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सुख-दुख

आज है ‘जेल दिवस’, जानिए ‘जानेमन जेल’ के आगे पीछे की अनकही कहानी

आज ‘जेल दिवस’ है. आज के ही दिन वर्ष 2012 में कुछ कारपोरेट और करप्ट संपादकों-मीडिया मालिकों ने मिलकर मुझे पुलिस के जरिए उठवाया, थाने के हवालात में बंद कराया फिर जेल भिजवा दिया. पूरे 68 दिन गाजियाबाद के डासना जेल में रहा. उन दिनों नोएडा यानि गौतमबुद्धनगर का जेल भी डासना ही हुआ करता था. अब नोएडा का अपना खुद का जेल हो गया है जिसके बारे में बताया जा रहा है कि काफी आधुनिक किस्म का है, हालांकि यहां अभी जाना नहीं हो सका है. तो बता रहा था कि आज मेरे लिए जेल दिवस है.

उन दिनों समाचार प्लस चैनल के संचालक उमेश कुमार अपने काफी अच्छे मित्र हुआ करते थे. उमेश जी के बारे में खास बात ये है कि वे जिनके अच्छे मित्र होते हैं, उसे ही मौका मिलने पर नाप देते हैं या उसी के कंधे पर सीढ़ी लगाकर उपर चढ़ने के बाद सीढ़ी समेत उस आदमी को धक्का देकर गिरा कर हाथ धो पोंछ लेते हैं. विनोद कापड़ी तब इंडिया टीवी का संपादक हुआ करता था. इसकी दूसरी पत्नी साक्षी जोशी उर्फ साक्षी कापड़ी भी पत्रकार हुआ करती थी. कापड़ी को भड़ास शुरू होने के कई सालों तक दर्जनों बार रात को फोन कर गरियाया क्योंकि उसके चक्कर में दैनिक जागरण से नौकरी गई थी, और यह मलाल रात में दारू पीने के बाद उभर आया करता था, सो उसे फोन कर गालियां निकलने लगती थीं. ज्यादातर लोगों को नहीं पता होगा कि भड़ास की शुरुआत के पीछे असल प्रेरणा विनोद कापड़ी जी ही हैं.

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तब मैं दैनिक जागरण नोएडा में हुआ करता था और एक रात स्टार न्यूज के तत्कालीन संपादक विनोद कापड़ी से जमकर हुई फोन पर गाली गलौज के बाद जागरण ने कापड़ी के प्रभाव में मुझे पैदल कर दिया. इसी प्रक्रिया में भड़ास की शुरुआत हुई कि पहले जमकर चिरकुट संपादकों हरामी मीडिया मालिकों को गरिया लूं, उसके बाद जाकर गांव पर खेती करूंगा. लेकिन मेरी गाली खत्म हुई तो देखा कि पूरी मीडिया में शोषितों उत्पीड़ितों की गाली भड़ास भरी बसी पड़ी है और इसे निकलने निकालने का कोई मंच नहीं है. सो, भड़ास देखते ही देखते आम मीडियाकर्मियों के दुख सुख का मंच बन गया और मीडिया प्रबंधन के लिए खतरे की भीषण घंटी. इस तरह कापड़ी जी द्वारा मेरे खिलाफ चलाए गए सफल नौकरी छोड़ाऊ अभियान से भड़ास का श्रीगणेश हुआ और गाड़ी चल निकली. यानि नौकरी से आत्मनिर्भरता की ओर बड़ा कदम बढ़ाने को मजबूर किया माननीय कापड़ी जी ने.

मेरी गालियाों से तंग आकर दूसरी बार वाला सफल जेल भेजाऊ अभियान भी कापड़ी जी के ही नेतृत्व में चलाया गया लेकिन कापड़ी जी के बहाने इसमें भागीदार हो गया ज्यादातर शीर्षस्थ हिंदी मीडिया प्रबंधन. कापड़ी ने रंगदारी मांगने, इनकी पत्नी छेड़ने और कई किस्म के आरोप लगाते हुए एफआईआर क्या दर्ज कराया, मीडिया हाउसों ने निलकर नई नई आई तबकी यूपी की अखिलेश सरकार को मैनेज कर उपर से पुलिस को आदेश दिलवा दिया कि यशवंत नामक खूंखार अपराधी को तुरंत अरेस्ट कर लंबे वक्त के लिए जेल भेजा जाए. सो, पुलिस भी ढूंढ ढूंढ कर धाराएं लगाने लगी और यशवंत एंड भड़ासी गैंग को देश का सबसे खूंखार गैंग टाइप बताते हुए जिंदा या मुर्दा पकड़ने में जुट गई.

