अंबानी ने चैनल खरीद लिया तो जाहिर है वह एक तीर से कई निशाने साधेंगे. साध भी रहे हैं. मीडिया हाउस को मुनाफे की फैक्ट्री में तब्दील करेंगे. मीडिया हाउस के जरिए सत्ता की दलाली कर अपने दूसरे धंधों को चमकाएंगे. मीडिया हाउस के जरिए पूरे देश में रिलायंस विरोधी माहौल खत्म कराने और रिलायंस पक्षधर दलाली को तेज कराने का काम कराएंगे. इस कड़ी में वे नहीं चाहते कि जिले से लेकर ब्लाक स्तर के पत्रकार कभी कोई आवाज उठा दें या रिलायंस की पोल खोल दें या बागी बन जाएं. इसलिए रिलायंस वाले खूब विचार विमर्श करने के बाद स्ट्रिंगरों को वेंडर में तब्दील कर रहे हैं. यानि जिले स्तर का आईबीएन7 और ईटीवी का स्ट्रिंगर अब वेंडर कहलाएगा और इस बाबत दिए गए फार्मेट पर हस्ताक्षर कर अपने डिटेल कंपनी को सौंप देगा.
इस वेंडरशिप के जरिए रिलायंस की योजना यह है कि जिले स्तरीय पत्रकार को वेंडर बनाकर उससे कंटेंट डिलीवर कराने के नाम पर समझौता करा लिया जाएगा. इस समझौते में कई अन्य पेंच भी हैं. लेकिन अंततः यह पूरा समझौता पत्रकारिता के बुनियादी नियमों के खिलाफ है. अब स्ट्रिंगर अपने को कंपनी चैनल का आदमी नहीं बता पाएगा. उसकी अपनी खुद की सारी जिम्मेदारी होगी. वह बस कंटेंट देगा और बदले में पैसे लेगा. इसके अलावा वह कहीं कोई क्लेम दावा नहीं कर सकता. आईबीएन7 और ईटीवी के स्ट्रिंगरों में इस बात की नाराजगी है कि अब तो उन्हें कंपनी वाले स्ट्रिंगर भी नहीं रहने दे रहे, वेंडर बना दिया है, जिसका पत्रकारिता से कोई मतलब नहीं है. सूत्रों का कहना है कि रिलायंस वाले पत्रकारों को वेंडर बनाने का काम सिर्फ आईबीएन7 और ईटीवी में ही नहीं कर रहे हैं बल्कि कंपनी के दूसरे न्यूज चैनलों में भी कर रहे हैं.
आईबीएन7, सीएनएन-आईबीएन और ईटीवी को जिस ढंग से इन दिनों चलाया जा रहा है, उससे अब सबको पता चल गया है कि आखिर कारपोरेट के चंगुल में आने पर पत्रकारिता का क्या हाल होता है. उमेश उपाध्याय जो कभी पीआर का काम देखा करते थे, इन दिनों कंटेंट हेड के बतौर चैनलों में डंडा चला रहे हैं. इनके भाई सतीश उपाध्याय बीजेपी के दिल्ली अध्यक्ष हैं. इन दोनों के बारे में कहा जाता है कि ये अंबानी के इशारे पर काम करने वाले हैं. अंबानी की लूट के खिलाफ आवाज उठाने वाले केजरीवाल व इनकी पार्टी के बारे में कोई भी सकारात्मक खबर, बाइट दिखाने पर चैनल में पाबंदी है. इस तरह ये मीडिया हाउस देखते ही देखते सत्ता तंत्र और मुनाफा तंत्र का औजार बन गया है. इसमें अब वही लोग काम करने के लिए बचे रहेंगे जिन्हें पत्रकारिता से नहीं बल्कि पैसा से मतलब है.