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आयोजन

प्रेस क्लब आफ इंडिया के चुनाव में वोट देने से पहले दोनों पैनल की इन अपीलों को जरूर पढ़ें

पहली अपील नदीम-राहुल जलाली पैनल की तरफ से….

प्रिय सदस्यों,

बड़े रोष व दुख के साथ हमें यह ईमेल करना पड़ रहा है कि मुझे (नदीम काजमी और विनीता यादव) को निशाना बनाकर धन की अनियमितताओं सम्बंधी गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। इन आरोपों के लिए कुछ लोग व्यक्तिगत रुप से फेसबुक तथा सोशल मीडिया का सहारा लेकर छवि खराब कर रहे हैं। प्रेस क्लब के चुनाव के ऐसे मौके पर यह दुखद है कि ये आरोपों की तह में जाने और सच्चाई की पुष्टि किए बिना संदेशों को आगे भेजकर पत्रकार के रुप में अपनी साख तो गिरा ही रहे हैं,समूची पत्रकारिता की बिरादरी पर बट्टा लगा रहे हैं।

पहली अपील नदीम-राहुल जलाली पैनल की तरफ से….

प्रिय सदस्यों,

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बड़े रोष व दुख के साथ हमें यह ईमेल करना पड़ रहा है कि मुझे (नदीम काजमी और विनीता यादव) को निशाना बनाकर धन की अनियमितताओं सम्बंधी गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। इन आरोपों के लिए कुछ लोग व्यक्तिगत रुप से फेसबुक तथा सोशल मीडिया का सहारा लेकर छवि खराब कर रहे हैं। प्रेस क्लब के चुनाव के ऐसे मौके पर यह दुखद है कि ये आरोपों की तह में जाने और सच्चाई की पुष्टि किए बिना संदेशों को आगे भेजकर पत्रकार के रुप में अपनी साख तो गिरा ही रहे हैं,समूची पत्रकारिता की बिरादरी पर बट्टा लगा रहे हैं।

 

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आईए अब मुख्य बात पर आते हैं। हम दोनों पर आरोप है कि एक भवन निर्माण कंपनी को प्रमोट किया है। सच्चाई और तथ्य यह है कि इस ग्रुप ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में तीन कार्यक्रमों पर अपनी स्पांसरशिप दी। पहला 6 अक्टूबर 2013 को दो कार्यक्रम हुए। पहला विश्वविख्यात धावक मिल्खा सिंह के साथ तथा दूसरा प्रसिद्ध गायक शंकर साहनी का। संयोगवश उस समय हम दोनों में से न कोई सेक्रेटरी जनरल था और न ही ज्वाइंट सेक्रेट्री पद पर। इस तथाकथित बिल्डर ने उस वक्त के सेक्रेटरी जनरल और पदाधिकारियों की तस्वीरें ले ली थी। अन्य कार्यक्रम पिछले साल हुआ दीवाली मेला था,जिसके लिए भी इस बिल्डर ने स्पॉसरशिप दी थी। इस कार्यक्रम में भी औपचारिकतावश चित्र लिए गए।

लेकिन हमारे इन बेनामी और पीठ पीछे वार करने वाले तथाकथित लोगों ने पिछले और पुरानी फोटो में हेराफेरी कर भ्रामक आरोपों को जन्म दिया। चित्र में बाकी सभी की फोटो हटाकर केवल एक फोटो लेकर भ्रम व फरेब का जाल बुनकर प्रचार की कोशिश की। इस बिल्डर से रही बात पैसों के लेनदेन की तो कार्यक्रम में सभी सम्बंधित व्यक्तियों को पैसों की अदायगी बिल्डर के माध्यम से सीधे तौर पर की गई। इसमें न प्रेस क्लब और न हम दोनों में से किसी का कोई लेनदेन नहीं है। फिर यह प्रश्न कहां रहता है कि हम बिल्डर के पेरोल पर हैं?