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उमेश जी की कृपा से इनके आफिस से बाहर निकलते वक्त नोएडा पुलिस की सादी वर्दी में आई टीम ने मुझे अरेस्ट कर लिया. हालांकि उमेश ने दिखावटी एक्शन, भागादौड़ी और मदद आदि के नाटक भरपूर किए लेकिन यह राज बाद में खुल ही गया कि असल मुखबिरी किसी और ने नहीं बल्कि उमेश ने की थी. भड़ास के साथी और तत्कालीन संपादक अनिल सिंह से लेकर ढेर सारे लोगों ने उमेश की कार्यशैली और हरकतों को वॉच करते हुए बाद में इसकी पुष्टि की. जिस दोपहर मुझे उमेश के आफिस से अरेस्ट किया गया तब वहां उमेश और नोएडा पुलिस की फिक्सिंग वाली झड़प दिखी. उसी के बाद उमेश अति सक्रिय हो गया.

उमेश ने पहले तो घर वालों को गफलत में रखा, सच नहीं बताया कि मैं अरेस्ट हो गया. घरवालों को पता ही तब चला जब अखबार में खूंखार टाइप खबर छप गई और उन लोगों ने पढ़ लिया. उमेश आज के ही दिन 2012 में भड़ास के तत्कालीन संपादक अनिल सिंह को डराने भागे रहने वाली बातें कहने लगा. खुद की लोकेशन के बारे में गलत जानकारी दूसरों को देता रहा. फोन करने वालों को इधर-उधर की बातें बताते हुए इस ‘गंभीर’ मामले में चुप रहने या तटस्थ हो जाने की तरफ इशारा करने लगा. कुल मिलाकर उमेश का बेहद संदेहास्पद और मित्र विरोधी रवैया सामने आया. जेल जाने के बाद वह जेल में भी मिलने कुछ दिनों तक आता रहा और उसके बाद फाइनली आना, हाल लेना बंद कर दिया. वह अपने हिसाब से यह स्थापित कर चुका था कि यशवंत के लिए मित्रता में उसने बहुत कुछ कर दिया है. सोचिए, जो दोस्ती को सिर्फ पैसे लेने देने से तौलता हो वह शख्स कैसा होगा? मुझे अंदर बाहर का सारा फीडबैक मिलता रहा लेकिन मैंने छोटी छोटी चीजों बातों पर ध्यान नहीं देने का फैसला किया और उस पर अडिग रहा, बहुत दिनों तक.

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बुरा तब लगने लगा, जेल यात्रा के काफी बाद, जब उमेश वैसे तो यात्राएं मीटिंग बैठकें करता रहता दिल्ली मुंबई लखनऊ की ओर लेकिन जब मैं फोन करूं तो अपनी पत्नी से कहलवाता कि ”भइया, वो बहुत बीमार हैं, फोन तक नहीं उठा पा रहे हैं”. बड़े बनने का उसे ऐसा दौरा पड़ा कि हम जैसे सामान्य लोगों का फोन उसके लिए गैर-जरूरी हो गया. आज दर्जनों सिक्योरिटी गार्डों से घिरा भाजपा का दुलारा उमेश कुमार असल में कितना बहादुर और कितना यारबाज है, इसे कोई ठीक से जानता है तो वो मैं हूं. जब निशंक उत्तराखंड के सीएम थे और इस पर दर्जनों मुकदमें लादे थे तो इसके साथ कोई न खड़ा था, सिवाय हम जैसे दो चार मित्रों के.

