रवीश कुमार, ओम थानवी और वीरेंद्र यादव ने फेसबुक को अलविदा कहा!

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Shambhunath Shukla : नया साल सोशल मीडिया के सबसे बड़े मंच फेस बुक के लिए लगता है अच्छा नहीं रहेगा। कई हस्तियां यहाँ से विदा ले रही हैं। दक्षिणपंथी उदारवादी पत्रकारों-लेखकों से लेकर वाम मार्गी बौद्धिकों तक। यह दुखद है। सत्ता पर जब कट्टर दक्षिणपंथी ताकतों की दखल बढ़ रही हो तब उदारवादी दक्षिणपंथियों और वामपंथियों का मिलकर सत्ता की कट्टर नीतियों से लड़ना जरूरी होता है। अगर ऐसे दिग्गज अपनी निजी व्यस्तताओं के चलते फेस बुक जैसे सहज उपलब्ध सामाजिक मंच से दूरी बनाने लगें तो मानना चाहिए कि या तो ये अपने सामाजिक सरोकारों से दूर हो रहे हैं अथवा कट्टरपंथियों से लड़ने की अपनी धार ये खो चुके हैं। इस सन्दर्भ में नए साल का आगाज़ अच्छा नहीं रहा। खैर 2015 में हमें फेस बुक में खूब सक्रिय साथियों- रवीश कुमार, ओम थानवी और वीरेंद्र यादव की कमी खलेगी।

Om Thanvi : नमस्कार। आदाब। दोस्तो, एक और साल जीवन से जाता है। नया आता है। आप सबको नया साल बहुत खुशगवार गुजरे; आपके घर, परिवार, मित्रों (और कहूँगा जो मित्र नहीं हैं उनके यहाँ भी) खुशियां आएं। आपके सपने पूरे हों; नए सपने बुनें, देखें। वे भी पूरे हों। नए साल की देहरी पर यह मेरी हार्दिक शुभकामना है। यह संदेश मेरी ओर से फिलहाल आखिरी संदेश है। साल विदा होता है और मैं भी। मुझे अभी फेसबुक से अवकाश चाहिए। बेमियादी। आखिरी यों कि नए जमाने का माध्यम है। अपने आप को आजमाना इतना ही था कि जमाने के साथ हैं या पिछड़ गए। प्रतिक्रिया और प्रेम का जो सैलाब उमड़ा वह यह बताने को काफी था कि फेसबुक कोई अजनबी दुनिया अपने लिए नहीं है। पर इसमें अब काफी वक्त हो चला। और फिलहाल यों कि इसमें लिखने-पढ़ने के काम अटके रहते हैं। उनके लिए समय चाहिए। फेसबुक को अपना समय चाहिए। जितने मित्र और पढ़ने वाले बढ़ते हैं, मेरी बेचैनी भी बढ़ती जाती है। इसलिए अंततः अवकाश लेता हूँ। कितना, कब तक – कुछ पता नहीं। फिर मिलेंगे गर खुदा लाया। नमस्कार। आदाब। साभिवादन, ओम थानवी।

Virendra Yadav : कुछ मित्रों का कहना है कि मुझे विवादों में नही पड़ना चाहिए . दरअसल मेरे लिए ये विवाद थे भी नही हस्तक्षेप ही रहे हैं . फिर भी सच तो यह है कि चाहे ‘रायपुर प्रसंग’ हो, सी आई ए-कमलेश का मुद्दा हो ,’छिनाल -प्रसंग’ हो या निराला-प्रेमचंद का भगवा अधिग्रहण हो या डॉ.धर्मवीर की प्रेमचंद को ‘सामंत का मुंशी’ की मुहिम या अन्य कई और प्रसंग हों ,हर मसले या मुद्दे पर मैंने अपनी सोच-समझ के अनुसार हस्तक्षेप किया है . यह करते हुए मैंने अपने कई अच्छे मित्रों को नाराज़ किया है और खोया भी है , वैसे इन मुद्दों पर साथ देने वाले साथी भी कम नही रहे हैं.लेकिन मुझे लगता है कि आम प्रवृत्ति व्यावहारिक चुप्पी की होती जा रही है .संगठन भी ‘कांख भी ढकी रहे और मुठ्ठी भी तनी रहे’ की व्यावहारिक भूमिका में ही ढलते जा रहे हैं. ऐसे में बेहतर यही है कि ‘काजी जी दुबले क्यों ,शहर के अंदेशे से’ मसल अपने ऊपर ही क्यों लागू करवाई जाय..इसलिए जरूरी है कि अपने लिखने-पढने पर अधिक केन्द्रित हुआ जाय और इस मुगालते से मुक्त हुआ जाय कि कुछ कहने -सुनने या सिद्धांत ,सरोकार या पक्षधरता आदि से कुछ बनना या बिगड़ना है .’ होईहै वही जो राम रचि राखा’ पर भरोसा न करने के बावजूद हो तो वही रहा है जो ‘राम’ रच रहे हैं. इसलिए मन है कि फिलहाल कुछ विराम लिया जाय अपने इस ‘विवादी’ स्वर से और फेसबुक से भी . अतः कह नही सकता कि यहाँ कब ,कितनी उपस्थिति हो पायेगी. वैसे भी असली मुद्दों का समर स्थल आभासी दुनिया न होकर वास्तविक दुनिया है. अतः फिलहाल जरूरत वहां ज्यादा है .अभी के लिए फेसबुक से लम्बा अवकाश .धन्यवाद मित्रों. आप सब को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.

वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल, ओम थानवी और साहित्यकार वीरेंद्र यादव के फेसबुक वॉल से.



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