसी के खिलाफ नहीं तो स्थिति खराब होगी। उस समय तो मुझे लगा था कि उन्होंने पॉलिटिकली करेक्ट जवाब दे दिया था – अब लगता है कि मामला ऐसा ही है। पहले ईमानदारी से खबरें की जाती थीं और जब कोई प्रेस के खिलाफ होता था तो सभी प्रेस वाले मिलकर विरोध करते थे। अब आप सुविधा भी लोगे और खिलाफ भी लिखोगे – विज्ञापन ज्यादा चाहिए, प्लॉट कोने वाला चाहिए, वेज बोर्ड नहीं देने की आजादी चाहिए तो फिर विरोध कैसा। और फिर सामने वाला प्लॉट की कीमत याद दिलाएगा तो दूसरा क्यों साथ दे। यह सब किसी खास संस्थान में काम करने की कीमत है – ऑफिसियल ट्रिप है, ऐश कीजिए कंपनी के खर्चे पर। कोई पत्रकारिता नहीं है यह सब।
जनसत्ता समेत कई अखबारों में वरिष्ठ पद पर काम कर चुके पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.
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BADE LOG KI BADI BATE INLOGO KA KOI KUCH NAHI BIGAR SAKTA HAI.