आजतक के मालिक साहब अरुण पुरी जी कहते हैं कि लोकतंत्र खतरे में हैं और मीडिया पर हमले हो रहे हैं… दूसरी तरफ वे अपने ही चैनल में एंकर की कुर्सी पर भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा को बिठा देते हैं. कैसा दौर आ गया है जब मीडिया वालों को टीआरपी के कारण सिर के बल चलना पड़ रहा है. टीवी वाले तो वैसे भी सत्ताधारियों और नेताओं के रहमोकरम पर जीते-खाते हैं लेकिन वे शर्म हया बेच कर नेताओं-प्रवक्ताओं को ही एंकर बनाने लगेंगे, भले ही गेस्ट एंकर के नाम पर तो, इनकी बची-खुची साख वैसे ही खत्म हो जाएगी.
गेस्ट एंकर बनाना ही था तो किसी आर्टिस्ट को बनाते, किसी डाक्टर को बनाते, किसी बेरोजगार युवक को बनाते, किसी स्त्री को बनाते, किसी ग्रामीण को बनाते… किसी खिलाड़ी को बनाते… किसी संगीतकार को बनाते… किसी साहित्यकार को बनाते… किसी रंगकर्मी को बनाते…. अपनी रचनात्मकता और बौद्धिकता के बल पर दुनिया में नाम रोशन करने वाले किसी भी भारतीय को बना लेते… नासिक से मुंबई मार्च कर रहे किसानों में से किसी एक को बना लेते… जनांदोलनों से जुड़े किसी शख्स को बना लेते…
लंबा चौड़ा स्कोप था गेस्ट एंकर बनाने के लिए… लेकिन मोदी भक्ति में लीन न्यूज चैनलों को असल में कुछ भी दिखना बंद हो गया है… उनकी सारी रचनात्मकता अब किसी भी तरह भाजपा को ओबलाइज करते रहने की हो गई है… वे जज लोया कांड पर विशेष स्टोरी नहीं बनाएंगे… कोई सिरीज नहीं चलाएंगे… वे पीएनबी बैंक स्कैम के आरोपियों से मोदी जी के रिश्ते को लेकर पड़ताल नहीं करेंगे…
वे इन सब पर बुरी तरह चुप्पी साध जाएंगे लेकिन जब अगर तेल लगाने की बात आएगी तो भांति भांति तरीके से बीजेपी वालों को तेल लगाते रहेंगे… गाना गा गा के तेल लगाएंगे… अपना मंच उनके हवाले करके तेल लगाएंगे… जियो मेरे न्यूज चैनलों के छम्मकछल्लो….
किसी भी नेता को गेस्ट एंकर बनाने की इस खतरनाक प्रथा का मैं कड़ी निंदा करते हुए अपना विरोध दर्ज कराता हूं….
वैसे, आजतक को मेरी एडवांस सलाह है कि अपने दिवालियापन को विस्तार देते हुए अगले गेस्ट एंकर के तौर पर वह मोदी जी के दो खास उद्योगपतियों में मुकेश अंबानी जी या गौतम अडानी जी में से किसी एक को बुला लें… या चाहें तो क्रमश: दोनों को मौका दे दें… पत्रकारिता सदा अरुण पुरी एंड कंपनी की एहसानमंद रहेगी…
भड़ास एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से.
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Comments on “संबित पात्रा ‘आजतक’ न्यूज चैनल में एंकर बन गए… मुझे तो शर्म आई… आपको?”
संबित पात्रा का ‘‘आजतक’’ न्यूज चैनल के बेस्ट एंकर की कुर्सी पर विराजमान होना कोई आश्चर्य घटना नहीं है। देश की आजादी में निर्णायक भूमिका निभाने वाली और आपातकाल में तानाशाही का डटकर मुकाबला करने वाली भारतीय पत्रकारिता को यूं ही ‘‘गोदी मीडिया’’ नहीं कहा जा रहा है। विज्ञापन/राज्यसभा में जाने का मोह और अन्य सरकार प्रदत्त सुख सुविधाओं के मोह में मीडिया ग्रुपों के मालिकों/प्रबन्धकों ने सत्ता की चैखट पर नैतिकता, सिद्धान्तों, आदर्शवाद और शुचिता को तिरोहित कर दिया है। निष्पक्षता और तटस्थता की तो अपेक्षा ही मत कीजिये। मगर यह ज्यादा दिन नहीं चलेगा। देश की अधिकांश जनता स्वीकार करने लगी है कि वर्तमान मीडिया सत्ता का भोंपू बन चुका है। यह मीडिया के लिए खतरनाक है। यदि यही क्रम चलता रहा तो मीडिया अपनी निष्पक्ष छवि को गंवा देगा। मौजूदा मीडिया को लोकतंत्र का ऐसा चैथा खम्भा कहा जाने चाहिए जिसने सरकार की कमियों पर पर्दा डालने के लिए सरकार को बाहर से समर्थन दे रखा है।