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सियासत

गोरों की तरह बदमाश है भारत में कालों की सरकार!

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों… तो क्या ऐसा ही वतन आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों ने हमारे हवाले किया था, जैसा हमने इसे बना दिया है? क्या ऐसे ही वतन के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने हंसते हंसते फांसी का फंदा चूमा था? देश को आजाद कराने के लिए हिंदुओं की ही तरह मुसलमानों ने भी आपस में मिलकर अंग्रेजी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था। गोरों की सरकार ने अपनी फौज के माध्यम से हिंदुओं, सिखों, मुसलमानों आदि पर बेइंतिहा जुर्म ढाये। ईसाई अंग्रेजों के अत्याचार की चपेट में इसलिए नहीं आये कि वे खुद ईसाई व इससे मिलती-जुलती कौम के थे।

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अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों… तो क्या ऐसा ही वतन आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों ने हमारे हवाले किया था, जैसा हमने इसे बना दिया है? क्या ऐसे ही वतन के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने हंसते हंसते फांसी का फंदा चूमा था? देश को आजाद कराने के लिए हिंदुओं की ही तरह मुसलमानों ने भी आपस में मिलकर अंग्रेजी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था। गोरों की सरकार ने अपनी फौज के माध्यम से हिंदुओं, सिखों, मुसलमानों आदि पर बेइंतिहा जुर्म ढाये। ईसाई अंग्रेजों के अत्याचार की चपेट में इसलिए नहीं आये कि वे खुद ईसाई व इससे मिलती-जुलती कौम के थे।

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आज देश की सबसे बड़ी आबादी हिंदुओं का अल्पसंख्यक ईसाइयों के प्रति उतना आक्रोश घृणा नफरत नहीं है जितना अल्पसंख्यक मुसलमानों के प्रति। कमोबेश यही हालत मुसलमानों में हिंदुओं के प्रति है। आखिर क्यों? मुगल शासकों ने हिंदुओं पर शासन किया और शासन के लिए अत्याचार किया। अंग्रेजों ने हिंदुओं और मुसलमानों दोनों पर शासन किया और इसके लिए जुल्म भी दोनों पर ढाये। आज न हिंदुओं का और न ही मुसलमानों का गुस्सा अंग्रेजों या अंग्रेजी कौम के प्रति है। हिंदुओं के लिए मुसलमान और मुसलमानों के लिए हिंदू कट्टर दुश्मन हो गए हैं, लेकिन ईसाई और अंग्रेज कतई नहीं। आज स्थिति यह है कि पाकिस्तान ही नहीं सारे मुस्लिम देश हमारे आंख की किरकिरी हैं लेकिन ब्रिटेन नहीं।

अपने ही देश में आज स्थिति ऐसी पैदा कर दी गई है कि हिंदू बहुल मोहल्ले से गुजर रहे मुसलमान को एक गेंद लग जाए या मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में बारिश से बचने के लिए किसी छत के नीचे खड़े मुसलमान के सिर पर लिंटर की ईंट लग जाए तो दंगा हो जाए। आजादी की लड़ाई में हर जाति, हर धर्म और संप्रदाय के लोगों ने हिस्सा लिया। इन सबने अपने-अपने सामर्थ्य के हिसाब से ब्रिटिश साम्राज्यवाद का विरोध किया। अलग-अलग जाति और धर्म को मानने के बाद भी सबका लक्ष्य एक था देश की आजादी। हां, यह जरूर कहते हैं कि आर.एस.एस. ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया। जिन आरएसएस के लोगों ने हिस्सा लिया उन्होंने यातना न सह पाने के लिए अंग्रेजों से माफी मांगी और फिर छूटने के बाद वायदे के अनुसार अंग्रेजों की मदद की।

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गोरों के समय में जो हालात थे कमोबेश वही हालात हम कालों के समय में भी है। तब भी जरा-जरा सी बात पर हम मरने-मारने पर उतारू हो जाते थे। आज भी हो जाते हैं। तब भी एक कौम दूसरे कौम से लड़ना नहीं चाहती थी बल्कि उसे लड़ाया/लड़वाया जाता था। आज भी लड़ना नहीं चाहती है लेकिन उसे लड़वाया जाता है। पहले अंग्रेज लड़वाते थे ताकि ये लड़ते रहें और वो शासन करते रहें पर आज कौन लड़वा रहा है और क्यों लड़वा रहा है? पहले ब्रिटिश सरकार ने गाय और सूअर की चर्बी की आड़ में लड़ाने का प्रयास किया आज तीन तलाक, धर्म परिवर्तन / घरवापसी के नाम पर लड़ाने का प्रयास कर रहे हैं। मुझे तो लगता है गोरों की सरकार से ज्यादा बदमाश है कालों की सरकार।

अरुण श्रीवास्तव

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वरिष्ठ पत्रकार

देहरादून

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संपर्क : 7017748031 , 8881544420 , [email protected]

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