‘आप’ ने ढूंढ़ा बिकाऊ मीडिया पर खर्च का पूरा लाभ पाने का तरीका

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Sanjaya Kumar Singh : आम आदमी पार्टी ने ढूंढ़ा बिकाऊ मीडिया पर खर्च का पूरा लाभ पाने का तरीका। फर्जी सर्वेक्षणों का बाप है यह तरीका। इसे कहते हैं आईडिया। यह विज्ञापन इस तरह आ रहा है जैसे रेडियो चैनल खुद सर्वेक्षण कर रहा हो। इसमें किसी व्यक्ति से पूछा जाता है पिछली बार आपने किसे वोट दिया था। वह चाहे जो कहे दूसरा सवाल होता है इस बार किसे देंगे– आम आदमी पार्टी को। और क्यों में, आम आदमी के पक्ष में कारण बताया जाता है।

इस तरह पार्टी अपने पक्ष में वोट डालने के कारण तो लोगों को बता ही रही है जो ध्यान नहीं देगा वह समझेगा कि पिछली बार कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी को वोट देने वाले सभी लोग इस बार आम आदमी पार्टी को वोट देंगे और उनके पास इसके ठोस कारण हैं। बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत किए जाने वाले इन विज्ञापनों में टेलीविजन चैनलों को जैसे अचानक ब्रेक लेना पड़ता है वैसे ही ब्रेक ले लिया जाता है। काम की बात खत्म होते ही। और फिर आखिर में कहा जाता है कि यह विज्ञापन था। तब तक इसका जो असर होना होता है, हो चुका होता है।

और भाजपा की ओर से अपने स्टार प्रचारक नरेन्द्र मोदी की आवाज में चलाए जा रहे विज्ञापन, “भाइयों और बहनों ये विजय यात्रा क्यों चल पड़ी है। एक के बाद एक भारतीय जनता पार्टी जनता के दिलों में इतना प्यार और विश्वास कैसे बना पाई है। भाइयों और बहनों जो देश का मूड है वही दिल्ली का मूड है। जो देश चाहता है वही दिल्ली चाहता है” का करारा और दिलचस्प जवाब है। यह ऐसा आईडिया है, जिससे कोई भी धोखा खा जाए। प्रस्तुति बहुत ही शानदार और स्वाभाविक है। रेडियो का प्रचार और विज्ञापनों के लिए जबरदस्त उपयोग।

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कालाधन और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर 100 दिन में काला धन वापस लाने की बातें करके देश के मध्यम वर्ग को ललचा देने के बाद भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में अब गरीबों और झुग्गी झोपड़ी वालों को चारा डाल रही है। दिल्ली चुनाव में “जहां झुग्गी, वहीं मकान” का नारा इसी रणनीति के तहत है। और गरीबों को लक्ष्य करने के लिए ही भाजपा के जो विज्ञापन इन दिनों प्रमुखता से प्रसारित हो रहे हैं उनमें पहला है, हमारा वोट भाजपा को। मोदी जी आए हैं तो बैंक में हमारा खाता खुला, डेबिट कार्ड मिला, बीमा मिला गैस सिलेंडर का फायदा मिला अब झुग्गी वालों को मकान मिलने की बात भी हो रही है। इसी क्रम में एक और विज्ञापन है, ना-ना मेमसाब, उनको वोट। हम नहीं देंगे। पानी देंगे, बिजली देंगे, कहकर सब के वोट ले लिए पर ये तो उन्हें मिले ना जिनके पास मीटर थे। हम झुग्गी वालों को क्या मिला। और तीसरा विज्ञापन है, पिछली सरकार तो गठबंधन से बनी थी साब जी। सब साथ हो लिए। क्योंकि सबको विश्वास था कि दिल्ली का भला होगा। लेकिन ड्राइवर तजुर्बेकार ना हो तो गाड़ी तो ठुकेगी ना। सब जानते हैं कि गाड़ी ठुकी नहीं, ब्रेक लगाया गया था। ऐसे में, गरीबों को साधने के फेर में मध्यम वर्ग को चुका हुआ मानने वाली भाजपा अपने खर्च पर आम आदमी पार्टी की उपलब्धियां भी प्रचारित कर रही है।