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इसके साथ-साथ एक बात और अहम है कि पिछले कुछ वर्षों में तमाम ऐसे कार्यक्रम प्रेस क्लब में हुए हैं जो क्लब के इतिहास में पहली बार आयोजित किए गए और उससे क्लब की प्रतिष्ठा को चार-चांद लगें। ज्वाइंट सेक्रेटरी विनिता यादव ने पहली बार क्लब में महिला दिवस का आयोजन करवाय़ा गया और मालिनी अवस्थी जैसी विख्यात गायिका ने शिरकत की। पुस्तक मेले का आयोजन भी पहली बार किया गया। मैनेजिंग कमेंटी मेंबर दिनेश तिवारी ने आरएनआई से रजिस्टर्ड पत्रिका स्क्राइब्स वर्लड, का कुशल संपादन कर उसे सदस्य और केन्द्र सत्ता तक पहुंचाया। अरुण जोशी ने रविवार स्पेशल के रुप में खानपान पर विशेष जोर दिया। प्रेसीडेंट आनंद सहाय ने 100 से अधिक पत्रकारिता से जुड़े कार्यक्रमों को अंजाम दिया। हम तो क्लब की उस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसकी नींव टी आर रामाचंद्रन व संदीप दीक्षित ने चार साल पहले रखी थी। ऐसे में यह बात हमें ध्यान रखनी होगी कि ऐसे कार्यक्रमों के लिए धन चाहिए होता है। प्रेस क्लब के पास ऐसी कोई आमदनी का साधन नहीं है। उसके लिए शराब कंपनियों,निर्माण कंपनियों आदि से सहायता सीधे तौर पर लेनी होती है। हमने तो क्लब की परंपरा का पालन किया है। इसमें आखिर क्या गलत है?

पर हमारे विरोधी क्लब को आगे बढ़ते हुए और क्लब कल्चर की खुशबू और क्लब को चहकता-महकता हुआ नहीं देखना चाहते हैं। वे नहीं चाहते हैं कि रविवार को बच्चों की धमा-चौकड़ी, महिलाओं की उपस्थिति, शाम की मस्ती और प्रोफेशनल गतिविधियां यहां पर हों। वे क्लब को सूनसान, वीरान और अपने हितों के लिए बनाना चाहते हैं। पर ऐसा आप होने देंगे और न हम होने देंगे।

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नदीम-राहुल जलाली पैनल को वोट दें।

नदीम अहमद काजमी
सेक्रेट्री जनरल (पीसीआई)
विनीता यादव
ज्वाइंट सेक्रेटरी (पीसीआई)

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दूसरी अपील… गौतम लाहड़ी-प्रदीप श्रीवास्तव पैनल की तरफ से….

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प्रिय मित्रों…

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का चुनाव 30 मई को होने वाला है… जाहिर सी बात है कि जो लोग चुनाव मैदान में हैं… वो खुद को बेहतर बताने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे… और इसमें कोई हर्ज भी नहीं है… लेकिन कुछ बुनियादी सवाल हैं… जो लोगों को जरूर सोचने चाहिए….

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जलाली-नदीम पैनल का कहना है कि दूसरे पैनल (गौतम लाहड़ी, प्रदीप श्रावास्तव-संजय कुमार पैनल) के पास कोई एजेंडा नहीं है…. वो अपना पूरा पैनल तक नहीं उतार पाए हैं… पूरा पैनल नहीं उतार पाने की बात सौ फीसदी सच है… दरअसल हम हर प्रत्याशी के लिए एक-एक लाख रुपये की जमा राशि नहीं जुटा पाए… जो जलाली-नदीम एंड कंपनी ने बड़ी आसानी से जुटा लिए… हमारे पैनल में अमीर पत्रकार नहीं है भाई… मुझे तो सबसे बड़ा खतरा ये नजर आ रहा है कि कल को ये लोग कह सकते हैं कि…. लाख रुपये नहीं कमाते तो क्लब के सदस्य ही नहीं बन सकते…

दूसरी बात, अगर हम चुनाव जीतते हैं तो मैनेजिंग कमेटी में 8 लोग तो नदीम की टोली के ही रहेंगे… और वो हमारी किसी भी गलत कोशिश का विरोध करने की हालत में होंगे… नई कमेटी पर लगाम कसने की हालत में होंगे…. जबकि नदीम की टोली जीतती है तो… तो उनकी बेजा हरकतों (कहने और बताने की ज्यादा जरूरत नहीं रह गई है) के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाला कोई नहीं होगा… अब ये बात अच्छी है या बुरी… इसका फैसला… सदस्यों को करना है…

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रही बात एजेंडे की…. तो हमने अपना एजेंडा पेश किया है… हम प्रेस क्लब में खाने-पीने की चीजों के दाम कम से कम करने की कोशिश करेंगे… ताकि आम पत्रकार भी अपने परिवार के साथ यहां का लुत्फ उठा सके…सदस्यों साथ आने वाले उनके परिजनों को इज्जत बख्शेंगे… और उनसे कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं वसूले जाने पर कमेटी में सहमति बनाएंगे… हम क्लब के सदस्यों के लिए एक सुकून का माहौल देने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे… रही बात मुनाफे की… तो हो सकता है हम नदीम की तरह ज्यादा मुनाफा ना कमा सकें…

