Rakesh Sharma-
अमीर फकीर थे रामेश्वर पांडेय जी
पिछले दिनों भाई अमरीक जी ने आदरणीय रामेश्वर पांडेय जी के बारे में विस्तार से लिखा जो काफी मायनों में पांडेय जी के जीवन के कुछ उन पहलुओं को भी उजागर करता है जिनसे आम तौर पर सभी रुबरु नहीं हो पाए थे। मैं इस लेख के जरिए दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूं और उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। लेख में अमरीक जी ने आदरणीय निशीकांत ठाकुर जी का भी जिक्र किया। इन दोनों ही शख्सियतों को हिंदी पत्रकारिता जगत में असंख्य लोगों को रोजगार देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
मैंने भी दो साल श्री पांडेय जी और लगभग आठ साल तक श्री निशीकांत ठाकुर जी के मार्गदर्शन में काम किया और काफी ज्ञान भी अर्जित किया। दोनों ही व्यक्ति जहां अपने लोगों के लिए समर्पित थे वहीं ह्रदय से काफी सरल थे। किसी भी तरह से उन्होंने अपने दरवाजे पर आए किसी व्यक्ति को निराश नहीं किया जो उनकी दरियादिली को प्रदर्शित करता है।
अब मुद्दे की बात पर आते हुए बात करता हूं, उस पहलू की जिसने इन व्यक्तियों को पीड़ा पहुंचाई और उनकी दबदबे की धार को कुंद कर दिया। दोनों ने ही अपने अपने ढंग से लोगों की भरपूर मदद की लेकिन उन्हीं के साये के नीचे पनपने वाले कुछ आस्तीन के सांप उन्हें डसने से बाज नहीं आए। अमरीक जी पत्रकारिता की राजनीति और अमर उजाला और दैनिक जागरण की कार्य पद्धति से बेहतर परिचित हैं और वरिष्ठ हैं, अगर मैं कहीं गलत बात लिख दूं तो उनसे अनुरोध है कि वे उसे दुरुस्त कर दें।
अमर उजाला के पंजाब एडिशन ने एक बात को हर किसी की जुबान पर ला दी थी कि जिनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं होती वे अमर उजाला के मंच से अपनी आवाज बुलंद कर सकते हैं। बहरहाल मुद्दे पर आते हुए बताता हूं कि आर्शीवाद प्राप्त कुछ लोग ऐसे थे जिन्हें आगे बढ़ने की बहुत महत्वाकांक्षा थी तो वे किसी भी तरह खुद को लाईन में आगे दिखाने की होड़ में जुट गए। जब कई लोगों में प्रतिस्पर्धा हुई तो मारकाट मच गई और खुद को बेस्ट चिलांडू साबित करने के लिए हर कोई अपने अपने रास्ते पर चलने लगा। आग में घी का काम पंजाब में कुछ नजदीकी गिने जाने वाले पत्रकारों के व्यक्तिगत व्यवहार ने कर दिया।
बात हाईकमान तक पहुंची तो उसका सबसे बड़ा असर पांडेय जी की प्रतिष्ठा को लगा। जिस संपादक की बात को काटने की प्रबंधन सोच भी नहीं सकता था वहीं उन पर सवालिया निशान लगने लगे। इस राजनीति का मोहरा मैं भी बना लेकिन मैं उन बारीकियों को समझे बगैर अपने हक की लड़ाई का परचम लहरा रहा था। खैर मैंने जो भी किया उसके लिए मैं उनसे काफी साल तक शर्मिंदा रहा लेकिन सेक्टर आठ नोएडा में अमर उजाला के पुराने कार्यालय में एक दिन उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने हंसते हुए गले से लगा लिया। इसके बाद मैं लगातार दो तीन बार उनसे मिलने नोएडा के कार्यालय में गया। खैर उस समय तक जो कुछ होना था वो घट चुका था और बात यही सामने आई कि कुछ लोगों के घटियापन और कुछ लोगों के निकम्मेपन की सजा के तौर पर श्री पांडेय जी को शिव की तरह सारा विष अपने गले में उतारना पड़ा। उनके व्यवहार और चरित्र से मैं एक बात जरूर सीख पाया कि वे एक अमीर फकीर थे जिन्होंने अपने जीवन और दिल में सभी को आश्रय दिया।
राकेश शर्मा वरिष्ठ पत्रकार हैं और इन दिनों फ्रांस में रहते हैं. संपर्क- [email protected]
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