Yashwant Singh : गांव आया हुआ हूं. कल शाम होते-होते बिग्गन महाराज के गुजर जाने की खबर आई. जिस मंदिर में पुजारी थे, वहीं उनकी लाश मिली. उनके दो छोटे भाई भागे. मंदिर में अकेले चिरनिद्रा में लेटे बड़े भाई को लाद लाए. तख्त पर लिटाकर चद्दर ओढ़ाने के बाद अगल-बगल अगरबत्ती धूप दशांग जला दिया गया. देर रात तक बिग्गन महाराज के शव के पास मैं भी बैठा रहा. वहां उनके दोनों सगे भाइयों के अलावा तीन-चार गांव वाले ही दिखे.
बिग्गन महाराज गांव के सबसे गरीब ब्राह्मण परिवार के सबसे बड़े बेटे थे. अभाव और अराजकता के दुर्योग से वह भरी जवानी में बाबा बनने को मजबूर हुए. अगल-बगल के गांवों के मंदिरों पर रहने लगे. कुछ बड़े बाबाओं के शिष्य भी बने. बताया गया कि वह कल मरने से पहले एक यजमान के यहां जाकर उन्हें दीक्षा दी. गुरुमुख बनाया. बदले में उन्हें नया स्टील का कमंडल और एक बछिया मिली. जिस दिन उन्हें इतना कुछ मिला, उसी दोपहर उनके पेट में अन्न जल न था. उपर से तगड़ी धूप. बिग्गन महाराज मंदिर लौटे और गिर कर मर गए. शव के साथ बैठे लोग किसिम किसिम की चर्चाएं कर रहे थे. कौन जानता था अपने यजमान को मोक्ष-मुक्ति का मार्ग बता मंदिर लौट रहे गुरु पर इस मायावी संसार को अलविदा कहने के वास्ते मारण मंत्र का जाप शुरू हो चुका था.
बतकही जारी थी. पुरवा हवा की सरसराहट से बिग्गन महाराज के शव पर पड़ा चद्दर सर से पांव तक इस कदर फड़फड़ा रहा था जैसे पंडीजी बस अब कुछ बोलने के लिए उठने ही वाले थे. ताड़ी से तारी साथ बैठे एक सज्जन उदात्त भाव और तेज स्वर से कहने लगे- बिग्गन महराज गांजा के बाद हीरोइन पीने लगे थे. आजकल तो पैसे के लिए गांव आकर अपनी मां से लड़कर सौ पचास ले जाने लगे थे. जितने मुंह उतनी बातें. कईयों ने मौत को अनिवार्य सच बताया. कुछ ने बिग्गन महाराज की कम उमर होने का हवाला दिया. मुझे अजीब इच्छा हुई. तख्त पर लिटाए गए बिग्गन महाराज के चेहरे को देखने की. रात दो बजे के करीब उनके छोटे भाई ने महराज के चेहरे से चद्दर हटाया. लंबी बाबाओं वाली दाढ़ी और सांवला चेहरा. बिलकुल शांत. लग ही नहीं रहा था कि यह मरे आदमी का चेहरा है. जैसे वो सोए हों. ध्यान में हों. चिलम के असर के बाद मौन साध गए हों.
चार भाइयों में सबसे बड़े बिग्गन महाराज के गुजर जाने से उनके परिवार पर कोई असर न पड़ेगा. एक तो उनका खुद का कोई निजी परिवार न था. उनने शादी न की थी. कह सकते हैं शायद हुई ही न हो. इसलिए वे बाल ब्रह्मचारी कहलाए गए. दूसरे उनके जाने से सगे भाइयों को कभी कभार सौ पचास मां से मांग ले जाने के अप्रत्याशित कर्म से मुक्ति मिली.
हां, बुजुर्ग महतारी जरूर देर तक छाती पीट पीट कर रोती रहीं. शायद मां के कलेजे में उस बेटे के खास तड़प होती है जो थोड़ा मजबूर हो, जो थोड़ा शोषित हो, जो थोड़ा अव्यवस्थित हो, जो थोड़ा मिसफिट हो, जो गैर-दुनियादार हो, जो संघर्षरत हो.
शाम के समय मरने की खबर जब घर पहुंची तो नाती-नातिन के साथ बैठी बुजुर्ग महतारी छाती पीट पीट कर रोने लगी. अगल-बगल घरों की महिलाएं एक एक कर पहुंच कर उन्हें पकड़ कर दिलासा देने लगीं- ”होनी को कौन टाल सकता है मइया, चुप रहिए, भगवान को शायद यही मंजूर था.” पड़ाइन मइया कुछ गा-गा कर लगातार रोती बिलखती हिलती फफकती हांफती रहीं. शायद इस तरह बेटे को अंतिम बार पूरे दिल और पूरी शिद्दत से याद किया उनने.
मुझे बिग्गन महाराज के साथ बचपन के दिन याद आए. उनके साथ बगीचों में आम तोड़ना, उनके साथ पूड़ी खाने दूसरे गांवों में जाना, ढेर सारी शरारतों और बदमाशियों में उनको अपने विश्वासपात्र सिपाही की तरह साथ रखना. बिग्गन महाराज लायल थे. निष्ठा उनने कभी न तोड़ी. दोस्ती की तो खूब निभाया. बाबा बने तो उसी दुनिया के आदमी हो गए, बाकी सबसे नाता तोड़ लिया. बस केवल अपनी मां से नाता रखा. देखने या मांगने चले आते थे, आंख चुराए, मुंह नीचे झुकाए.
