कबीर साहेब क्यों हैं आज भी स्वीकृत और गौतम बुद्ध हो गए खारिज?

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Sumant Bhattacharya : इस धरती पर “कबीर साहेब” एकमात्र ऐसे संत हुए जिन्होंने लाठी लेकर “हिंदू और मुसलमानों” के आडंबर पर बरसाया। जितना उन्होंने गरिआया, और वो भी देसी भाषा में, उतना तो किसी और ने नहीं। बावजूद आज भी भारत में कबीर साहेब के 21 करोड़ से ज्यादा अनुयायी है। वहीं “गौतम बुद्ध” हुए। जिन्होंने एक संगठित धर्म की स्थापना की. “ब्राह्मण आडंबरों” की पुरजोर मुखालफत की, समृद्ध दर्शन भी दिया। फिर क्यों गौतम बुद्ध अपनी ही जमीन से खारिज हो गए और कबीर साहेब आज भी पूजे जाते हैं?

गौर करता हूं तो पाता हूं, कबीर साहेब ने इस जमीन के उच्च नैतिक आदर्शों पर जीवन को जिया। ना तो उन्होंने गौतम की तरह रात को सोती अपनी पत्नी और पुत्र को छोड़ पलायन किया और ना ही ब्राह्मण संस्कारों को कोसने के बाद हाथ में भिक्षा पात्र लेकर जीवन को जिया। कबीर साहेब ने परिवार के उत्तरदायित्वों का पूरी तरह निर्वहन किया और टिकटी पर कपड़ा बिन एक मानव के आत्मसम्मान को बनाए रखते हुए उच्च नैतिक जीवन को जीकर दिखाया। ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता कि संगठित धर्म खड़ा करने के नाम पर कबीर साहेब ने किसी से कोई अनुदान या फिर भक्तों से कोई चढ़ावा लिया हो। लेकिन गौतम तो इससे भी ना बचे। साफ है, ताकत संगठन में नहीं, नैतिक मानकों में हैं। शायद इसे कोई कूढ़मगज कभी समझें? कुछ चिंतक कहते हैं कि कबीर साहेब ने विकल्प नहीं दिया। तो मैं पूछता हूं कि क्या खारिज करने से बड़ा कोई विकल्प है? नहीं ना? लेकिन खारिज करने का मतलब “नया गिरोह” बनाना नहीं होता भाई?

शायद यही एक ऐसी धरती है, जहां रहने वाले, कोई किसी भी धर्म का क्यों ना हो., किसी भी विचार से क्यों ना जीवन जीता हो, लेकिन यदि उसने उच्च नैतिक मानकों को स्थापित किया तो इस देश के निवासी उसे स्वीकार कर पूजागृह में स्थान देने में तनिक कोताही ना करेंगे। मिसाल हैं, शिरडी के साई बाबा, जो मुसलमान फकीर थे, और इस जमीन के लोगों ने उन्हें अपने तमाम देवी-देवताओं के साथ पूजाघर में विराज दिया। शंकराचार्य की आवाज भी अनसुनी कर दी। है क्या दुनिया के किसी और धर्म या संप्रदाय है यह जिगर….? अफसोस, विनम्रता और स्वीकार करने के मानकों को कहीं बड़ी बेशर्मी के साथ कमजोरी करार दी जाती है। अपन कोई हिंदूवादी नहीं है, गाली भी देते हैं, कोसते भी हैं, लेकिन खूबियों को अंध बुद्धि से नकारने के भी पक्षधर नहीं हैं मित्रों।

वरिष्ठ पत्रकार सुमंत भट्टाचार्या के फेसबुक वॉल से.



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Comments on “कबीर साहेब क्यों हैं आज भी स्वीकृत और गौतम बुद्ध हो गए खारिज?

  • राहुल says:

    अरे भाई , गोतम बुद्ध के समय तक भारत में ना तो ब्राह्मण थे और ना ही वर्ण व्यवस्था और ना ही जाति व्यवस्था थी। ब्राह्मण भारत में लगभग 250 ईपू में आए। भारत में सिंधु सभ्यता से लगाकर 600ई तक बौद्ध धम्म ही मुख्य रहा। वैदिक धर्म की शुरुआत ही 600ई से हुई। गोतम बुद्ध कोई ब्राह्मणवाद का विरोध नहीं किया क्योंकि उस समय भारत में ब्राह्मण थे ही नहीं।
    गोतम बुद्ध ने राजपाट को जन कल्याण के लिए त्याग दिया। लोग साधु बनकर भी सत्ता हथियाने में लगे रहते हैं। कबीर और रैदास पहले से ही गरिब थे और उनको कुछ भी नया नहीं खोजना था क्योंकि बुद्ध का मार्ग उनको मिल गया था। बुद्ध को तो बौद्ध धम्म में कुछ नया खोजना था। गोतम बुद्ध ने सिंधु सभ्यता से चले आ रहे छः आरे के धम्म चक्र को आठ आरे का बनाया। गोतम बुद्ध बौद्ध धम्म के संस्थापक नहीं थे बल्कि परावर्तक थे। गोतम बुद्ध जितना बड़ा त्याग यानी राजा के पद का त्याग किया जनकल्याण के लिए उतना बड़ा त्याग आज तक किसी और ने नहीं किया।

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  • Gautam Buddha ko manane wale vishwa bhar mein hain jo kaafi aage Hain Bhiksha patra Dhamma k pracharko ko Diya taki vah pandito ki tarah Lalachi n banr upasak upasikao ko nahi Tathagat Gautam Buddha Patni ki Aagya lekar aaye the Raat k Andhere Mein Nahi !!

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