Ajay Prakash : भाजपा सरकार के दो साल पूरे होने पर खूब आकलन हो रहा है। होना भी चाहिए। पर लोकतंत्र में बिना विपक्ष के क्या आकलन। इसलिए देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की भी इन दो वर्षों में बनी भूमिका का विश्लेषण होना चाहिए। मैं पहले भी कहता रहा हूं और फिर कह रहा हूं कि संसद में भारी बहुमत वाली मोदी सरकार देश की पहली सरकार है जो विपक्ष के विरोध को तय करती है। लगभग डिक्टेट करती है। विपक्षी क्या विरोध करेंगे, कैसा विरोध करेंगे और कितना करेंगे, इसकी दिशा संघ और सरकार तय करती है। समझने के लिए लव जेहाद से लेकर देशद्रोह तक के मसले को आप याद कर सकते हैं।
फिलहाल बात कांग्रेस की। कांग्रेस सदन में मुख्य विपक्षी होने के साथ देश में सबसे बड़ी नेटवर्क वाली पार्टी है। पर भाजपा ने केंद्रीय शासन में आने के बाद से कांग्रेस को एक ही राष्ट्रीय काम दे रखा है, वह है परिवार बचाने का। कभी वाड्रा तो कभी राहुल, कभी प्रियंका तो कभी राजीव, कभी इंदिरा तो कभी नेहरु। कांग्रेस के सारे बहस—मुबाहसे इसी के आसपास चकरघीन्नी काटते रहते हैं। पिछले दो वर्षों में इसके अलावा कांग्रेस के चर्चा में रहने का कोई एक कारण आपको नहीं दिखेगा।
ऐसे में मोदी के दो साल पूरा होने पर सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या ‘बेटी, दामाद और वो’ की समस्या—समाधान की पार्टी बन चुकी कांग्रेस से आप आने वाले वर्षों में मोदी का विकल्प बनने की खामख्याली पाल सकते हैं। एक बात हमें याद रखनी चाहिए कि सत्ता चाहे जितनी फरेबी, जनविरोधी और खोखली हो, अपने आप नहीं खत्म होती, मजबूत विपक्ष के धक्के से ही तानाशाही के पंजे उखड़ते हैं। कांग्रेस में ये राजनीतिक बूता दूर—दूर तक नहीं दिखता। हालत यह है कि पार्टी का सक्सेसर राजनीति का सर्कस बनता जा रहा है और हम हैं कि उम्मीद लगाए उसे टुकुर—टुकुर देख रहे हैं।
पत्रकार अजय प्रकाश के फेसबुक वॉल से.
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