Amit Santosh Mishra : वो पत्थरों को भी चीर कर निकल जाते हैं। जो मुश्किल हालात में हौसला दिखाते हैं।। क्या 7 जून को फेसबुक वॉल पर ऐसा लिखने वाला तरुण 6 जुलाई को आत्महत्या कर सकता है? लोग कह रहे हैं Tarun Sisodia ने कोरोना के डर से खुदकुशी कर ली।
तरुण डरने वालों में से नहीं था। 6 महीने पहले जब डॉक्टरों ने बताया कि उसे ब्रेन ट्यूमर है तो उसने हमसे बोल दिया कि किसी को बताएं न। हम काम को मना करते रहे और वह खबरें लगातार रिपोर्ट करता रहा। उसने घर पर भी किसी को अपने ऑपरेशन के बार में नहीं बताया। शायद उसके घर में अब भी एक दो लोग ही इस ऑपरेशन के बारे में जानते हों। इस ऑपरेशन के बाद जो काम पर आते ही रिपोर्ट करने निकल गया हो उसे कैसे कोरोना से हारने वाला कहा जा सकता है। तरुण को मैं टाइम्स के दिनों से जानता हूं। टक्कर देने वाला इंसान था। ऐसे हार कर भागने वालों में से नहीं था।
तरुण का जिक्र चला है तो कुछ और बातें लिख रहा हूं। वरना शायद मैं मीडिया के इस रोने-हंसने का ज्यादा लोड नहीं लेता। पत्रकारिता के संस्थानों में क्या सिखाते हैं यह किसी से छुपा नहीं है। मैंने पत्रकार के तौर पर जो कुछ सीखा वो अपने ऐसे संपादकों से सीखा जिन्होंने हाथ पकड़ कर सिखाया। गलती की तो जम कर डांट भी पिलाई। काम के लिए सिर पर सवार भी रहे। लेकिन लगातार साथ भी रहे। अब भी बड़े भाई या दोस्त की तरह हालचाल पूछते रहते हैं।
अब बात Kuldeep Vyas की। कुलदीप व्यास दैनिक भास्कर में संपादक नहीं, भगवान हैं। उनका कहना है कि सेठ मेरा क्या कर लेगा। ठीक भी है। उन्होंने मुझसे भी एक दिन कह दिया कि तुम मेरे साथ काम नहीं कर सकते। वह भी तब जब मैं दिल्ली इलेक्शन के चलते 2 महीने से बिना वीकली ऑफ के काम कर रहा था। मैंने बहुत कहा कि कोई शिकायत हो तो बताएं, आखिर बात क्या है। बोले – नहीं कर सकता तो नहीं कर सकता। मैंने सभी मुमकिन दरवाजे खटखटाए लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। खैर मैं भास्कर से बाहर निकल आया। मेरे बाद मेरे हितैसियों पर गाज गिरी। इसका मुझे ज्यादा दुख है। इस वजह से मैंने भास्कर के लोगों से खुद बात करना कम कर दिया।
खैर फिर कोरोना संकट आया और पूरा दिल्ली एडिशन ही कुलदीप व्यास के चेलों तक सिमट गया। फिर खेल शुरू हुआ बंदरबांट का। मलाई कहां से और कैसे खाई जा सकती है इसके लिए लोगों को रास्ते से हटाने का दौर शुरू हुआ। तरुण हेल्थ और एमसीडी रिपोर्ट करता था। उससे भी कहा गया तुम अपना देख लो। चूंकि वह बीमार था इस वजह से कंपनी पॉलिसी के तहत उसे निकाला जाना मुमकिन और मानवीय नहीं था। ऐसे में उसे इतना प्रताड़ित करने की ठानी गई कि वह खुद ही छोड़ कर भाग जाए। इस रस्साकशी में तरुण को कोरोना हो गया। घर पर दो छोटे बच्चे, मां, भतीजी दोनों कोरोना पॉजिटिव। भाई और तरुण का परिवार घर पर क्वॉरंटीन है। उस पर तुर्रा ये कि उसे कहा गया कि अस्पताल में तो खाली लेटे हो खबर वहीं से लिख कर दे दो। हम ऐसे तनाव का अंदाजा भी नहीं लगा सकते। कुछ बातें और साफ कर दूं –
- एम्स में उससे किसी ने मोबाइल नहीं छीना था। उसने आखिरी दिन तक लोगों से बातें करके अपना दुख बताया। भास्कर के ही एक रिपोर्टर ने घटना को एक अलग मोड़ देने की कोशिश की है। जिससे साबित किया जा सके कि तरुण कमजोर था। इसलिए ऐसी हरकत कर ली।
- तरुण जब ब्रेन ट्यूमर जैसा मुश्किल ऑपरेशन झेल गया तो कोरोना जैसी बीमारी उसके लिए कुछ नहीं थी। वह हेल्थ रिपोर्टर था और डॉक्टरों से लगातार संपर्क में रहता था। उसे पता था कि कौन सी बीमारी गंभीर है और कौन नहीं।
मुझे पता है कि इसे सिर्फ कोरोना के डर से हुई एक रिपोर्टर की मौत बता कर रफादफा करने की कोशिश होगी। लेकिन यह एक मेहनती पत्रकार को खुद की जिंदगी खत्म करने की कगार पर ढकेलने की एक साजिश है।
तरुण के बाद उसकी दो बेटियों और परिवार के साथ खड़े होने का वक्त है. जल्दी ही उनके लिए कुछ करने का प्रयास करूंगा। उम्मीद है सभी साथी साथ आएंगे।
पत्रकार अमित संतोष मिश्रा की एफबी वॉल से.
Shankar Anand : तरूण , संवाददाता — सर , मैं कोरोना वायरस से संक्रमित हो गया हूं , कुछ दिनों की छुट्टी चाहिए ?
संपादक – कोई बात नहीं , तुम वहीं अस्पताल में रहकर ही खबरों को फाइल करते रहो , वहीं से ड्यूटी करो …
ये कोई फिल्म की कहानी नहीं, बल्कि ये एक ऐसा सत्य है , जिसके वजह से राजधानी दिल्ली में आज 6 जुलाई को तरूण नाम के एक एक पत्रकार साथी ने एम्स अस्पताल के चौथी मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर लिया, आत्महत्या करने से पहले तरूण ने अपने दोस्तों को चैट करके एक जानकारी दिया था, जिसको पढने के बाद ऐसा लगता है की मौत की वजह में भी एक साजिश है?
“मेरी हत्या हो सकती है” .. ये मैसेज था जिसे अपने दोस्तों के साथ तरूण ने whatsapp पर साझा किया था ,
पत्रकार तरूण तो इस दुनिया से चला गया , लेकिन अपनी दो मासूम सी बिटिया और अपनी पत्नी को रोता बिलखता हुआ छोड गया .. उफ्फ
पिछले कुछ दिनों से लगातार कई दूसरे साथियों की परेशानी देखकर मैं खुद परेशान सा हो गया हूं , क्योंकी इस कोरना संक्रमण काल में कई दूसरे पत्रकार साथियों की आर्थिक तौर पर और मानसिक तौर पर आ रही परेशानियों को देखकर और सुनकर मन बैठा जा रहा है .. आज दोपहर में अचानक एक खबर की जानकारी मिली की एम्स अस्पताल से एक युवक ने कूदकर आत्महत्या कर लिया है , बाद में जब उसकी जानकारी प्राप्त किया तो पता चला कि तरूण सिसोदिया नाम का पत्रकार ने आत्महत्या कर लिया है ..
ये खबर सुनने के बाद आज दिनभर कुछ भी काम में मन ही लग रहा है … तरूण के बारे में ये जानकारी मिली की उसे उसके दफ्तर से पिछले कुछ महिनों से एक साजिश के तहत निकालने की कोशिश की जा रही थी, इसके साथ ही इसी दौरान जब वो कोरोना संक्रमण काल में खुद संक्रमित हो गया उसके बाद भी तरूण के कुछ करीबी दोस्तों द्वारा ये आरोप सामने आ रहा है की, उसके कुछ वरिष्ठ संपादकों द्वारा उसको नौकरी से निकालने के लिए इस कदर मानसिक तौर पर दवाब बनाया जा रहा था कि वो खुद ही नौकरी छोडकर कहीं और चला जाए.