तब दिन रात उमेश पुलिस से बचता भागता रहता. देश से लेकर विदेश तक भागा दौड़ा. एक बार अपने नोएडा के घर पर घिर गया तो रात दस ग्यारह बजे हम लोगों ने जाकर उसे रेस्क्यू किया और पुलिस से बचा पाए. दर्जनों बार ऐलानियां लिख कर खुल कर उमेश के साथ खड़ा हुआ और पूरी की पूरी उत्तराखंड की स्टेट मशीनरी की निगाहों में मैं भी खटकने लगा. उत्तराखंड सरकार की तरफ से कुछ लोगों ने पैसे विज्ञापन के आफर दिए, उमेश का साथ छोड़ने के लिए लेकिन इसे ऐलानिया मैंने ठुकरा दिया और सब चीजों के उपर दोस्ती को रखे रहा. अगर पैसा प्रमुख होता मेरे लिए तो आज भड़ास न होता, कहीं मैं भी न्यूज एडिटर या एडिटर टाइप की नौकरी कर रहा होता या फिर उत्तराखंड सरकार के कुछ अफसरों का आफर स्वीकार करके उमेश कुमार का साथ उसी दौर में छोड़ गया होता.

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पर उमेश को अब भी अपने पैसे की इतनी गर्मी है कि वह तुरंत हर किसी को पैसे से तौलने लगता है कि उसने इतना दिया, तब दिया, अब दिया, बहुत दिया टाइप बोल के. उसे ये नहीं पता कि जो कंपनी टू कंपनी किसी एग्रीमेंट के तहत पेमेंट होता है, वह एहसान दान या खैरात नहीं होता बल्कि हक होता है. जरूरत पड़ने पर उधार लेना और उसे समय से लौटा देना कोई पाप नहीं. लेकिन धन की आंखों से सब कुछ को देखने वाला उमेश कुमार असल में एक ऐसे असाध्य ‘रोग’ से पीड़ित है जिसका कोई इलाज नहीं. यह है अतिशय महत्वाकांक्षा का रोग और हर किसी को अपना चेला बना लेने बता देने का रोग. जो लोग दोस्ती नहीं करना जानते वो या तो किसी के चेला बन जाते हैं या फिर दूसरों को चेला बनाने की फिराक में रहते हैं. बड़े लोगों के आगे बिछ बिछ जाना और सामान्य लोगों को गालियां देना, पैसे से तौलने की बात करना निकृष्ट मानसिकता का परिचायक होने के साथ साथ एक किस्म का मनोविकार भी है. झूठ बोलना और बड़े बड़े दावे करने का रोग तो जैसे उमेश के लिए पैदाइशी फितरत हो. खैर, मैं इस बात का कतई बुरा नहीं मानता कि आप मेरे साथ क्या सलूक करते हैं, मेरे बारे में क्या सोचते हैं, मेरे लिए कैसी भावनाएं रखते हैं क्योंकि अगर प्रकृति नियति ने मेरा बुरा कतई न होने देने का इरादा कर रखा है तो मनुष्यों के सोचे किए क्या होता है. और, कई बार ऐसा भी हो जाता है कि आप किसी का बुरा करने जाओ, लेकिन बदले में उसका भला हो जाए.

कापड़ी और उमेश पहले से ही अच्छे मित्र थे. बाद में इनकी यारी की जुगलबंदी में ‘मिस टनकपुर हाजिर हो’ नामक फिल्म बनी जो बुरी तरह फ्लाप हो गई. आज के दिन 2012 में सुबह सुबह कई लोगों के फोन मेरे पास आए जो मेरे घर का पूरा पता मांग रहे थे. इनमें एक महिला पत्रकार भी थीं. इनमें से ज्यादातर को नहीं पता था कि मेरा पता उनसे किस मकसद से मांगा मंगवाया जा रहा है. मेरा शुरू से नियम है कि मैं घर का पता जल्द किसी को नहीं देता क्योंकि मेरा मानना है कि घर में आफिस को और आफिस में घर को नहीं मिक्स करना चाहिए. अभी पिछले दिनों ही आजतक चैनल से किसी का फोन आया था जो मेरे घर का पता मांग रहे थे, ‘गिफ्ट’ भेजने के लिए. मैंने उनसे हंसते हुए कहा कि गुरु, लीगल नोटिस या पुलिस भिजवाना होगा तो जान लो, लीगल नोटिस मेरे मेल आईडी पर भेज दो और पुलिस को कह दो कि मेरे मोबाइल नंबर की लोकेशन ट्रेस कर ले, मैं जहां बैठा हूं इस वक्त वहां अगले 48 घंटे तक बैठा रहूंगा. वो सज्जन लगे हंसने.

