एमपी में पत्रकारिता के छात्र हत्यारे नाथूराम गोडसे को महापुरुष के रूप में पढ़ रहे

Pankaj Chaturvedi : मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार में पत्रकारिता के विद्यार्थियों को पढ़ाई जाने वाली एक किताब में महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को महापुरुष बता कर पढ़ाया जा रहा है । देश के भावी पत्रकारों को पढ़ाई जाने वाली किताबें भी देश की बदली हुई हवा के मुताबिक ढाल कर बनाई जाने लगी है। जिसका ताजा उदाहरण माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की पत्रकारिता पुस्तक में देखा जा सकता है।

पिछलग्गू बने एमपी के प्रमुख हिंदी अखबारों ने इस मुद्दे पर कलम चलाने का दुस्साहस नहीं दिखाया

नए मंत्रालय की घोषणा कर खुशियों का दिवास्वप्न दिखाते मुख्यमंत्री शिवराज….मान गए.. क्या नायाब तरीका खोज निकाला है मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने अपनी रिआया को खुशहाल बनाने का.. खुशियाँ बांटने के लिए हैप्पीनेस मंत्रालय खोलने की घोषणा कर डाली। इसे घोषणा वीरता के लिए बदनाम मुख्यमंत्री का गरीब जनता के साथ एक और क्रूर मज़ाक नहीं तो क्या कहें..? यह तो हो नहीं सकता कि मुख्यमंत्री को यह इल्म न हो कि महज मंत्रालय खोल देने से खुशहाली लाना मुमकिन नहीं..! यदि यही खुशहाली लाने का रामबाण होता तो उनसे ज्यादा सयाने नेता प्रधानमंत्री मोदी मुख्यमंत्री रहते कम से कम गुजरात मे तो इसे आजमा ही चुके होते..!

इस प्रकार का महिमामंडन अफसरों का दिमाग खराब कर अहंकारी बनाने में भरपूर योगदान देता है

भोपाल नगर निगम में जबसे तेजस्वी नायक के बाद छवि भारद्वाज के आयुक्त बनने की खबर आई है भोपाल के मीडिया का फोकस उन पर आ गया है। उनकी तैनाती की खबर फोटो के साथ छपी और अगले दिन फोन पर लिया गया मिनी इंटरव्यू फोटो के साथ छपा। इसके अगले दिन उनके कार्यभार ग्रहण करने के दिन की सूचना देने वाली खबर फिर फोटो के साथ छपी और फिर कार्यभार संभालने की खबर भी फोटो.

सिंहस्थ के प्रचार में सरकारी खजाना लुटाती शिवराज सरकार

सिंहस्थ पर्व जैसे विशुद्ध धार्मिक आयोजन मे सरकार की भूमिका कानून व्यवस्था और यातायात प्रबंध के अलावा ज्यादा से ज्यादा साफ सफाई और पानी की आपूर्ति तक सीमित रहनी चाहिए।  इसके बरक्स उज्जैन मे सिंहस्थ सरकारी आयोजन बन कर रह गया है और साधु संत और अखाड़े अतिथि की भूमिका मे सिमट गए हैं। सब जानते हैं कि सिंहस्थ आस्था का पर्व है और धर्मप्रेमी जनता तथा अंधभक्ति और अंधविश्वास मे डूबे श्रद्धालु खुद ब खुद वहाँ पहुँचते हैं।उन्हे बुलाने के लिए प्रचार की कतई जरूरत नहीं होती है। पिछले तीन सिंहस्थ के समय मैं मध्यप्रदेश के सरकारी प्रचार विभाग में कार्यरत था और पर्व के समय वहाँ जाता भी रहा था। तब केवल नाम मात्र की सरकारी विज्ञापनबाजी होती थी.