जब तरूण ने अपने बॉस को ये बताया कि वो कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुका है, तब उसके एक बॉस के जरिये ये कहा जाता है कि- कोई बात नहीं, तुम अस्पताल से ही खबरों को फाइल कर दो…
पता नहीं कैसा जल्लाद ये पत्रकार है जो किसी भी अपने जूनियर को ऐसे परेशान कर रहा था, आज उस पत्रकार के बारे में इतनी ग्लानि हो रही है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है.
ये एक पत्रकार की कहानी मात्र नहीं है, कई ऐसे पत्रकार हैं जिसे हाल में ही उसके संस्थान ने निकाल दिया. कुछ ऐसे भी मेरे पत्रकार मित्र हैं जो बेहद शानदार पत्रकार होने के साथ साथ बेहद अच्छे इंसान भी हैं, लेकिन आजकल वो बेहद आर्थिक तौर पर मानसिक तौर पर परेशान चल रहे हैं।
ऐसे में केंद्र सरकार /राज्य सरकार ऐसी पहल करे कि इस चौथे स्तंभ को बीमार होने से बचाया जा सके।
भगवान तरुण भाई की आत्मा को शांति और उसके पूरे परिवार को हिम्मत /साहस और इस दुःख से निकलने की हिम्मत प्रदान करें।
पत्रकार शंकर आनंद की एफबी वॉल से.
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अजय सिंह
July 8, 2020 at 4:58 pm
यै कहानी जब से शुरू हुई जब से दैनिक भास्कर के मालिक पवन अग्रवाल के गोल्फ लिंक बंगले पे जनवरी 2020 को एमसीडी के रामजी लाल ने शेखर घोष और आशीष पाठक के कहने पे नोटिस भेजा, आशीष पाठक सेठो के दिल्ली के सारे काम संभालता है और हर काम में पहले नोटिस भेजवाता है और फिर सेठ से काम करवाने के बहाने लाखो रुपए डकार जाता है। आशीष पाठक साल 2016 तक सुपर बाज़ार का काम काज देखता था और वह पर करोड़ो रुपए का गबन किया और सेठ को मजबूरन सुपर बाज़ार सरकार को वापस देना पड़ा, गबन का उल्लेख सूप्रीम कोर्ट के सुपर बाज़ार के ऑर्डर मे किया गया है। सेठ को सुपर बाज़ार में 150 करोड़ का चुना लगवा चुका है, इसके बाद वह कुलदीप व्यास का पीए बन गया और उसके रास्ते के रोड़े जितने थे उन सब को हटाने का काम सेठो और कुलदीप व्यास के कान भरकर शुरू कर दिया, सबसे पहले विभोर शर्मा फिर तरुण सिसोदिया को हटवा के अपने चहेते शेखर घोष के द्वारा सेठ एमसीडी का मामला सुलझवाया फिर मलाईदार एमसीडी की बीट कुलदीप व्यास को पटा के घोष को दिलवाई। यही से विभोर शर्मा और तरुण सीसोदिया का पतन शुरू हुआ। आशीष पाठक लंबे समय से सेठ को लाखो रुपए का चुना लगाते आ रहा है। कहानी यै बनाई गई की विभोर शर्मा और तरुण सिसोदिया जो की उस वक्त एमसीडी की बीट देखा करता था सेठ को नोटिस भिजवा रहे है। जबकि सत्यता बिलकुल विपरीत थी। तरुण को पहले नोएडा की बीट दी और बाद में उसे कहा गया की तुम दिल्ली विश्व-विद्यालय भी देखो ताकि वो परेशान होकर खुद इस्तीफा दे देगा।
कुलदीप व्यास के पीछे जो भी कलेक्शन होता है उसे आशीष पाठक कुलदीप व्यास के पास भेजता है।
भगवान तरुण की आत्मा को शांति दे और दोषियो को सजा। ॐ शांति।
Vibhor sharma
July 9, 2020 at 10:49 pm
मैं आपको नहीं जानता। पर आप बहुत कुछ जानते हैं। संभव हो तो फोन करिएगा।।।।