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बाद में बताया कि लीगल नोटिस भिजवाने के लिए ही आफिस ने मांगा था. हालांकि वो लीगल नोटिस आजतक से आजतक नहीं आई, शायद केवल डराने और डरा कर खबर हटवाने की कवायद रही होगी. लेकिन यह सच है कि महीने में दस पांच लीगल नोटिस देश के किसी न किसी कोने से आ ही जाते हैं. और, यह सब लीगल नोटिस, पुलिस, थाना, कचहरी, जेल आदि के बारे में मैं शुरू से ही सचेत था कि ये सब होगा क्योंकि भड़ास4मीडिया के जरिए जो काम हम लोग कर रहे थे, वह पहले कभी नहीं हुआ था. मीडिया को बीट मानकर उसके खिलाफ लगातार लिखना, एक्सपोज करना मीडिया मठाधीशों को कतई बर्दाश्त नहीं था क्योंकि अब तक वो दुनिया के बारे में लिखते थे और अपने पैरों में सबको झुकाते थे लेकिन एक भड़ास4मीडिया आ गया जो उनके खिलाफ न सिर्फ लगातार लिख रहा है बल्कि किसी किस्म धमकी, नोटिस, पुलिस से डर नहीं रहा है.

हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा 20 करोड़ रुपये का मानहानि का मुकदमा भड़ास पर पहला मुकदमा था जो अब भी चल रहा है. यह मुकदमा हिंदुस्तान अखबार से दर्जनों लोगों की छंटनी किए जाने के बाद मृणाल पांडेय एंड प्रमोद जोशी गैंग ने कराया था. हालांकि नियति का खेल देखिए कि जिसने जिसने भड़ास4मीडिया का बुरा चाहा, वह ही एक एक कर निपटते चले गए. इन दोनों की हिंदुस्तान अखबार से शोभना भरतिया ने छुट्टी कर दी. लेकिन मुकदमा एचटी मीडिया लिमिटेड की तरफ से था, इसलिए वो जारी है और हर तारीख पर एचटी मीडिया के बड़े बड़े वकील लंबी चौड़ी फीस कंपनी से वसूल रहे हैं. भड़ास की तरफ से जो वकील साब उमेश शर्मा जी हैं, वो फ्री में एचटी मीडिया से भिड़े हुए हैं और उनका दावा है कि हम लोग इन्हें न सिर्फ हराएंगे बल्कि इनके खिलाफ मानहानि और जुर्माने का दावा करेंगे.

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जब डासना जेल गया तो जैसे सारे मीडिया मालिकों और पीड़ित संपादकों को मन मांगी मुराद मिल गई. जागरण वाला संजय गुप्ता अपने तत्कालीन चेले निशिकांत ठाकुर के माध्यम से एक अन्य फर्जी मुकदमा मेरे और मेरे संपादक अनिल पर दर्ज करवा दिया. आलोक मेहता टाइप चिरकुट संपादक अपने नेशनल दुनिया अखबार में पहले पन्ने पर फोटो समेत पांच पांच कालम खबर छापने लगा. दैनिक जागरण ने गिरफ्तारी के बाद की मेरी तस्वीर और मेरी ‘करतूत’ का वर्णन बढ़ा चढ़ा कर आल एडिशन किया जिससे मेरे गांव तक में मेरे बारे में कहानी पहुंच गई कि अब यशवंत को ऐसा वैसा मत समझो, अब ये हो गया है ‘बड़ी’ काम की चीज. शशि शेखर की वर्षों पुरानी दबी कुंठा इच्छा छलछला के बाहर निकल आई और हिंदुस्तान अखबार में दबाकर छापने लगे मेरे और भड़ास के खिलाफ खबर. ऐसे ही दर्जनों मालिकों संपादकों पत्रकारों ने, दिल्ली से लेकर मुंबई तक, उन दिनों बदला लेने, खुन्नस निकालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. तो जो लोग मेरे बारे में नहीं जानते थे, भड़ास के बारे में नहीं जानते थे, उन तक इन मीडिया वालों ने मेरा व भड़ास का परिचय पहुंचा दिया. मैंने मन ही मन कहा- आइ लाइक इट 🙂

