Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

एनडीटीवी प्राइम टाइम में Ravish Kumar और अभय दुबे ने भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली को पूरी तरह घेर लिया

Shambhunath Shukla : एक अच्छा पत्रकार वही है जो नेता को अपने बोल-बचन से घेर ले। बेचारा नेता तर्क ही न दे पाए और हताशा में अंट-शंट बकने लगे। खासकर टीवी पत्रकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। बीस जनवरी को एनडीटीवी पर प्राइम टाइम में Ravish Kumar और अभय दुबे ने भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली को ऐसा घेरा कि उन्हें जवाब तक नहीं सूझ सका। अकेले कोहली ही नहीं कांग्रेस के प्रवक्ता जय प्रकाश अग्रवाल भी लडख़ड़ा गए। नौसिखुआ पत्रकारों को इन दिग्गजों से सीखना चाहिए कि कैसे टीवी पत्रकारिता की जाए और कैसे डिबेट में शामिल वरिष्ठ पत्रकार संचालन कर रहे पत्रकार के साथ सही और तार्किक मुद्दे पर एकजुटता दिखाएं। पत्रकार इसी समाज का हिस्सा है। राजनीति, अर्थनीति और समाजनीति उसे भी प्रभावित करेगी। निष्पक्ष तो कोई बेजान चीज ही हो सकती है। मगर एक चेतन प्राणी को पक्षकार तो बनना ही पड़ेगा। अब देखना यह है कि यह पक्षधरता किसके साथ है। जो पत्रकार जनता के साथ हैं, वे निश्चय ही सम्मान के काबिल हैं।

<p>Shambhunath Shukla : एक अच्छा पत्रकार वही है जो नेता को अपने बोल-बचन से घेर ले। बेचारा नेता तर्क ही न दे पाए और हताशा में अंट-शंट बकने लगे। खासकर टीवी पत्रकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। बीस जनवरी को एनडीटीवी पर प्राइम टाइम में Ravish Kumar और अभय दुबे ने भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली को ऐसा घेरा कि उन्हें जवाब तक नहीं सूझ सका। अकेले कोहली ही नहीं कांग्रेस के प्रवक्ता जय प्रकाश अग्रवाल भी लडख़ड़ा गए। नौसिखुआ पत्रकारों को इन दिग्गजों से सीखना चाहिए कि कैसे टीवी पत्रकारिता की जाए और कैसे डिबेट में शामिल वरिष्ठ पत्रकार संचालन कर रहे पत्रकार के साथ सही और तार्किक मुद्दे पर एकजुटता दिखाएं। पत्रकार इसी समाज का हिस्सा है। राजनीति, अर्थनीति और समाजनीति उसे भी प्रभावित करेगी। निष्पक्ष तो कोई बेजान चीज ही हो सकती है। मगर एक चेतन प्राणी को पक्षकार तो बनना ही पड़ेगा। अब देखना यह है कि यह पक्षधरता किसके साथ है। जो पत्रकार जनता के साथ हैं, वे निश्चय ही सम्मान के काबिल हैं।</p>

Shambhunath Shukla : एक अच्छा पत्रकार वही है जो नेता को अपने बोल-बचन से घेर ले। बेचारा नेता तर्क ही न दे पाए और हताशा में अंट-शंट बकने लगे। खासकर टीवी पत्रकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। बीस जनवरी को एनडीटीवी पर प्राइम टाइम में Ravish Kumar और अभय दुबे ने भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली को ऐसा घेरा कि उन्हें जवाब तक नहीं सूझ सका। अकेले कोहली ही नहीं कांग्रेस के प्रवक्ता जय प्रकाश अग्रवाल भी लडख़ड़ा गए। नौसिखुआ पत्रकारों को इन दिग्गजों से सीखना चाहिए कि कैसे टीवी पत्रकारिता की जाए और कैसे डिबेट में शामिल वरिष्ठ पत्रकार संचालन कर रहे पत्रकार के साथ सही और तार्किक मुद्दे पर एकजुटता दिखाएं। पत्रकार इसी समाज का हिस्सा है। राजनीति, अर्थनीति और समाजनीति उसे भी प्रभावित करेगी। निष्पक्ष तो कोई बेजान चीज ही हो सकती है। मगर एक चेतन प्राणी को पक्षकार तो बनना ही पड़ेगा। अब देखना यह है कि यह पक्षधरता किसके साथ है। जो पत्रकार जनता के साथ हैं, वे निश्चय ही सम्मान के काबिल हैं।

Sanjaya Kumar Singh : आम आदमी पार्टी (अरविन्द केजरीवाल) नहीं होती तो दिल्ली का मुख्यमंत्री कोई मनोज तिवारी, जगदीश मुखी, विजय कुमार मल्होत्रा या स्मृति ईरानी हो सकता था। पर मोदी की दिल्ली रैली के बाद पार्टी को लगा कि बेहतर विकल्प की जरूरत है और किरण बेदी परिदृश्य में आईं। बेशक यह दिल्ली के लिए बेहतर विकल्प है। दूसरे संभावित उम्मीदवारों से अच्छी हैं। दिल्ली को लाभ हुआ है। भारतीय जनता पार्टी आम आदमी पार्टी से परेशान है। मोदी के नाम पर वोट मांगने की रणनीति बदलनी पड़ी। भाजपा को केजरीवाल से (बादल + चौटाला+पवार से भी) ज्यादा डर लग रहा है। यह अच्छी बात है। अरविन्द केजरीवाल के कारण ही हम देख रहे हैं कि संघ से बाहर का भी कोई व्यक्ति भाजपा का चेहरा बन पाया। और मोदी ही हर जगह भाजपा के चेहरा नहीं रहेंगे। यह भी अच्छी बात है, सकारात्मक है। अगर हम एक ईमानदार और अच्छी साख वाली ताकत बना सकें तो स्थापित राष्ट्रीय पार्टियां ईमानदार नए चेहरों को जोड़ने के लिए मजबूर होंगी। इस दबाव को बनाए रखने की जरूरत है। आप को समर्थन का मतलब है राष्ट्रीय दलों को जनता के प्रति अपना व्यवहार बदलने के लिए मजबूर करना।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Mukesh Kumar : केजरीवाल का कहना सही लगता है कि नरेंद्र मोदी ने अपनी नाक बचाने के लिए किरण बेदी को आनन-फानन में मुख्यंमंत्री पद के दावेदार के रूप में प्रोजेक्ट कर दिया है। अब अगर हारे तो ठीकरा बेदी के सिर फूटेगा और जीते तो कहा जाएगा मोदी बड़े रणनीतिकार हैं। लेकिन दिल्ली की हार मोदी एंड कंपनी के लिए बड़ी हार होगी और इसके ब़ड़े प्रभाव भविष्य की राजनीति पर देखने को मिलेंगे। आपको क्या लगता है, बेदी के कंधों पर रखकर बंदूक चलाने के इस प्रयोग से मोदी दिल्ली बचा पाएंगे?

वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला, संजय कुमार सिंह और मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement