भड़ास के खिलाफ भड़ास निकालने वाले अभय को दिवाकर और अवनिन्द्र ने भी दिया जवाब, पढ़िए
भड़ास4मीडिया को शुरू से ही एक खुला, पारदर्शी और लोकतांत्रिक मंच बनाकर रखने की कोशिश की गई. यही कारण है कि जब जब भड़ास या इसके फाउंडर यशवंत के खिलाफ कुछ भी किसी ने लिखकर भेजा तो उसे पूरे सम्मान के साथ छापा गया. इसी क्रम में कल भड़ास के एक पाठक अभय सिंह का पत्र भड़ास पर प्रकाशित किया गया, साथ ही संपादक यशवंत द्वारा दिया गया क्रमवार जवाब भी… इसके पब्लिश होते ही दो प्रतिक्रियाएं भड़ास के पास मेल से आई हैं. बनारस से युवा पत्रकार अवनिंद्र और नोएडा से आईटी कंपनी के संचालक दिवाकर ने जो कुछ भेजा है, उसे नीचे प्रकाशित किया जा रहा है.
नोएडा से आईटी कंपनी के हेड दिवाकर प्रताप की चिट्ठी…
कल भड़ास के एक पाठक द्वारा यशवंत जी को भेजा गया एक पत्र पढ़ा जो भड़ास पर प्रकाशित हुआ. पाठक ने सवाल किया था कि ऐसा स्तरहीन पोर्टल चलाकर यशवंत क्या हासिल कर लेंगे. मैं भी बहुत दिनों से यही सोच रहा था, बस यशवंत जी को बता नहीं पा रहा था. मुझे भी यही लगता है कि भड़ास एक स्तरहीन पोर्टल है. असल में यशवंत जी का काम ही सिरे से स्तरहीन है.
आज जब मीडिया में तमाम स्तर बन गए हैं, यशवंत उनसे कोसों दूर हैं. क्या हैं वो स्तर, बताता हूँ. पहली स्तरहीनता है चाटुकारिता की. अक्सर मीडिया संस्थान राजनीति के एक धड़े से सम्बद्ध होते हैं. जो नहीं होते वो चल नहीं पाते, या फिर अंततोगत्वा वो चाटुकारिता के स्तर पर आ ही जाते हैं.
मुझे लगता है यशवंत का काम चाटुकारिता वाले इस स्तर पर बिलकुल खरा नहीं उतरता. वो अक्सर चाटुकारों को गरियाते पाए जाते हैं. सच को सच की तरह प्रस्तुत करके उन्होंने स्थापित स्तरों के परे जाने की ही कोशिश हमेशा की है. इसलिए उनका काम बिलकुल भी स्तरीय नहीं है.
दूसरी स्तरहीनता है धन कमाने की. हमारे यहाँ मीडिया संस्थानों को उनकी पैसे कमाने की कुव्वत के हिसाब से रैंक किया जाता है. अब ये पैसा कल्पवृक्ष से तो आता नहीं, जाहिर है मीडिया संस्थानों के निहित स्वार्थों को पूरा करने के लिए गलत तरीके से कमाए गए पैसे ही होते हैं. भले ही बाद में उनको विज्ञापन की आय बताया जाए.
तो वो जो पैसा कामने का स्तर है, यशवंत उससे भी कोसों दूर हैं. कह सकते हैं कि एक बहुत बड़ी स्तरहीनता है.
तीसरा स्तर है समझौता करने वाला स्तर. अधिकतर पत्रकार और उनके संस्थान समझौता करके ही चलते हैं. किसी का स्टिंग विडियो आया तो उससे पैसा लेकर उसको दबा दिया जाता है. किसी की अन्दर की खबर प्रकाशित होती है तो कुछ समय बाद हटा दी जाती है. ये जो स्तर कायम हो गया है, उसकी आवश्यकता को यशवंत नहीं समझ पा रहे हैं. तो यहाँ भी वो स्तर वाली पत्रकारिता से बहुत दूर हैं.
चौथा स्तर है भीरूपन का स्तर. आज तमाम अपराधी हर तरह से मीडिया को दबाने का काम कर रहे हैं. ऐसे में अपनी मीडिया की दूकान को चलाने के लिए ये संस्थान पूँछ दबाकर अक्सर दुबके हुए पाए जाते हैं. यशवंत यहाँ भी दुबकने को राजी नहीं. जेल जा चुके हैं, हमला भी झेल चुके हैं. पर भीरु बनने को राजी नहीं. ये भी निरी स्तरहीनता ही है. शायद इन भीरूओं की तरह रहे तो अवश्य स्तरीय कहलायेंगे.
ऐसे और भी तमाम स्तर हैं जहाँ यशवंत फिट नहीं बैठते. उनको चाहिए कि वो इन स्थापित स्तरों के अनुसार जल्द से जल्द स्तरीय पत्रकारिता की शुरुआत करें. तब हम जैसे तमाम पाठक उनके काम को सराहेंगे. उम्मीद है जल्द ही वो इन सारे स्तरों पर पहले से अधिक फिट होंगे और अपने पाठकों का अधिक से अधिक प्यार हासिल करेंगे.
दिवाकर प्रताप सिंह
[email protected]
बनारस से अवनिन्द्र कुमार सिंह का जवाब…
डियर यशवंत जी (जेल जिसकी जानेमन है), अभी-अभी व्हाट्सअप पर आप द्वारा भड़ास की खबरों को प्राप्त किया। रोजाना की तरह पहले सभी खबरों की हेडलाइन देखा। पहले मेरी नजर ‘जी न्यूज से रोहित सरदाना गए’ खबर पर टिकी, जिसके बाद अंत में ‘भड़ास के खिलाफ एक पाठक ने यूं निकाली अपनी भड़ास, ‘यशवंत जी, भड़ास का अंत आवश्यक हो गया है!’ नामक शीर्षक पर गई तो गाड़ी चलाते समय भी खुद को रोक नहीं पाया और लिंक पर क्लिक करके खबर खोला। पहले तो प्रिय अभय जी के पत्र को पढ़ा तो अचंभित रह गया फिर सोचा शायद अभय जी को यह मालूम न होगा कि किन परिस्थियों में भड़ास की शुरुआत हुई थी। मित्र आपके प्रश्नों के कुछ उत्तर आपको देने का प्रयास करता हूँ बाकी के खुद भड़ासी (यशवंत जी) ने दे दी है।
यशवंत जी जो अमर-उजाला और जागरण जैसे संस्थानों में नौकरी करने वाले वह पत्रकार थे जिसकी कलम जब सच्चाई न लिख पाती थी तो वह अपने अंदर का आक्रोश शांत नहीं कर पाते होंगे, शायद इसलिए भड़ास की शुरुआत हुई, जहा तक मैं जानता हूँ जीवन में प्रयोग करना यशवंत जी का रूटीन है। जहा तक बात मीडियाकर्मियों द्वारा यशवंत जी पर लात-घूसों से मारने का है आप उतने में ही घबरा गए मित्र। भड़ास के शुरु होने के बाद कई बड़े संस्थानों को पशीने छुटे थे अलबत्ता यशवंत जी को षड्यंत्र रचकर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जेल तक भेजा था, वहा भी यशवंत जी अल्हड़पन और मस्तमौला जीवन यापन करके जेल को ही ‘जानेमन’ बना लिए। जेल से छूटने के बाद जेलयात्रा का जो वृतांत ‘जानेमन जेल’ पुस्तक में लिखी उसे पढ़कर जेल नाम से भय समाप्त हो जाता है। भ्रष्ट और कारपोरेट मीडियाघराना कभी नहीं चाहता कि भड़ास सुचारु रुप से चले क्योंकि मिडियाघरानों के तहखाने की खबर, भ्रष्टाचार, यौनशोषण की बातें जनता तक पहुंचाने का कोई माध्यम न बचे।
मित्र अभय जी जिस भड़ास को आप स्तरहीन कह रहे है वह वास्तव में बाप है मीडिया का।कार्पोरेट और करप्ट मीडिया घरानों का। बात यादि अर्जित करने की है तो यशवंत जी को आर्थिक लाभ हुआ हो या नहीं मगर आत्मसंतुष्टि और लाखों पीड़ित मीडियाकर्मियों की दुआ अवश्य अर्जित हुई है।
रही बात ईमानदार और निष्पक्ष पत्रकारिता की मिसाल पेश करने की तोदिल्ली में बैठकर अकेले यशवंत जी यह काम नहीं कर सकते कारण स्पष्ट है मित्र जिस साथियों को वह जोड़ेंगे उन ईमानदार और निष्पक्ष पत्रकारों को अगले ही पल संस्थान बाहर का रास्ता दिखा देगा शायद आपको मालूम न हो कि कई मीडिया संस्थानों ने दफ्तर में भड़ास वेबसाइट को खोलने पर प्रतिबंध लगा रखा है।
मित्र आपने जो यशवंत जी से आशा कि है कि मीडिया में उनके जैसे साहसी, निडर पत्रकार की जरुरत है इसलिए भड़ास की जरुरत है। कारपोरेट मीडिया को आईना दिखाने चौथे स्तम्भ को उसकी अहमियत लगातार भड़ास बताता आया है और जो आपने भड़ास के शीघ्र त्याग की बात कही है वह होने से रहा क्योंकि जब-जब भड़ास से मदद की अपील की है तो चोरी-छिपे हजारों मीडियाकर्मियों ने देशभर से सहायता राशि भेजते होंगे क्योंकि उनका दर्द, अखबार मैनेजमेंट की तानाशाही और संपादक का तुगलकी फरमान का विरोध केवल भड़ास ही कर सकता है।
आप सबका बनारस का साथी
अवनिन्द्र कुमार सिंह
[email protected]
जिन सज्जन अभय सिंह ने भड़ास पर कल भड़ास निकाली थी, उनका एक और मेल आया है, वो इस प्रकार है…
यशवंत भैया
सादर प्रणाम
बेहद खुशी हुई कि आपने मेरी भड़ास का बड़ी बेबाकी से उत्तर दिया।पर हर प्रतिक्रिया पर तिलमिलाने की आदत से आज हर नेता,एंकर, पत्रकार पीड़ित है शायद सब्र का बांध अब टूट चुका है । मीडिया भी बिगबॉस का नकारात्मक शो बनकर रह गया है जहाँ प्रतिभागियों को लड़ा भिड़ाकर trp बटोरी जाती है। शायद स्वयं में बदलाव का ये सबसे सही समय है। मेरी आपसे बड़ी उम्मीद है और मेरा विश्वास है कि आप मेरा भरोसा नही तोड़ेंगे भड़ास से भी दूरगामी पहल करेंगे।
मैं आपके पोर्टल का अदना सा पाठक हूं ।न्यूज़,डिबेट देखने सुनने में मेरी गहरी रुचि है ।पत्रकारिता से मेरा दूर तक कोई वास्ता नहीं है ।बस दिल किया और आपको अपनी बात बता दी। पत्र में वर्तनी, वाक्यांश का दोष जरूर होगा क्योंकि अगर अंग्रेजी में टाइप करता तो शायद संवाद में कमी होती इसलिए मोबाइल पर जल्दी में हिंदी टाइप करना उचित समझा लेकिन मोबाइल पर हिंदी टाइप करना कितना कठिन है कि मेरी उंगलिया जवाब दे गई बेहतर होता कि मैं आपको हस्तलिखित पत्र स्कैन करके मेल कर देता।
मेरा आपसे यही सवाल था कि मीडिया के गुण दोषों में अपना समय बर्बाद करने की बजाय खुद एक बेहतर विकल्प बनने का प्रयास किया जाय। हम दूसरों को बदलने की कोशिश करने की बजाय खुद को ऐसा बनाये की लोग हमें देखकर अपनी गलतियों का आभास करें और उन्हें दूर करें।अगर आप किसी की भयंकर आलोचना करते है तो दो संभावनाये बनती हैं या तो आप सच्चे आलोचक हैं या ब्लैकमेलर।आज मीडिया ब्लैकमेलर की भूमिका में है जब उसके हित पूरे हो जाते है तो वे आलोचना बंद कर देते है।उदाहरण के तौर पर यूपी चुनाव में अखिलेश यादव ने लंबे समय तक ऐसा मीडिया मैनेज किया की जमीनी सच्चाई से दूर सारे पत्रकार लगातार गलत विश्लेषण कर रहे थे । चुनाव परिणाम के बाद अधिकांश पत्रकारों की राजनीतिक समझ पर खूब छीछालेदर हुई।आखिर क्या पत्रकारिता पर पेट भारी है।
मीडिया को ब्लैकमेलिंग का धंधा बनाकर अपना उल्लू सीधा करना आज आम है इसे बदलने की जरूरत है । ऐसा देखा जाता है कि जहाँ मीडिया के आर्थिक हित होते है वहाँ सही गलत का फर्क खत्म हो जाता है।
जब आप पर हमला हुआ तब मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि आपके भड़ास4मीडिया के अलावा कहीं भी इस बात की चर्चा तक नहीं हुई आप खुद ही अकेले लड़ते रहे।आखिर क्यों आप अकेले पड़ गए इसका आत्ममंथन आपको करना जरूरी है।
मुझे लगता है कि भविष्य में मीडिया में बड़ा बदलाव अत्यावश्यक है जिसकी आप एक बड़ी उम्मीद बन सकते है ।मैं एक पाठक हूँ अपनी राय रख सकता हूँ बाकी फैसला आपका है। भाषण में मेरा यकीन नही है हां पत्रकारिता के उभरते हनुमान को उनके बल, सामर्थ्य की की याद जरूर दिला सकता हूं।
शुरू से ही मीडिया के बदलते रंग रूप को देखकर गहरा संदेह होता है इसी को जानने के लिए भड़ास4मीडिया की मदद लेता रहा हूं।एक उम्मीद दिखती है लेकिन क्या ये सब पर्याप्त है। मेरी एक उम्मीद है कि भविष्य में ऐसा मीडिया हो जिसमे निष्पक्ष, ईमानदार लोग हो जो trp की होड़ से कोसो दूर हो। दिल्ली और हनीप्रीत के ड्रामे केअलावा देश के और भी हिस्सों की समस्याओं को सामने रखें।डिबेट में शांत संतुलित बहस हो। सत्ता के आगे रेंगने की बजाय उनसे सवाल पूछने का माद्दा हो।चैनल की विश्वसनीयता इतनी हो कि देश उस पर भरोसा करे लेकिन आज स्थिति बिल्कुल उलट है।इसमे बदलाव के वाहक आप बने यही ईश्वर से मेरी कामना है। बस एक उम्मीद से आपसे अपनी हाँफती उंगलियों को विराम देना चाहूंगा।
धन्यवाद
एक पाठक
अभय सिंह
मूल मसला इसमें है… भड़ास के खिलाफ एक पाठक ने यूं निकाली अपनी भड़ास, ‘यशवंत जी, भड़ास का अंत आवश्यक हो गया है!’