खैर, बात कर रहे थे हम लोग आज जेल दिवस की. तो, पुलिस सुबह सुबह मेरे पुराने मयूर विहार फेज थ्री दिल्ली वाले किराए के घर जाकर छापा मार चुकी थी लेकिन मैं काफी समय से वहां से छोड़कर मयूर विहार फेज टू में सपरिवार रहने लगा था. उसी दरम्यान उमेश कुमार से विनोद कापड़ी ने मेरे घर के बारे में पता पूछा होगा और उमेश ने बताया होगा कि यशवंत तो मेरे यहां दिन में बारह बजे मिलने आने वाला है, पहले से ही मीटिंग फिक्स है. बस, फिर क्या था. पुलिस ने पूरी योजना बना ली. यह भी सच है कि अगर मुझे पता होता कि पुलिस मुझे खोज रही है तो मैं तुरंत थाने पहुंच जाता क्योंकि मैं ऐसे क्षणों का इंतजार करता रहता हूं जब कुछ नया थोड़ा अलग-सा हो जीवन में. अफसोस सिर्फ ये हुआ कि मेरे बाद मेरे मित्र और तत्कालीन भड़ास संपादक अनिल सिंह को भी विनोद कापड़ी एंड गैंग ने जेल भिजवा दिया. असल में जेल से बाहर अनिल ही भड़ास संचालित करने से लेकर कोर्ट मुकदमे जमानत आदि की भागादौड़ी कर रहे थे. कापड़ी एंड गैंग को यह बात नागवार गुजरी कि आखिर भड़ास चल कैसे रहा है और ये अनिल सिंह कौन है जो यशवंत की जमानत के लिए इतनी भागादौड़ी कर रहा है. एक रोज नोएडा कोर्ट से बाहर निकलते हुए अनिल को भी पुलिस वाले उठा ले गए और जेल भेज दिया. एक से बढ़कर हुए दो. जेल में अनिल के आने के बाद जेल में रौनक बढ़ गई. हम लोग मिलते तो खूब बतियाते. शुरुआती कुछ दिनों बाद जेल में अनिल को भी मजा आने लगा. अनिल ने में कहा कि भइया बाहर बहुत काम और तनाव था, यहां तो बड़ा सुकून है.

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खैर, अपन तो पूरे ताव से हवालात में रहे. पूरी मस्ती से जेल काटी. नतीजा ये हुआ कि एक किताब ‘जानेमन जेल’ नाम की पैदा हुई. जेल जीवन का मेरे सार ये रहा कि अगर बाहर यानि जेल से बाहर आपका बहुत कुछ नष्ट नहीं हो रहा है तो जेल एक अदभुत जगह है. अगर आप अहंकार के रोग से पीड़ित नहीं हैं तो जेल एक सह जीवन का अदभुत संसार है. अक्सर ऐसा वहां लगता रहा कि सबसे मुक्त आदमी तो मैं हूं, असल जेल तो बाहर है. मुझे जेल में न खाने की चिंता करनी थी, न दवा की, न जिम की, न किताब की. सब कुछ मुफ्त में उपलब्ध था. किसिम किसिम के लोग और उनकी जिंदगियां, उनकी कहानियां कभी उबने नहीं दिया करतीं. जेल में मुझे एक से एक मित्र मिले. अभी कुछ रोज पहले ही जेल में मित्र बने एक शख्स ने फोन किया.  राणा नामक इस युवक ने फोन कर भाव विह्वल होकर बताया- ”भइया, आपने जेल से छूटने के बाद पतंजलि वाला जो च्यवनप्राश का डिब्बा और पांच सौ रुपये दिए, वह कभी न भूल पाउंगा. ऐसा भाव और व्यवहार आजतक नहीं देखा.” असल में जेल में बंद ज्यादातर लोगों के जीवन में प्रेम का बड़ा अभाव होता है. उन्हें कोई प्रेम नहीं करता या फिर उन्होंने ऐसी हरकत कर रखी है कि कोई उनसे जेल में मिलने तक नहीं आता या फिर इतनी दूर से दिल्ली नोएडा आए और जेल पहुंच गए कि कोई उनके गरीब घर वाला उनसे मिलने आ पाने की आर्थिक तंगी के कारण हिम्मत नहीं जुटा पाता. ऐसे में अगर कोई कुछ ही दिनों पहले परिचित बना हुआ शख्स जेल में न सिर्फ मिलने आ जाए बल्कि खाने पीने का सामान और रुपया आदि दे जाए तो भाव विह्वल होना लाजमी है. हालांकि मैंने ये सब कई साथियों के साथ इसलिए नहीं किया कि वो मुझे महान मानेंगे. सिर्फ इसलिए किया क्योंकि जेल वाले कहते थे कि जो छूट जाता है, फिर पलट कर मिलने नहीं आता. इसलिए छूटने के बाद कई महीनों तक जेल के साथियों से मिलने जाता रहा और दर्जनों गरीब कैदियों के आर्थिक दंड आदि भर-भरवा कर उन्हें छुड़वाया.

जेल दिवस के मौके पर वे ढेर सारी साथी याद आ रहे हैं जिनने मेरे रंगदारी मांगने, छेड़छाड़ करने आदि के संगीन धाराओं के बावजूद मेरे में भरोसा रखा और मेरा सपोर्ट किया. धरना प्रदर्शन तक जंतर मंतर पर किया. हवालात से लेकर जेल तक में मिलने आए. आप सभी साथियों के संबल और सपोर्ट के कारण ही कठिन से कठिन मुश्किल वक्त भी हंसते खेलते कट जाता है. जेल में जब था तो एक रोज पता चला कि बाहर के सारे बड़े बड़े चोर संपादक जेल के अफसरों को फोन करके सिखा रहे थे कि यशवंत को जेल में इतना टार्चर करो कि यह पत्रकारिता भूल जाए और बाहर निकल कर भड़ास नामक दुकान बंद करके गुमनामी में चला जाए. पर जेल के कुछ सरोकारी अफसरों ने इन संदेशों से यह निहितार्थ निकाला कि यशवंत वाकई कुछ अच्छा काम कर रहा था जेल के बाहर जो इतने महान महान लोगों की फटी पड़ी है और फोन कर रहे हैं, खासकर मीडिया इंडस्ट्री के दिग्गज लोग.

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जेल से बाहर इन दिग्गजों के यहां मैसेज यही भिजवाया जाता रहा कि यशवंत जी की जमकर ‘सेवा’ हो रही है, खूब रोटी खाना पकवाया जा रहा है, खूब तलवा सिंकाई हो रही है. लेकिन सच ये है कि जेल के कुछ कर्तव्यनिष्ठ अफसरों ने मुझे जेल में बेहद सामान्य जीवन जीने देने और जेल मैनुअल के हिसाब से सकारात्मक जीवनचर्या रखने की छूट दी जिसके कारण ही ‘जानेमन जेल’ किताब लिखी जा सकी. ये सच है, जेल का जीवन सबके लिए सुखद नहीं होता. कई बार बाहरी दबावों के चलते जेल प्रशासन जेल के किसी कैदी बंदी के साथ काफी गलत व्यवहार भी कर गुजरता है. ऐसे अनेकों उदाहरण दूसरे कई जेलों के पता चले हैं. लेकिन मेरे साथ डासना जेल में जो हुआ वह अविस्मरणीय रहा. इसीलिए वह ‘जानेमन जेल’ के नाम से पूरे मीडिया जगत में स्थापित है. ‘जानेमन जेल’ मेरे जेल जीवन का पहला पार्ट है जिसमें जेल के भीतर के मेरे अनुभवों की दुनिया का चित्रण है. जानेमन जेल का दूसरा पार्ट जल्द ही आएगा जिसमें जेल के बाहर भड़ास के शुरू होने से लेकर थाने जाने तक की यात्रा का वर्णन होगा.

आज 30 जून जेल दिवस की याद यूं आई कि 30 जून 2012 की एक मयंक सक्सेना की पोस्ट मेरे सामने रख दी फेसबुक ने, मेमोरी शीर्षक से. मयंक की यह पोस्ट पहली बार पढ़ा. यह शायद फेसबुक पर मेरे हवालात होने या जेल जाने से संबंधित उस रोज की पहली पोस्ट रही होगी. नीचे आखिर में उस पोस्ट के कंटेंट और उस पर आए कमेंट को छोड़ जा रहा हूं ताकि आप भी पढ़ें. आखिर में, ‘जेल दिवस’ पर डासना जेल, इस जेल के अधिकारियों, जेल के साथियों को याद करने के साथ-साथ आप सबको प्रणाम करता हूं. साथ ही नोएडा जेल, तिहाड़ जेल समेत देश के बाकी जेलों को एडवांस में नमन करता हूं जहां का दाना-पानी लिखा होगा.

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आई लाइक इट 🙂

चीयर्स

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यशवंत सिंह
भूतपूर्व बंदी
डासना जेल (गाजियाबाद)
संपादक, भड़ास4मीडिया डॉट कॉम
[email protected]


नीचे वो स्टेटस है जिसे मयंक सक्सेना ने 30 June 2012 को एफबी पर पोस्ट किया था….

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Mayank Saxena
30 June 2012
मित्र Yashwant Singh के बारे में कुछ चिंताजनक खबर मिल रही है…क्या कोई पुष्टि करेगा…और इस बारे में ज़्यादा जानकारी दे पाएगा?

Pradeep Singh Kaun si khabar?

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Harishankar Shahi क्या हुआ भैया कुछ बताइए तो

Mayank Saxena प्रदीप जी रुकिए पहले जो जानता हो वो पुष्टि कर दे…फिर ही लिखूंगा नहीं तो बेवजह अफवाह बन जाएगी…

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अमित राजवंत Abhi tak to kuch pta nahi sir .

Mayank Saxena Udit Sharma Vashisatha क्या आप पढ़ नहीं पाए कि क्या लिखा है…चिंताजनक खबर को आप लाइक कर रहे हैं…हद है…शर्मनाक

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Mayank Saxena अभी नोएडा सेक्टर 49 थाने में Yashwant Singh से मिलकर आ रहा हूं….लॉकअप में बैठे गाना गा रहे थे…खाकी पहने भाई लोगों ने कहा कि सुबह आएं…बाकी दूर से ही चिल्ला कर बात हुई तो बताया कि एक टीवी चैनल के सम्पादक के इशारे पर उनको थाने में बिठाया गया है…भाई अपना मस्त है…चलिए भाई ने हम सबके लिए बहुत लड़ाई लड़ी…अब भाई यशवंत के लिए लड़ने का वक्त आ गया है…ये लड़ाई पूरी वैकल्पिक मीडिया की है…साथ आएं…डीटेल्स आगे…और कल भारी संख्या में सुबह से ही नोएडा सेक्टर 49 थाने पहुंचना शुरु करें…इनकी ऐसी की तैसी…

Niraj Kumar KIS SAMPADAK KI KARTOOT HAI?

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Yashraj Kumar Agar aisa hai to sabhi ko milkar Yashwant bhai kaa saath denaa chahiye! UP Police Criminals per to haath daalti nahi hai kabhi, ab Patrkaaron ko giraftaar kar rahi hai! A BIG SHAME for UP police!

Sharad Yadav it’s shameless !!!!!!!

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Er Udit Sharma Vashisatha chamma….. Mayank Saxena

Saroj Arora can you brief about yashwant?

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Mayank Saxena यशवंत सिंह पर दायर किये गए मामलों में ज़्यादातर धाराएं बिना वजह लगाई गयी हैं…ये जानते हुए भी एक मुद्दे पर मैं अपना बिलकुल बेबाक स्टैंड आप सब के सामने रखना चाहता हूँ कि अगर यशवंत सिंह ने वाकई किसी महिला को अश्लील एस एम् एस भेजे हैं….और परेशान किया है, जैसा कि तहरीर में कहा गया है, तो निस्संदेह ये निंदनीय है…और उनके ऊपर इस धारा में केस होना चाहिए पर क्या तुक है यशवंत पर ३८६ और ७ सी एल ऐ लगाने का …ऐसा कर के वादी कहीं न कहीं अपनी नीयत और मंशा के ऊपर संदेह की उंगली उठवा रहा …..

Yashwant Singh आज यानि 30 जून 2016 को यह पोस्ट मेरा नाम टैग होने के कारण एफबी मुझे पुरानी मेमोरी में दिखा रहा है. और, इसी बहाने पहली बार देख रहा हूं कि मेरे थाने जेल जाने पर एफबी पर सबसे पहले क्या लिखा गया. 🙂 थैंक्यू मयंक भाई.

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यशवंत की जेल यात्रा और जानेमन जेल के बारे में ज्यादा जानने के लिए इन्हें भी पढ़ सकते हैं….

भड़ास संपादक यशवंत की जेल कथा ‘जानेमन जेल’ पढ़ने-पाने के लिए कुछ आसान रास्ते

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अगर अराजक होने से सच सामने आता है तो मैं हूं अराजक : यशवंत

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भड़ास वाला पगला गया है!

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भड़ासी आत्महंता आस्था और लखनऊ में राज्यपाल के हाथों सम्मान : आइये गरियाना जारी रखें…

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आज के ही दिन चार साल पहले अपुन हवालात फिर जेल गए थे : यशवंत सिंह

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एक बड़े मीडिया हाउस के खिलाफ दिल्ली के प्रेस क्लब में प्रेस कांफ्रेंस / संवाद आयोजित कर भड़ास ने शुरू किया नया चलन (देखें तस्वीरें)

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यशवंत की ‘जानेमन जेल’ : विपरीत हालात में खुद को सहज, सकारात्मक और धैर्यवान बनाये रखने की प्रेरणा देने वाली किताब

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आपकी ‘जानेमन जेल’ तो मेरा भी दिल लूटकर ले गई

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जेल को भी जानेमन बना लेने का यह हुनर कोई आपसे सीखे

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‘जानेमन जेल’ से मुझे कैदी और बंदी के बीच का फर्क समझ आया

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कॉरपोरेट घराने यशवंत को जेल तो भिजवा सकते हैं लेकिन ‘जानेमन जेल’ लिखने से कैसे रोकेंगे

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‘भड़ासजी’, अच्छा लिखा आपने, किताब का नाम ‘रोमांस विथ जेल’ भी रखा जा सकता था

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‘जानेमन जेल’ : चंदन श्रीवास्तव की टिप्पणी

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‘जानेमन जेल’ किताब गाजीपुर जिले में भी उपलब्ध, लंका पर शराब की दुकान के बगल में पधारें

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उम्मीद न थी कि लोग 1100 रुपये देकर मुझे सुनने मुझसे सीखने आएंगे! (देखें भड़ास वर्कशाप की तस्वीरें और कुछ वीडियो)

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बहुत-बहुत बधाई यशवंत जी, आठ साल लंबी सरोकारी जिद और साहस को

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जिंदगी ओएलएक्स ओला से लेकर ब्ला ब्ला तक…. तो गाइए, झिंगालाला… झिंगालाला…

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यशवंत ने निदा फ़ाज़ली को कुछ इस तरह दी श्रद्धांजलि (देखें वीडियो)

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0 Comments

  1. VINOD sawant

    June 30, 2016 at 12:19 pm

    आजकल जिंदगी बोझिल सी लग रही थी लेकिन यह पढ़कर जोश आ गया … बहुत खुब लिखा आपने …

  2. harish

    July 5, 2016 at 7:23 am

    Sir,
    Aapke Kahani Pad Accha Laga Aur Dukh bhi, iss Media Line mai Sale Dalle Baithe hai.Jiski Tang Utha ke Daikho Sla Mada he Niklega,In Sab Harmkhoro ko to Nanga kar ke Garam Ret mei lita kar hunter se mar Lagani Chahiye

  3. Ashish Chouksey

    May 25, 2017 at 12:44 pm

    बस… यही चाहिए था।

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