अमित शाह को दुबारा भाजपा अध्यक्ष बना दिया गया। यह क्या है? यह नरेंद्र मोदी की बादशाहत है। मोदी के बाद शाह और शाह के बाद मोदी याने मोदी की बादशाहत! अब सरकार और पार्टी, दोनों पर मोदी का एकाधिकार है। पार्टी-अध्यक्ष का चुनाव था, यह! कैसा चुनाव था, यह? सर्वसम्मत! याने कोई एक भी प्रतिद्वंद्वी नही। जब कोई प्रतिद्वंद्वी ही नहीं तो वोट क्यों पड़ते? यह बिना वोट का चुनाव है। देश की सारी पार्टियों को भाजपा से सबक लेना चाहिए। याने कांग्रेस-जैसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों को भी! अभी तो अमित शाह अधूरे अध्यक्ष थे। देर से बने थे। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बने थे। उस समय के अध्यक्ष थे, राजनाथसिंह, जिनके नेतृत्व में मोदी जीते और प्रधानमंत्री बने।
राजनाथसिंह गृहमंत्री बने तो अध्यक्ष की खाली कुर्सी पर मोदी ने अपनी छाया बैठा दी- अमित शाह! मोदी-लहर ने अमित को शाह बना दिया। हरयाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू-कश्मीर- इन सब प्रांतों में जीत का सेहरा शाह के सिर बंध गया, अपने आप! लोकसभा में उ.प्र. की जीत का भी संपूर्ण श्रेय अमित शाह की गजब की राजनीतिक शैली और रणनीति को मिल गया। अब शाह बन गए बादशाह!
लेकिन ज्यों ही बदनाम कांग्रेस की लहर उतरी, मोदी का जादू फीका पड़ा, फूलता हुआ गुब्बारा पंचर हो गया। दिल्ली और बिहार ने दोनों गुब्बारे पिचका दिए। एक गुब्बारा तो पांच साल पूरे करेगा ही लेकिन दूसरे को बदलने का यह बढि़या मौका था लेकिन उसे अब आगे के तीन साल के लिए फिर उड़ा दिया गया है। क्यों? क्योंकि मोदी चतुर खिलाड़ी है।
अब दिल्ली और बिहार-जैसी मार फिर इसी साल पड़नेवाली है। प. बंगाल, तमिलनाडु, केरल और असम! मार पड़ेगी तो पड़े! बादशाह पर क्यों पड़े? शाह पर पड़ेगी। भूसे के थैले पर पड़ेगी! पंचिंग बैग पर! इसीलिए पंचिंग बैग की ताजपोशी पर पुराने तीन अध्यक्षों ने जमकर कसीदे काढ़े! भाजपा की सदस्यता तीन करोड़ से 11 करोड़ कर दी। 500 किमी रोज दौड़ रहे हैं। श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयालजी, अटलजी, मधोकजी, आडवाणीजी, जोशीजी किस खेत की मूली हैं, ऐसे महान व्यक्तित्व के सामने? संघ को भी ठंड लग गई है। वह मोटी रजाई ओढ़े खर्राटे खींच रहा है। बेचारे 11 करोड़ कार्यकर्ता क्या करें? वे बगले झांक रहे हैं।
लेखक डॉ. वेदप्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.
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