बिग्गन महाराज जीते जी मरने की कामना करने लगे थे. मौत के दर्शन और लाभ का शायद वह कोई रहस्यमय धार्मिक अध्याय बांच चुके थे. तभी तो वह दुनियादारों की तरह मौत से डरते न थे और मौत से बचने के लिए कोई उपक्रम न करते. जैसे वह मौत को चुनौती देते रहते. खुद को नशे में डुबोने के लिए वह अतिशय गांजा-चिलम पीने लगे.
बताते हैं कि जिस गांव के मंदिर पर वह पुजारी थे, उस गांव के कुछ नशेड़ियों की संगत में सुल्फा-हीरोइन को अपना बैठे. गांजे के असर की हद-अनहद वह जी चुके थे. उन्हें इसके परे, इससे भी दूर, अंतरिक्ष के पार, जाना था. सफेद धुओं के रथ पर सवार होकर जाना था. हीरोईन-सुल्फा ने इसमें उनकी मदद की होगी शायद.
इस नई शुरुआत ने इतना आनंदित किया कि वह इसे अपना गुरु बना बैठे. हीरोइन-सुल्फा की लत के शिकार बिग्गन महाराज को पहले कभी-कभार फिर अक्सर पैसे का अभाव खलने लगा. ऐसे में उन्हें अपनी मां याद आतीं जिनके अलावा किसी पर उनका कोई अधिकार न था. वह अपने घर आ जाते, चुपके से. मां से लड़ते-झगड़ते और आखिर में कुछ पैसे पा जाते. घर वाले थोड़े परेशान रहने लगे. उनके लिए बिग्गन महराज की यह आदत नई और अप्रत्याशित थी. छोटे तीन भाइयों के बच्चे-पत्नी हैं. वे छोटे-मोटे काम धंधा कर जीवन गृहस्थी चलाने में लगे रहते. पैसे का अभाव सबके लिए एक बराबर सा था. ऐसे में मां जाने कहां से सौ-पचास उपजा लेतीं और बिग्गन महाराज को डांटते डपटते, आगे से आइंदा न मांगने की लताड़ लगाते हाथ पर चुपके से धर देतीं.
बिग्गन महाराज की मिट्टी को जब आज सुबह अंतिम यात्रा पर ले जाया गया तो मैं गहरी नींद में था. देर रात तक सोए बिग्गन महाराज संग जगा मैं जीवन मौत के महात्म्य को समझता गुनता रहा. घर आकर बिस्तर पर गिरा तो सुबह दस बजे आंख खुली. तब तक बिग्गन महाराज गांव से कूच कर चुके थे. उनके शरीर को गंगा के हवाले किया जा चुका था. उन्हें साधुओं सरीखा सम्मानित सुसज्जित कर जल समाधि दी गई.
इस देश में अभाव और गरीबी के चलते जाने कितने बिग्गन महाराज भरी जवानी बाबा बनने को मजबूर हो जाते हैं. फिर इस मजबूरी को ओढ़ने के लिए नशे के धुएं में उड़ने लगते हैं. बिग्गन महाराज हमारे गांव के लिए कोई उतने जरूरी शख्स नहीं थे. वैसे भी गांव में गरीब और गरीबी के हमदर्द-दोस्त होते कहां हैं. बिग्गन महाराज किसी से कुछ न बोलते और गांव से परे रहते. बेहद गरीब परिवार के सबसे बड़े बेटे बिग्गन महाराज को पता था कि उनके लिए कोई निजी इच्छा रखना, किसी कामना को पालना नामुमकिन है इसलिए उनने इसे विरुपित करने वाले चोले को ओढ़ लिया. एक आकांक्षाहीन जीवन को साधु के चोले से ही दिखावट कर पाना संभव था.
बिग्गन महाराज का जाना मेरे लिए बचपन के एक निजी दोस्त का असमय काल के गाल में समाना है. उनने जिस राह को चुना और आगे जिस राह पर जाने को इच्छुक थे, बाबागिरी से मृत्यु यात्रा तक, इसका सफर उनने रिकार्ड कम समय में, बेहद सटीक-सधे तरीके से की. शायद देश के करोड़ों युवा बिग्गन महाराजों के लिए इस व्यवस्था ने मोक्ष और मुक्ति के लिए यही आखिरी रास्ता बुन-बचा रखा है जिससे परे जाने-जीने के लिए कोई विकल्प नहीं है.
राम-राम बिग्गन महाराज.
नई दुनिया के लिए शुभकामनाएं. इस लुटेरी-स्वार्थी दुनिया से जल्द निकल लेने पर बधाई.
दोस्त, अगले जनम किसी अमीर घर ही आना!
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से. संपर्क : [email protected]
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om
June 30, 2017 at 11:34 am
दोस्त, अगले जनम किसी अमीर घर ही आना
gajab YASHWANT , sunder ctitran, aapko duain lgegi
Kashinath Matale
June 30, 2017 at 11:38 am
राम-राम बिग्गन महाराज.
नई दुनिया के लिए शुभकामनाएं. इस लुटेरी-स्वार्थी दुनिया से जल्द निकल लेने पर बधाई.
मेरे दोस्त, अगले जनम किसी अमीर घर ही आना !
Bahot hi Sahi
Yashwant Singh Bhai ne Salami Di hai Biggan Maharaj ko.
Janma Aur Mrutu ka sahi aaklan kiya hai.
Roy Ya Aakash ki or dhekhe Samaj nahi aata.
Ram Ram Biggan Maharaj.