‘डॉन’ की पाक पत्रकारिता को सलाम कर रहे डा. वेद प्रताप वैदिक

-डा. वेद प्रताप वैदिक-

पाकिस्तान अपने लिए संकट पर संकट खड़े किए जा रहा है। उड़ी के आतंकी हमले के कारण सारी दुनिया में उसकी बदनामी तो पहले से ही हो रही थी, अब वहां की सरकार अपने पत्रकारों से भी भिड़ गई है। प्रसिद्ध अखबार ‘डॉन’ के संवाददाता सिरील अलमिदा पर वह बरस पड़ी है। अलमिदा का नाम ‘एग्जिट कंट्रोल लिस्ट’ में डाल दिया गया है याने वे अब विदेश-यात्रा नहीं कर सकते। उनका दोष यह है कि उन्होंने 6 अक्तूबर को ‘डॉन’ में एक लेख लिखकर सरकार और फौज की अंदरुनी बहस को उजागर कर दिया। उन्होंने बताया कि पंजाब के मुख्यमंत्री और नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ ने अपनी फौज और आईएसआई के अधिकारियों को काफी खरी-खोटी सुना दी।

मोदी की प्रचार कला ने पाक के घुटने टिका दिए हैं

सरताज अजीज के मुंह से यह सुनकर मुझे अचरज हुआ कि जब तक नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं, भारत-पाक रिश्ते नहीं सुधर सकते। अजीज का यह बयान बहुत मायने रखता है, क्योंकि वे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विदेशी मामलों के सलाहकार हैं। वे वास्तव में विदेश मंत्री ही हैं। नवाज शरीफ के पिछले कार्यकाल में वे विदेश मंत्री ही थे। वे काफी अनुभवी, उम्रदराज और संयत व्यक्ति हैं। ऐसा बयान उन्होंने क्यों दे दिया? अपनी पिछली पाकिस्तान-यात्रा के दौरान मैंने मियां नवाज़ शरीफ, सरताज अजीज और विदेश सचिव एजाज चौधरी से यही कहा था कि यदि पाकिस्तान का बर्ताव ठीक रहा तो नरेंद्र मोदी भारत-पाक संबंधों के इतिहास में नया अध्याय जोड़ सकते हैं।

बादशाह का शाह उर्फ पंचिंग बैग : इस ताजपोशी पर पुराने अध्यक्षों ने कसीदे क्यों काढ़े?

अमित शाह को दुबारा भाजपा अध्यक्ष बना दिया गया। यह क्या है? यह नरेंद्र मोदी की बादशाहत है। मोदी के बाद शाह और शाह के बाद मोदी याने मोदी की बादशाहत! अब सरकार और पार्टी, दोनों पर मोदी का एकाधिकार है। पार्टी-अध्यक्ष का चुनाव था, यह! कैसा चुनाव था, यह? सर्वसम्मत! याने कोई एक भी प्रतिद्वंद्वी नही। जब कोई प्रतिद्वंद्वी  ही नहीं तो वोट क्यों पड़ते? यह बिना वोट का चुनाव है। देश की सारी पार्टियों को भाजपा से सबक लेना चाहिए। याने कांग्रेस-जैसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों को भी! अभी तो अमित शाह अधूरे अध्यक्ष थे। देर से बने थे। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बने थे। उस समय के अध्यक्ष थे, राजनाथसिंह, जिनके नेतृत्व में मोदी जीते और प्रधानमंत्री बने।

पत्रकार वेद प्रताप वैदिक भी धुर मोदी विरोधी हो गए… पढ़िए उनका ताजा लेख

देश में मोहभंग का वातावरण जितनी तेज़ी से अब बढ़ता जा रहा है, उतनी तेज़ी से कभी नहीं बढ़ा। इंदिरा गाँधी से मोहभंग होने में जनता को 8-9 साल लगे,राजीव गाँधी के बोफोर्स का पिटारा ढाई साल बाद खुला और मनमोहन सिंह को इस बिंदु तक पहुँचने में 6-7 साल लगे लेकिन हमारे “प्रधान–सेवक” का क्या हाल है? प्रचंड बहुमत से जीतनेवाले जन—नायक का क्या हाल है? उसका नशा तो दिल्ली की हार ने एक झटके में ही उतार दिया था,और अब वसुंधरा राजे की रोचक कथाओं और सुषमा स्वराज की भूल ने सम्पूर्ण भाजपा नेतृत्व और संघ परिवार को भी कटघरे में ला खड़ा किया है।