चंद्र मौली-
मैं हार रहा हूं जंग जिंदगी से हर सपना मेरा टूट रहा
कल तक जितना मजबूत था आज उतनी तेजी से टूट रहा
जो बीत रही है मुझ पर, वो मैं ही बस जानता हूं
कौन है अपना कौन पराया सब अच्छे से पहचानता हूं
कल तक भी जीने की एक उम्मीद मन में लिए
कुछ सपने सोचे थे मैने मौत से लड़ते हुए
उमंग, उत्साह सब छीन रहा, हार रहा हूं हर सपना
चंद्र मौली
समझ आ गया अब हमे होता नही कोई अपना
जब हमारे अपने ही हौसला टूटने की वजह बने
फिर भला क्यों जीने की दिल में कोई आश जगे
डूब रहा है वो सूरज, जो चमक रहा था खूब यहां
जो देख न पाया यहां से वो देखूंगा जाकर सब वहां
कोरोना की ये जंग शायद जीतने की कोशिश भी करता पर असल में जो असली जंग थी जिंदगी की अपनो की वो हार गया….
यशवंत सिंह-
अभी अभी छपरा के एक मित्र मुकुन्द हरि का ये मैसेज आया। क्या कहूँ! निःशब्द हूँ! आप सब भी पढ़ें और यथासंभव मदद करें।
…………
भाई, स्थिति ठीक नहीं है। 8 महीनों के भीतर कोविड से दुबारा त्रस्त हो चुका हूं। अपनी तरफ से मास्क, सैनिटाइजेशन, फिजिकल डिस्टेंसिंग कोविड की शुरुआत से ही बरतता रहा। लेकिन कुछ अपने ही घर के भीतर आकर सुरक्षा चक्र भेद दें तो क्या कहियेगा!
बेतरह सूखी खांसी, 104 बुखार, ठंढ, कमज़ोरी से हाल बेहाल है। इस बार पार निकलना मुश्किल है। सीटी स्कैन में दोनों फेफड़ों में इंफेक्शन और निमोनिया घर कर चुका है।
आगे, जैसी प्रभु इच्छा! जो कुछ भूल-चूक हुई हो आप मित्रगण अपना समझकर माफ कीजियेगा। यही नियति है। इस जन्म का लेन-देन पूरा हो जाय तो अच्छा है। आगे फिर नए ऋण उतरेंगे, चढ़ेंगे। जीवन क्षणभंगुर है, कोविड की महामारी ने इसे और अधिक अनिश्चित कर दिया है।
फिर भी उम्मीद है कि जब मानव समाज इस महामारी से बाहर निकलेगा तो भविष्य की महामारियों पर विजय पाना अधिक मुश्किल न रहेगा। विज्ञान एकमात्र जरिया बनेगा जो आगे फिर किसी घने अंधियारे के आने पर मार्ग प्रदीप्त करता रहेगा।
बात करने की हालत में नहीं हूं। भूल-चूक क्षमा करेंगे।