सुमंत विद्वाँस- सबको नमस्कार! मैं अभी दिल्ली हवाई अड्डे पर हूं। यहां बहुत सारे अंग्रेजी अखबार तो बड़ी सहजता से दिख गए, पर हिन्दी अखबार बहुत खोजने पर मिला, वह भी केवल नवभारत टाइम्स।
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हिंदी अख़बार कूड़े के ढेर में बदलते जा रहे हैं : रवीश कुमार
Ravish Kumar : आलोक वर्मा के घर किसकी सिफ़ारिश करने गए थे केंद्रीय सतर्कता आयुक्त चौधरी? हिन्दी अख़बारों के संपादकों ने अपने पाठकों की हत्या का प्लान बना लिया है। अख़बार कूड़े के ढेर में बदलते जा रहे हैं। हिन्दी के अख़बार अब ज़्यादातर प्रोपेगैंडा का ही सामान ढोते नज़र आते हैं। पिछले साढ़े चार …
वक़्त बदल गया पर ये हिंदी अखबार नहीं बदले
Nadim S. Akhter आजकल के हिंदी अखबारों में देखने और पढ़ने लायक कुछ होता ही नहीं। खबरें भी बासी जो एक दिन पहले हम नेट पर पढ़ लेते हैं। उसमें कोई value addition नहीं। सम्पादकीय पेज पर भी वही घिसे-पिटे लेख। उनको कौन पढ़ना चाहता है भाई? उससे ज्यादा और बेहतरीन तो आज पब्लिक सोशल …
रवीश कुमार को क्यों कहना पड़ा- ‘हिन्दी अख़बार सरकारों का पांव पोछना बन चुके हैं, आप सतर्क रहें’
Ravish Kumar : क्या जीएसटी ने नए नए चोर पैदा किए हैं? फाइनेंशियल एक्सप्रेस के सुमित झा ने लिखा है कि जुलाई से सितंबर के बीच कंपोज़िशन स्कीम के तहत रजिस्टर्ड कंपनियों का टैक्स रिटर्न बताता है कि छोटी कंपनियों ने बड़े पैमाने पर कर चोरी की है। कंपोज़िशन स्कीम क्या है, इसे ठीक से समझना होगा। अखबार लिखता है कि छोटी कंपनियों के लिए रिटर्न भरना आसान हो इसलिए यह व्यवस्था बनाई गई है। उनकी प्रक्रिया भी सरल है और तीन महीने में एक बार भरना होता है। आज की तारीख़ में कंपोज़िशन स्कीम के तहत दर्ज छोटी कंपनियों की संख्या करीब 15 लाख है। जबकि सितंबर में इनकी संख्या 10 से 11 लाख थी। इनमें से भी मात्र 6 लाख कंपनियों ने ही जुलाई से सितंबर का जीएसटी रिटर्न भरा है।