सेना को राजनीति में खींचने के ख़तरे… सर्जिकल स्ट्राइक्स को पब्लिक करने के खतरे…

Mahendra Mishra : सेना को लेकर मोदी सरकार बहुत खतरनाक खेल खेल रही है। यह कितना खतरनाक हो सकता है। शायद उसके नेताओं को भी इसका अहसास नहीं है। सेना सरहद के लिए बनी है। और उसका वहीं रहना उचित है। सेना एक पवित्र गाय है उसको उसी रूप में रखना ठीक होगा। घर के आंगन में लाकर बांधने से उसके उल्टे नतीजे निकल सकते हैं। क्योंकि आप अगर सेना का राजनीतिक इस्तेमाल करते हैं। तो इसके जरिये वह भी राजनीति के करीब आती है। और इस कड़ी में कल उसको भी राजनीतिक चस्का लग सकता है। और एकबारगी अगर राजनीति का खून उसके मुंह में लग गया। तो फिर देश की राजनीति को उसके चंगुल में जाने से बचा पाना मुश्किल होगा।

भाजपा ने सर्जिकल स्ट्राइक को कैश कराना शुरू किया, यूपी में रक्षा मंत्री जगह-जगह अभिनंदन करा रहे

Mahendra Mishra : जिस बात की आशंका थी आखिरकार वही हुआ। रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर अपना अभिनंदन कराने आगरा और लखनऊ पहुंच गए। उन्होंने न दिल्ली को चुना। न जयपुर। न हैदराबाद। और न ही देश का कोई दूसरा इलाका। चुनाव वाला उत्तर प्रदेश ही इसके लिए उन्हें सबसे ज्यादा मुफीद दिखा। सर्जिकल स्ट्राइक को अब कैश कराने का वक्त आ गया है। क्योंकि सरहदी एटीएम में वोट भरे पड़े हैं। लिहाजा बीजेपी अब उसे भुनाने निकल पड़ी है।

गुजरात फाइल्‍स : अफसरों की जुबानी-मोदी अमि‍त शाह की काली कहानी

कुछ सालों पहले तक उत्तर प्रदेश पूरे देश का नेतृत्व किया करता था। लेकिन लगता है कि देश को सात-सात प्रधानमंत्री देने वाले इस सूबे की राजनीति अब बंजर हो गई है। इसकी जमीन अब नेता नहीं पिछलग्गू पैदा कर रही है। ऐसे में सूबे को नेता आयातित करने पड़ रहे हैं। इस कड़ी में प्रधानमंत्री मोदी से लेकर उनके शागिर्द अमित शाह और स्मृति ईरानी तक की लंबी फेहरिस्त है। स्तरीय नेतृत्व हो तो एकबारगी कोई बात नहीं है। लेकिन चीज आयातित हो और वह भी खोटा। तो सोचना जरूर पड़ता है। यहां तो तड़ीपार से लेकर दंगों के सरदार और फर्जी डिग्रीधारी सूबे को रौंद रहे हैं। इस नये नेतृत्व की हकीकत क्या है। इसकी कुछ बानगी पत्रकार राना अयूब की गुजरात दंगों और दूसरे गैर कानूनी कामों पर खोजी पुस्तक ‘गुजरात फाइल्स’ में मौजूद है। 

सुमंत भट्टाचार्य जी, आपने तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लंपटों का भी कान काट लिया

Mahendra Mishra : सुमंत भट्टाचार्य जी आपने तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लंपटों का भी कान काट लिया। उन पर लड़कियों का दुपट्टा खींचने का आरोप लगता था। लेकिन आप ने तो सीधे इंडिया गेट पर बलात्कार की ही दावत दे डाली। इलाहाबाद विश्वविद्याल से पत्रकारिता के रास्ते यहां तक का आपका यह सफर सचमुच काबिलेगौर है। हमारे मित्र रवि पटवाल ने इसे नर से बानर बनने की संज्ञा दी है। लेकिन मुझे लगता है कि यह जानवरों का भी अपमान है। पशु और पक्षियों में नर और मादा के बीच एक दूसरे की इच्छा का सम्मान यौनिक रिश्ते की प्राथमिक शर्त होती है। फ्री सेक्स शब्द सुनते ही आप उतावले हो गए। और बगैर कुछ सोचे समझे मैदान में कूद पड़े।