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जैसे-जैसे दिल्ली में मतदान की तारीख करीब आ रही है भारतीय जनता पार्टी अपने सभी हथियारों का उपयोग कर लेने पर आमादा है। जिस तरह काले धन के पैसे 100 दिन में लाने का झूठा और अव्यावहारिक वादा करके पार्टी केंद्र में सत्ता में आई है वैसा ही झूठा और अव्यवहारिक वादा वह दिल्ली के गरीबों से कर रही है। खादी के बिना बाजू वाले कुर्तों से डिजाइनर और स्पेशल सूट पर पहुंच चुके नरेन्द्र मोदी गरीबों को फिर सपने दिखा रहे हैं। इसबार जहां झुग्गी वहां मकान का वादा काले धन को वापस लाने से भी बड़ा धोखा है। क्या यह संभव है। पर देश का प्रधानमंत्री और सत्तारूढ़ दल खुलेआम झूठ बोल रहा है। काले धन का तो लोग इंतजार कर रहे हैं पर किसी दिन दिल्ली में झुग्गियां उजाड़ी गईं और लोग चढ़ बैठे सात रेसकोर्स रोड पर तो क्या होगा, किसी ने सोचा है। गरीबों के लिए घर का सपना वैसे ही बहुत बड़ा होता है। ऐसा सपना नहीं दिखाया जाना चाहिए कि गरीब मरने मारने को उतारू हो जाए। भाजपा अगर रिकार्ड सीटों के साथ सत्ता में आई है तो कहीं ऐसा ना हो कि रिकार्डतोड़ तरीके से सत्ता से हटाई जाए। तैयारी पार्टी खुद कर रही लगती है।

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मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद जो काम किए हैं उसका प्रचार दिल्ली में चुनाव के मद्देनजर रेडियो पर आ रहा है। इसमें एक आदमी कहता है कि मोदी जी आए हैं तो बैंक में खाता खुला, डेबिट कार्ड मिला, बीमा हुआ, रसोई गैस का फायदा मिला – अब मैं आपको बताऊं कि वो ये नहीं कहता कि चेक बुक मिला और खाते का नंबर भी मिला। वाकई बहुत काम हुआ है। और रसोई गैस की सबसिडी खाते में ट्रांसफर करने की योजना पिछली सरकार की थी – मेरे ख्याल से। विज्ञापन में यह नहीं कहा गया है कि खाते जिस काले धन के पैसे की उम्मीद में लोगों ने खोले हैं वो चुनाव बाद आ जाएंगे। और जनता पर यह कम अहसान नहीं है। मैं अगले विज्ञापन का इंतजार बेसब्री से कर रहा हूं।

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महंगी कमाई मुफ्त में ‘खर्च’ हो गई… दिल्ली विधानसभा के इस चुनाव में किरण बेदी के जीवन की एक प्रमुख कमाई (इंदिरा गांधी की कार टो करने का श्रेय) खर्च हो गई। और मजेदार यह है कि इस खर्च को ना किरण बेदी के चुनावी खर्च में जोड़ा जा सकता है और ना भारतीय जनता पार्टी के। दुख की बात यह है इस महत्त्वपूर्ण कमाई के खर्च होने का कोई लाभ किसी को नहीं मिलेगा। यहां तक कि मीडिया को भी इस ‘रहस्योद्घाटन’ का कोई श्रेय नहीं दिया जा सकता है।

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खबर है कि किरण बेदी के पास दो पते पर दो वोटर आई कार्ड हैं। भक्तगण इसपर भी बुद्धिमानी दिखा रहे हैं। अभी दो दिन पहले ही उपराष्ट्रपति से भी ज्यादा ज्ञानी लोगों ने अपने ज्ञान का नंगा प्रदर्शन किया है। अब फिर कूद पड़े। अपनी अज्ञानता दिखाने। भक्तों के मामले में यह कहावत बिल्कुल सही लगती है, Its better to keep your mouth shut and let people think that you are a fool than to open it and clear all doubts. समस्या बहुत गंभीर है। लोग तुरंत फैसला सुनाने लगते हैं, खेमे में बंट जाते हैं। कार्यवाही मेरे या किसी के कहने या चाहने से नहीं हो सकती या वो नहीं होगी जो कोई चाहेगा। कार्यवाही नियमानुसार ही होगी। अगर किसी ने मतदाता सूची में नाम डालने के लिए आवेदन किया हो तो उसे पता होना चाहिए कि आप का नाम मतदाता सूची में ऐसे ही नहीं आ जाता है। इसके लिए आप बाकायदा आवेदन करते हैं और घोषणा करते हैं कि आप मतदाता सूची में नाम आने की शर्तें पूरी करते हैं। इसी में यह घोषणा भी होती है कि मेरा नाम किसी और मतदान क्षेत्र की मतदाता सूची में नहीं है या है उसे काटकर इस मतदान क्षेत्र में मेरा नाम दर्ज किया जाए। दो जगह नाम रहने का मतलब है आपने आवेदन में नहीं बताया। अगर बताया था तो आवेदन पत्र से साबित हो जाएगा, आप कर दीजिए। बात खत्म। या आप चाहते हैं कि बताने के बावजूद आपका नाम कटा क्यों नहीं तो इसकी मांग कीजिए, दोषी के खिलाफ कार्रवाई होगी। पर आपने नाम काटने का आवेदन किया ही नहीं हो, या यह घोषणा ही नहीं की हो कि आपका नाम कहीं और है, तो आप दोषी हैं, कार्रवाई आपके खिलाफ होगी। लेकिन इसमें अदालती पेंच हैं। कई बार आप आवेदन खुद नहीं करते हैं, दस्तखत गंभीरता से नहीं मिलाए जाते हैं। इस बिना पर आप अदालत से शायद बच जाएं पर मामला तय तो अदालत में ही होगा। भक्त बेकार ज्ञान बघारने लगते हैं और मजे की बात यह कि अमूमन यह नहीं कहा जाता कि नियम क्या है या फैसला तो अदालत में लोगा। लोग टूट पड़ते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.


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Comments on “‘आप’ ने ढूंढ़ा बिकाऊ मीडिया पर खर्च का पूरा लाभ पाने का तरीका

  • Aapko kya lagta hai 100 din me kala dhan wapas laane ki baat public ne aise hi maan li thi. Public ko bewkoof samajhna band karo aap media wale. Kal ko koi khada hoke kahega ki 100 din me Switzerland ki economy gira ke saara paisa le aayenge to hum usse maan ke kisi ko bhi vote kar denge. Please correct yourself…public ne vote Congress ke corruption se tang aake BJP ko diya naa ki Modi ke ek statement pe. Aap to samajhdaar journalists ki shreni me aate hain kam se kam janta ko bewkoof batana band kariye. Janta itni bewkoof nahi ki 323 seats de daale. Aur Bedi ji humesha manyaneeya rahengi jaise Kejriwal ji hai bhale hi Bedi ji ne swayam gaadi tow ki ho ya nahi..Kejriwal ji manyaneey rahenge bhale hi IRS se resign karke aaye ho. Magsaysay awards prapt logo ki izzat kariye bhale hi wo Politics me ho ya Jail me. Kyun ki JP, Atal aur Anna teeno sammananiy hain aur inme se do sakriya politics me the aur teeno Jail me bhi gaye hain. Sabki gandagi dikhana media ka kaam nahi. revisit your journalism ethics. Jai Hind!!

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