जिन मई ’14 से पहले अखबार नईं वेख्या…
सबसे पहले प्रतिष्ठित रचनाकार असगर वज़ाहत Asghar Wajahat साहब से माफ़ी कि उनके कालजयी नाटक “जिन लाहौर नहीं वेख्या” से मिलता जुलता शीर्षक रख रहा हूँ। बात दरअसल ये है कि इस वक्त एक पूरी जमात उठ खड़ी हुयी है जिसने 16 मई 2014 से पहले न अखबार देखे हैं न टीवी का रिमोट हाथ में उठाया था। और इसीलिए यह जमात देश के प्रधानमंत्री और सत्ताधारी पार्टी की आलोचना पर छाती कूटने लगती है। भाई लोग ऐसे कलपते, किकियाते, बिलबिलाते हैं मानो इससे पहले कभी किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ एक शब्द भी न लिखा गया हो न बोला गया हो।