गल्तियां करके भी न सीखने वाले को भारतीय वामपंथ कहा जाता है…

Mahendra Mishra : प्रयोग करने वाले गल्तियां करते हैं। हालांकि उन गल्तियों से वो सीखते भी हैं। लेकिन गल्तियां करके नहीं सीखने वाले को शायद भारतीय वामपंथ कहा जाता है। 1942 हो या कि 1962 या फिर रामो-वामो का दौर या न्यूक्लियर डील पर यूपीए से समर्थन वापसी। घटनाओं का एक लंबा इतिहास है। इन सबसे आगे भारतीय समाज और उसमें होने वाले बदलावों को पकड़ने की समझ और दृष्टि। सभी मौकों पर वामपंथ चूकता रहा है। भारत में वामपंथ पैदा हुआ 1920 में लेकिन अपने पैर पर आज तक नहीं खड़ा हो सका। कभी रूस, तो कभी नेहरू, कभी कांग्रेस, तो कभी मध्यमार्गी दलों की बैसाखी ही उसका सहारा रही।

जेटली का चाबुक और मीडिया घरानों का घुटने टेकना… : चौथे खंभे का ‘आपरेशन’ शुरू

: इमरजेंसी के विद्याचरण भी पानी मांगे : वित्तमंत्री अरुण जेटली नये प्रयोगकर्ता के तौर पर सामने आए हैं। उन्होंने डीडीसीए में अगर ‘चारा मॉडल’ को आगे बढ़ाया है। तो सूचना प्रसारण मंत्रालय के जरिये ‘लोकतंत्र में इमरजेंसी’ का नया माडल दिया है। जेटली जी ने छह महीने के भीतर ही चौथे खंभे की ऐसी कमर तोड़ी है कि फिर से उठने में उसे सालों लग जाएंगे। यह सब कुछ सरकारी कोड़े से संभव हुआ है। जेटली की चाबुक क्या चली एक-एक कर सारे मीडिया घराने घुटने टेक दिए। विरोध जताने वाले सरकारी कहर का सामना कर रहे हैं। पत्रकारिता का यह हाल उन जेटली साहब ने किया है जो इमरजेंसी की पैदाइश हैं। सरकारी शिकंजा ऐसा है कि संजय गांधी और विद्याचरण शुक्ल की जोड़ी भी शरमाने लगे।

बीजेपी महासचिव राम माधव ने मोदी की लाहौर यात्रा पर संघी गोबर डाल दिया

Mahendra Mishra : भारत, पाक और बांग्लादेश एक ही जिगर के टुकड़े हैं। क्रूर हालात ने इन तीनों को एक दूसरे से अलग कर दिया। इनके बीच दोस्ती और मेल-मिलाप हो। एकता और भाईचारा का माहौल बने। अमन और शांति में विश्वास करने वाले किसी शख्स की इससे बड़ी चाहत और क्या हो सकती है । इस दिशा में किसी पहल का स्वागत करने वालों में हम जैसे लाखों लोगों समेत व्यापक जनता सरहद के दोनों तरफ मौजूद है। इसी जज्बे में लोग प्रधानमंत्री मोदी की लाहौर यात्रा का स्वागत भी कर रहे हैं। लेकिन इस यात्रा का क्या यही सच है? शायद नहीं। यह तभी संभव है जब मोदी जी नागपुर को आखिरी प्रणाम कह दें।

महिला वीडियो जर्नलिस्ट ने टांग मारकर शरणार्थियों को गिराया, चैनल ने नौकरी से निकाला

एक न्यूज चैनल की महिला वीडियो जर्नलिस्ट पेत्रा लैज्लो ने एक शरणार्थी को टांग मार कर गिरा दिया. इस ओछी हरकत पर उसे अपनी नौकरी गंवानी पड़ी. कैमरा पकड़े नीली जैकेट में महिला पत्रकार की यह शर्मनाक हरकत इंटरनेट पर वायरल हो रही है. एन1टीवी चैनल की कैमरा वुमैन पेत्रा लैज्लो पुलिस से बच कर भाग रहे शरणार्थियों के एक समूह का वीडियो अपने कैमरे से शूट कर रही थीं. जब उसने एक आदमी को टांग अड़ा दी तो वह लडखड़़ाता हुआ गिर गया.