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मोदी को मैदान में उतार बीजेपी ने जो रामबाण चलाया वह कितना कारगर साबित होगा

पिछले कुछ हफ़्तों में केंद्र सरकार की कई मोर्चों पर किरकिरी हुई है. पहला मामला बीजेपी की आतंरिक कलह से जुड़ा है. सुब्रमण्यम स्वामी ने अरुण जेटली पर अप्रत्यक्ष रूप से हमले किये हैं. रघुराम राजन से लेकर वित्त मंत्रालय से जुड़े अन्य अधिकारियों तक उनके लगातार हमले बीजेपी को परेशान किये हुए हैं. मीडिया में इस मामले को जोरशोर से उछाला गया है. बीजेपी बैकफुट पर है.  दूसरा मामला है भारत की अंतर्राष्ट्रीय नीति से संबंधित. भारत को NSG की सदस्यता की कितनी आवश्यकता थी, थी भी कि नहीं, ये शायद हम अच्छे से नहीं जानते, पर ये अवश्य जानते हैं कि चीन ने हमारा खेल बिगाड़ दिया. यहाँ भी भारत सरकार की किरकिरी हुई. नरेन्द्र मोदी की एग्रेसिव अंतर्राष्ट्रीय छवि को धक्का पहुंचा है.

पिछले कुछ हफ़्तों में केंद्र सरकार की कई मोर्चों पर किरकिरी हुई है. पहला मामला बीजेपी की आतंरिक कलह से जुड़ा है. सुब्रमण्यम स्वामी ने अरुण जेटली पर अप्रत्यक्ष रूप से हमले किये हैं. रघुराम राजन से लेकर वित्त मंत्रालय से जुड़े अन्य अधिकारियों तक उनके लगातार हमले बीजेपी को परेशान किये हुए हैं. मीडिया में इस मामले को जोरशोर से उछाला गया है. बीजेपी बैकफुट पर है.  दूसरा मामला है भारत की अंतर्राष्ट्रीय नीति से संबंधित. भारत को NSG की सदस्यता की कितनी आवश्यकता थी, थी भी कि नहीं, ये शायद हम अच्छे से नहीं जानते, पर ये अवश्य जानते हैं कि चीन ने हमारा खेल बिगाड़ दिया. यहाँ भी भारत सरकार की किरकिरी हुई. नरेन्द्र मोदी की एग्रेसिव अंतर्राष्ट्रीय छवि को धक्का पहुंचा है.

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तीसरा मामला भी सरकार के लिए बड़ा झटका है. ये मामला आंतरिक सुरक्षा और पाकिस्तानी मामलों से जुड़ा हुआ है. कश्मीर में पिछले एक महीने में सुरक्षा बलों पर अनेकों भीषण हमले हुए हैं. कहा जा रहा है कि पिछले कई वर्षों में कश्मीर में हालात कभी इतने बुरे नहीं रहे. यहाँ बीजेपी न केवल केंद्र सरकार में होने की वजह से बल्कि राज्य में भी सत्ता में होने की वजह से मुसीबत के केंद्र में है. आज के समय में किसी सरकार के विरोध में माहौल बनाने के लिए विपक्ष को ज्यादा कुछ नहीं करना पड़ता, बशर्ते मीडिया ख़बरों को अच्छे से पेश कर रहा हो. भारत का मीडिया जैसा भी हो, पर अलग अलग धड़ों में बंटे होने के कारण जब विरोधी खेमा ज्यादा मुखर होता है, तो सरकार के हाथ पाँव फूलना लाजमी है.

ये वो समय है, जहाँ बीजेपी और नरेन्द्र मोदी की नीतियों पर मीडिया और कुछ हद तक आम जनता भी सवाल उठा रही है, भले ही दबे स्वरों में. बीजेपी को कुछ ऐसा करना ही था जिससे वो लोगों तक अपनी बात पहुंचाए. तो कौन बने बिल्ली और कौन बांधे घंटी? बीजेपी ने यहाँ अपने जांचे परखे ट्रम्प कार्ड को फिर से खेला है. संकटमोचन नरेन्द्र मोदी जी को उतारा गया है. ऐसा पहली बार हुआ है कि एक भारतीय प्रधानमन्त्री ने अपने कार्यकाल के दौरान किसी न्यूज़ चैनल को विस्तारपूर्वक इंटरव्यू दिया है. इस इंटरव्यू में नरेन्द्र मोदी ने इन सारे मुद्दों पर सकारात्मक तरीके से अपना पक्ष रखा है. कोशिश है भारतीय जनता और भारतीय जनता पार्टी को ढाढ़स बंधाने की, ये देखने योग्य होगा कि प्रधानमन्त्री की ये कोशिश इस नकारात्मक माहौल को सकारात्मक बनाने में कितने काम आती है.  

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लेखक दिवाकर सिंह आईटी फील्ड से जुड़े हुए हैं और नोएडा में रहते हुए खुद की कंपनी संचालित करते हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.


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