यशवंत
Yashwant Singh : न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया आपको मानसिक रोगी बना सकते हैं। कल बहुत दिन बाद न्यूज़ चैनल खोला तो अपनी पसंद के अनुरूप ndtv प्राइम टाइम रविश कुमार को देखा। मनोरोग सप्ताह मनाए जाने के दौरान ndtv ने प्राइम टाइम में इसी सब्जेक्ट को चुना। इसी कार्यक्रम में रविश ने बताया कि ताजा शोध के मुताबिक दुनिया भर में न्यूज़ चैनल्स लोगों को मनोरोगी बना रहे हैं।
यही हाल सोशल मीडिया का है। कल का ndtv prime time show आपने मिस किया है तो उसका वीडियो ढूंढ कर ज़रूर देखें। न ढूंढ पाएं तो इस लिंक https://goo.gl/JHyjk3 पर क्लिक करें. इस उन्मादी दौर और दौड़ में अगर आप खुद का धैर्य खोता देख रहे हैं तो कुछ दिन टीवी मोबाइल को अलविदा कह मेरे पास आ जाएं। दोनों भाई गले मिल रोएंगे-गाएंगे।
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अतिवादियों से बच के रहें। खासकर राजनीतिक। जो लोग दिन भर सिर्फ मोदी या केजरी या राहुल या संघ या कम्युनिस्ट या पाकिस्तान या चीन या हिन्दू या मुसलमान विरोधी पोस्ट लिखते रहते हैं, ये भी मनोरोगी हैं। इनसे दूर रहें। इन्हें unfriend करें। ये आपको जबरन मनोरोगी बना रहे हैं।
आपके न चाहते हुए भी आप इनके मनोरोग के वर्तुल में खींचे जा रहे हैं। ये जो उगलते हैं, लगातार, धारा प्रवाह, एक ही सुर में, न चाहते हुए भी आप इन्हें सुनते पढ़ते हैं और चुपचाप इनकी वैचारिक विकृति को कन्सीव करते जाते हैं। ऐसा लगतार होने से आप तटस्थ नहीं रख पाते खुद को और कुछ न कुछ लिख बोल देते हैं।
इस तरह आप अनजाने में ही मनोरोगियों के एक अंतहीन युद्ध / विकार के शिकार लोगों के गैंग के सदस्य बन जाते हैं। बहुत मुश्किल है सहज मनुष्य बने रहना। बड़ा आसान है मनोरोगी बन जाना। ये दौर ऐसा है दोस्तों। आओ, प्रेम करें, हंसें, गाएं। एक पल का जीवन है, यूँ न गवाएं।
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मेरे प्यारे मित्र और आकाशवाड़ी के जाने माने एनाउंसर Ashok Anurag जी द्वारा सृजित इन 2 लाइनों पर गौर फरमाएं और पसंद आए तो कमेंट बॉक्स में वाह करें…
अजनबी शहर में जाने कौन था पहचान वाला,
जिस तरफ़ से गुज़रा, पत्थर बेशुमार चले।
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और आखिर में एक चुटकुला…
संता शराब पीते पीते रोने लगा…..
बंता : क्या हुआ… रो क्यूं रहे हो?
संता : यार जिस लड़की को भूलने के लिए पी रहा था, उसका नाम याद नहीं आ रहा.
उपरोक्त चारों स्टेटस पर आए कुछ प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं….
Vinod Sirohi मई 2014 से टीवी नहीं देखा है और न्यूज़ पेपर भी 2 महीने से पढ़ने शुरू किए हैं क्यूंकि उसकी आवश्यकता नौकरी के हिसाब से हो गयी है| दोनों ही दुनिया में उन्माद भर रहे हैं| मनोरोगी तो बना चुके हैं| इस प्रकार दिखाते हैं कि किसी देश के एक व्यक्ति का ब्यान मानो उस पूरे देश का बयान है और सोच है| किसी जाति या धर्म के एक व्यक्ति का कथन पूरे धर्म की सोच हो| आज जावेद मियांदाद का कुछ बयान प्रमुखता से छपा है| आप छाप भी रहे हो और आलोचना भी कर रहे हो| इससे अच्छा है छापिए ही मत| बेहूदी बातों पर क्यों ध्यान देते हो| न गलत बोलो न गलत पर ध्यान दो| अब तो मुख्यतः उकसाना, उलझाना, बहलाना, गरमाना काम है। समझाना, बतलाना, सुनाना बंद है| कोई चिंतन या मनन नहीं| राहत की बात है कि नई पीढ़ी का बड़ा हिस्सा समाचारों से दूर हो रहा है| काम में बिजी लोगों को फालतू लफड़ों की फुर्सत नहीं है। अभी यहां लोग फुर्सत में हैं|
Anil Dwivedi : भाई Yashwant Singh को अभी पढ़ा , उनके विचारो से सहमति रखते हुए आप सबसे गुज़ारिश है कि कट्टरता के मनोरोग से बचें! ये मनोरोग आपको उन्मादी, आक्रामक, असहिष्णु, जिद्दी और आत्ममुग्ध बना देगा। इसलिए तुरंत ही अतिवादी कांग्रेसी, भाजपाई, आपिये, समाजवादी, हिंदूवादी, राष्ट्रवादी, मुस्लिमवादी से मुक्ति पाइये , तुरंत रिमूव करे ऐसे लोगो को , आइये प्यार बाँटें और मनोरोग से मुक्ति पाएं.
Madan Tiwary : दारु की व्यवस्था कीजिये, आ जाते है. वैसे तो अब बिहार ही छोड़ने का मूड कर रहा है. मर रहा है स्टेट. पहले भी कुछ नहीं था. अब तो सब कुछ ख़त्म हो गया. रात में आप नेचरुल प्लेस पर जा नहीं सकते. पहाड़, नदी किनारे टहल नहीं सकते. सड़क किनारे सन्नाटे में बैठ नहीं सकते।
Ghanshyam Dubey : मैंने भी कल उसी अड्डे पर देखा। पागलपन और उन्मादी माहौल मे सकरातमक बातों की ओर ध्यान खींचा जा सकता है। NDTV यह करता रहा है।
आशीष सागर : मैंने पिछले दो साल से न्यूज़ चैनल देखना बंद कर रखा है और सोशल मीडिया में सिर्फ फेसबुक ही
Deepak Tamrakar : सही कहा सर. जल्द तैयारी करते हैं दिल्ली की तरफ.
Yogesh Garg : इन मनोरोगियों पर एक कैम्पेन चलाया जाए
Journalist Atul : बिल्कुल भैया…और कल मैं भी ऐसे ही दो तीन मनोरोगियों का शिकार हो गया था और सुबह 2:50 तक एक अतार्किक औचित्यहीन युद्ध करता रहा..
Yashwant Singh : पिछले कुछ हफ्ते से सोशल मीडिया का हाल बहुत बुरा हो चला है। कम से कम समय इस पर रहें। अगल बगल घूमें, मस्त रहें।
Journalist Atul : जैसा आपका आदेश.
Prashant Mishra : कई दिन बाद इस “लीहो लीहो” के दौर में सही लिखे हैं.. सही बात है जी… मनोरोगी… खतरनाक टैम चल रहा जी…
Vijay Prakash Ray : मनोरोगी का इलाज है सर लेकिन नमोरोगी का नहीं।
Siddharth Pandya गुर्बत और जहालत की जब शादी होती है….तो उनका बच्चा पैदा होता है जिसे कहते है जज्बातियत…दोनो देशो मे यह लोग बडी तादाद मे पाये जाते हैं. बाकी आपकी बात सोला आने सच है.
DrMandhata Singh यशवंतजी यह उन लोगों पर लागू होता है जो पहले से ही रोगी होते हैं। आपको कोई एडिक्ट बना सकता है। जिनके जीवन में संघर्ष नहीं, कोई अनुशासन नहीं, कोई लक्ष्य नहीं ऐसे बैठे ठाले खुद को नाकारा बना रहे लोग तो किसी भी बात के शिकार हो सकते हैं। हां इन दशा में कोमल मन वाले बच्चों को बचाने की जिम्मेदारी हमारी आपकी है।
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