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सुख-दुख

पत्रकार-साहित्यकार सुकांत नागार्जुन का निधन

प्रवीण बाग़ी-

वरिष्ठ पत्रकार सुकान्त नागार्जुन नहीं रहे। राजीव नगर स्थित आवास पर ली अंतिम सांस। करीब 2 घंटे पहले हुआ निधन।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और परिवार को धैर्य प्रदान करे।

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देव प्रिय अवस्थी-

बाबा नागार्जुन के पत्रकार-सहित्यकार पुत्र सुकांत नागार्जुन ने भी आज दोपहर दुनिया छोड़ दी। नवभारत टाइम्स, पटना में 1986-1987 में हम दोनों सहकर्मी थे। सुकांत जी ने दो साल पहले ही कैंसर से लंबी जंग जीती थी। नमन।

असीमा भट्ट-

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बाबा नागार्जुन के बेटे और हमारे सुकांत भैया भी नहीं रहे.
जब लगभग बच्ची थी और नवभारत टाइम्स (पटना) में काम करना शुरू किया तब सुकांत भैया एक तरह से मेरे गाइड और शिक्षक रहे. बाबा के बेटे होने की वजह से उनमें ज्ञान और सादगी भरी पड़ी थी. नमन भैया।

SN Vinod-

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ओह! ये हो क्या रह है? अब सुकांत जी? सुकांत जी १९८२ में कलकत्ता में मेरे सहयोगी रहे।फिर १९८४ में उनसे ‘प्रभात खबर’ के लिए लिखवाया।।अत्यंत ही कुशल, निडर पत्रकार!और, सच्चे अर्थ में महामानव! बाबा को उनसे बहुत उम्मीद थी।मेरे नागपुर आ जाने के बाद भी नियमित संपर्क में रहे।ईश्वर उनकी आत्मा को स्वर्ग में शांति प्रदान करते रहें और परिजनों को दु: ख सहने की शक्ति दें! ॐ‌ शांति.. शांति!

हरीश पाठक-

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सुकांत नागार्जुन: विदा शालीन पत्रकारिता के आचार्य
हिंदी पत्रकारिता में शिष्टता,शालीनता और भाषा की शुद्धता के पैरोकार सुकांत नागार्जुन ने आज दोपहर दो बजे पटना के राजीव नगर स्थित अपने निवास पर अंतिम सांस ली।वे पिछले पन्द्रह दिनों से कई बीमारियों से जूझ रहे थे ।

मैथिली के दिग्गज कवि सुकांत नागार्जुन,कालजयी रचनाकार बाबा नागार्जुन के द्वितीय पुत्र थे।वे पेशे से पत्रकार थे और पत्रकारिता में भाषा की शुद्धता और शुचिता को ले के बेहद गम्भीर थे। वे ‘नवभारत टाइम्स’ (पटना संस्करण) के चीफ रिपोर्टर रहे और सात साल तक दैनिक ‘हिंदुस्तान’ (मुजफ्फरपुर संस्करण) के स्थानीय संपादक रहे।

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2001 से 2004 तक जब मैं दैनिक ‘हिंदुस्तान'(भागलपुर संस्करण) का समन्वय सम्पादक था तब अलग अलग संस्करणों में रहने के बावजूद उनसे लगभग रोज बात होती थी।खबरों के प्रति,तथ्यों के प्रति,आम जन की समझ में आनेवाली भाषा के प्रति उनकी चिंता उनके विस्तृत फलक को सामने रखती थी। वे रिश्ते कालांतर में भी मजबूत रहे।

2008 से 2012 तक जब मैं पटना में ‘राष्ट्रीय सहारा’ का स्थानीय संपादक था तब कभी वे दफ्तर आते तो कभी फोन पर साहित्य हो या राजनीति उनकी बेबाक राय मेरे लिए बेहद जरूरी होती। उनका साफ साफ नजरिया बहुत ताकत देता।
चार साल पहले कैंसर को मात दे कर फिर फिर सक्रिय हुए सुकांत जी आज अचानक विदा ले लेंगे यह यकीन ही नहीं हो रहा था पर उनके बड़े पुत्र सुशीम ने जब इसकी पुष्टि की तो सिवा आंसुओं के बचा ही क्या था?

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डूबते सूरज के साथ पटना के दीघा घाट पर हिंदी पत्रकारिता में सज्जनता व शालीनता के इस प्रतीक पुरुष को नम आंखों से अंतिम विदा दी गयी। बहुत याद आयेगी आपकी सादगी और शिष्टता।हिंदी पत्रकारिता में अब यही दो तत्व दुर्लभ हो गये हैं। सादर नमन अक्षरों के सेनापति।

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