दरअसल मुनाफे के अर्थशास्त्र को समझना बहुत जरूरी है… मुनाफा आता कहां से है… जब आप खाने-पीने का सामान महंगा करते हैं… कामगारों की सुविधाओं में कटौती करते हैं… क्लब की सुविधाओं… मसलन प्रेस कांफ्रेंस के लिए कमरा महंगे किराए पर देते हैं… क्लब के किसी निजी आयोजन के लिए प्रायोजक लाते हैं (अब प्रायोजकों से मिले पैसे क्लब के खाते में आते हैं या नहीं… इस पर बात फिर कभी..)… क्लब को एक मुनाफाखोर साहूकार की तरह चलाते हैं…

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नदीम एंड कंपनी सभी सदस्यों से भारी सेक्युरिटी मनी तो लेते हैं… लेकिन किसी मेंबर की जेब में पैसा ना हो तो… खाने-पीने का हक तक छीन लिया है… पहले हर सदस्य बिल पर साइन कर सकते थे…. और उसे बाद में चुकता कर सकते थे… लेकिन नदीम की टोली ने तो इसे परचून की दुकान बना दिया है… जहां बगैर पैसे दिए कोई सामान नहीं मिल सकता…

प्रेस क्लब के महंगे खाने-पीने के सामान के लिए पैसे किसकी जेब से निकलता है… दरअसल यहां पत्रकारों को चूसकर ही मुनाफा कमाया जा रहा है… वो भी एक जमाना था जब जनहित के काम में लगे संगठनों को यहां रियायती किराए पर या फिर मुफ्त में प्रेस कांफ्रेंस के लिए हॉल दिया जाता था… लेकिन नदीम की कमेटी ने बड़े मुनाफे के चक्कर में… क्लब की उस आदर्श परंपरा को दफना दिया… तिलांजलि दे दी… और क्लब को दारू पीने के अड्डे के रूप में तब्दील कर दिया…

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आप बार-बार जमीन और बिल्डिंग की बात करते हैं… कहते हैं हमने इतने करोड़ रुपये जमा कर दिए… भाई ये काम सालों से चल रहा है… आप कृप्या झूठ ना बोले… पीछे भी तमाम लोग इस पर काम करते आए हैं… इसका श्रेय लेने की कोशिश ना करें… आप 40 लाख रुपये खर्च कर जिम बनाते हैं… फिर खुद ही उसे कबाड़ बताते हैं… अंदर के जिस कमरे में बैठकर एक मेंबर… खाना खाता है… वहां के एयरकंडीशनर का आप कवर तक नहीं लगा सकते… सवाल नीयत का है…

हम इस संस्था को पत्रकारिता का मंदिर (TEMPLE OF JOURNALISM) के रूप में विकसित करना चाहते हैं… जहां आकर किसी को फख्र महसूस हो… उसे ऐसा ना लगे कि वो किसी बार में आया है… आज देश के समाने जिस तरह की चुनौतियां है… उसे देखते हुए युवा पत्रकारों को प्रेस क्लब से जोड़ने… उन्हें सही दिशा देने की जरूरत है… उऩ्हें पत्रकारिता की मर्यादा से रूबरू कराने की जरूरत है… क्लब को एक ग्लोबल मीडिया सेंटर के रूप में विकसित करने की जरूरत है… हमारे वरिष्ठ पत्रकार इस काम में हमारा सहयोग कर सकते हैं… हमें उन लोगों के साथ भी जुड़ने की जरूरत है… जो जनहित के काम में दूर-दराज-गांव-देहात के इलाके में लगे रहते हैं… उन्हें अपनी बात कहने के लिए मंच प्रदान करने की भी जरूरत है… सरकार की नीतियों पर नेताओं को बुलाकर सवाल-जवाब करने की जरूरत है… और अंत में सबसे बड़ी बात… पत्रकारों के बीच जो गैर-बराबरी की दीवार खड़ी की गई है… उसे ध्वस्त करने की जरूरत है…. ताकि हम… पत्रकारों के खिलाफ दमन… शोषण की हालत में उनकी आर्थिक और कानूनी मदद कर सकें… और पूरी ताकत से पत्रकार एकता जिंदाबाद का नारा बुलंद कर सके।

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एक बार फिर से गौतम लाहड़ी-प्रदीप श्रीवास्तव-संजय कुमार के पैनल को भारी मतों से विजयी बनाने की अपील के साथ…

VOTE FOR CHANGE…

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गौतम लाहड़ी – प्रदीप श्रीवास्तव – संजय कुमार के पैनल को वोट दें

आभार

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संजय कुमार


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