देहरादून में राष्ट्रीय सहारा अखबार के कर्मियों ने प्रबंधन के खिलाफ मुकदमा कर रखा है। यह मुकदमा श्रमायुक्त आफिस में किया गया है। सुनवाई के दिन सहारा प्रबंधन की तरफ से कोई नहीं आ रहा है। हां, आश्वासन के कागजात जरूर सौंप जाते हैं। सहारा प्रबंधन के लोग इस बार भी सुनवाई के दौरान सहायक श्रम आयुक्त देहरादून के कार्यालय में नहीं पहुंचे। इसके पहले भी 18 अगस्त 2015 को जब वेतन संबंधी मामले की पहली सुनवाई थी तब भी प्रबंधन पक्ष के लोग तय समय तक नहीं पहुंचे थे।
इस बार प्रबंधन के लोग मामले की सुनवाई से पूर्व कार्यालय में कागजात रिसीव कराकर रफू चक्कर हो गए। सहायक श्रम आयुक्त ने 15 सितंबर 2015 की तारीख कर्मचारियों को दी है। अगली तारीख पर न आने की दशा में मामले को लेबर कोर्ट में सौंपे जाने के आश्वासन के साथ अगली तिथि मुकर्रर की है। प्रबंधन ने २५ दिन का समय मांगा था। गौरतलब है कि 18 अगस्त 2015 को एचआर के अखिल कीर्ति ने अगस्त की पूरी सेलरी सितंबर माह में देने, अक्टूबर से धीरे धीरे बकाया देने और मजीठिया वेज का नियमानुसार पालन करने, काम के घंटे छह करने और पद के अनुसार काम लेने सहित सभी संस्तुतियां व परिलाभ देने की बात कही थी।
राष्ट्रीय सहारा देहरादून ने खुद को किस कैटगरी में रखा है, यह तो सहायक श्रम आयुक्त को दिये गए प्रपत्र से साफ नहीं हो रहा है। लेकिन सौंपे गए दस्तावेज के अनुसार ये अपने सब एडिटर को 12000 से 21700 रुपये, सीनियर सब एडिटर को 13000 से 23500 रुपये और चीफ सब एडिटर को 14000 से 25300 रुपये का पे स्केल देने के कागजात पेश किये हैं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि एक कर्मचारी की तरह आठ घंटे काम करने वालों को प्रबंधन ने अपना कर्मचारी नहीं माना है जबकि मजीठिया वेजबोर्ड ने एक साल की नियमित सेवा वाले को भी कर्मचारी का दर्जा देने की बात कही है। दुखद स्थिति यह है कि संविदा पर चार साल से काम करने वाले चीफ सब एडिटर का पे स्केल सब एडिटर से काफी कम रखा गया है। 1992 से सेवा देने वाले और 2007 से नौकरी शुरू करने वालों को एक पद दिया गया है। देहरादून संस्करण को शुरू हुए सात साल हो गए। कुछ कर्मचारियों को इस अवधि में एक दो प्रमोशन दे दिये गए तो कुछ को 12-15 साल से प्रमोशन नहीं मिला।
अपडेट… कर्मचारियों की लिस्ट में अपना नाम न पाकर राष्ट्रीय सहारा देहरादून के संवादसूत्र भड़के
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सहारियन
September 9, 2015 at 5:06 am
सहारा प्रबंधन ठीक ठाक है पर वह कान का कमजोर है. इस कमजोरी का फयदा कामचोर, चुगलखोर व castist किशम के सहराकर्मी उठाते है. प्रबंधन चाहता है की मेरिट को तवज्जो दिया जाये पर चुगलखोर कान भरके प्रबंधन की मति को बिगाड़ देता है. पटना में ऐसे ही एक कामचोर रिपोर्टर है. कान भरके ब्यूरो में आ गया है. उसका काम ही है सहारा में चुगलखोरी करना. जैसे ही उसे लगता है कि अमुक मेरिट वाले कर्मी की तरक्की होने वाली है वह वरिष्ठ कर्मी को गलत सूचना देकर गुमराह कर देता है. वह इस हद तक कहता है कि सर वह तो आपकी माँ बहन की गली देता है. बस प्रबंधन उस चुगल खोर की बात में आ जाते है. इस तरह के घुन सहारा को बर्बाद कर रहे है. प्रबंधन को क्रॉस जानकारी लेकर ऐसे चुगलखोर को दण्डित करना चाहिए.वह चुगलखोर आपनी करनी के कारन १३ वर्षों तक स्ट्रिंगर रहा और जब पटना संस्करण लांच हुवा तो वह कन्फर्म किया गया. उसका नाम ब से शुरू होता है. हलाकि ब कहने की भी जरुरत नहीं वह चिठिबाजी , चुगलखोरी व जातिवाद करने में माहिर है. प्रबंधन ऐसे लोगों से बचे.