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सुख-दुख

मोदी ही सिस्टम है, सिस्टम ही मोदी है!

जे सुशील-

मोदी ही सिस्टम है. सिस्टम ही मोदी है.
मीडिया ही चूतिया है क्योंकि चूतियों का मीडिया है.

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सलमान ही राधे है और राधे ही सलमान है और ट्रेलर आ गया है. आपकी अर्थियों को कंधा तो सलमान देंगे नहीं और न आपको ऑक्सीजन देंगे लेकिन आप अपनी जेब ढीली कर के भाई की फिल्म ज़रूर देखें.

वहां से पैसे बचें तो आईपीएल देख लें. सचिन के कहने पर जुआ खेल लें पेटीएम पर. क्योंकि उनको जब ऑक्सीजन या अस्पताल चाहिए तो मिल जाएगा. जैसे अमिताभ बच्चन को मिल गया था जो 3870 ट्वीट करते हुए बताते हैं कि उनके स्वर्गीय पिता ने कौन सी कविता लिखी थी. हरिवंश राय जिंदा होते तो पछताते कि क्या बवासीर पैदा किया है मैंने.

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पहचान लीजिए. यही सिस्टम है.

हां मीडिया के बारे में दो शब्द. कांग्रेस की सरकार के दौरान आलोक मेहता नाम के एक भांड रूपी पत्रकार को साहित्य में योगदान के लिए पदमश्री दिया गया था जिनके बारे में अशोक वाजपेयी ने लिखा कि दो हज़ार साहित्यकारों की सूची बनेगी तो भी मेहता का नाम नहीं होगा. ये भांड कल ट्वीट कर रहे थे कि बोलने की आज़ादी वाले नियम बदले जाएं.

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हिंदुस्तान टाइम्स अखबार की मालकिन शोभना भरतिया कांग्रेस के कोटे से राज्यसभा रही हैं. लेकिन मोदी के आने के बाद साष्टांग लेटी हुई हैं सिस्टम के आगे. हां सचिन भी तो कांग्रेस के समय ही राज्यसभा में आए थे लेकिन वो कैसे लेटे हैं ये बताने की ज़रूरत नहीं है.

चलते चलते जेएनयू के एक प्रोफेसर की करतूत बताता चलूं. चार दिन पहले खुद को दलित मामलों के स्वयंभू जानकार बताने वाले प्रोफेसर विवेक कुमार ने कोरोना ग्रस्त रविश कुमार के बारे में लिखा कि ये विश कुमार आजकल कहां हैं……ये वो प्रोफेसर हैं जो मोदी के सत्ता में आने के बाद संघ की बैठकों में जाने लगे थे लोगों ने खूब लानत मलामत की थी. गए क्यों थे संजय वन की उस बैठक में वो भी मुझे पता है. ट्विटर पर मैंने गरियाया तो ब्लॉक कर गए और बाद में ट्वीट डिलीट कर दिया.

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यहां फेसबुक पर भी विवेक कुमार जैसों के चेले भरे हुए हैं जो मौका देखकर रवीश कुमार को गरिया कर भाजपा में नंबर बढाते रहे हैं. रवीश आलोचना से परे नहीं हैं. मैंने भी आलोचना की है लेकिन गंदी भाषा का उपयोग किया जाता है सिस्टम में घुसने के लिए क्योंकि सिस्टम उन्हीं का है जो दूसरों को चूतिया बताते हैं.

इन सबको पहचान लीजिए. ये सिस्टम में घुसने की कोशिश में लगे हुए लोग हैं.

सिस्टम मस्त है. राजन मिश्र को अस्पताल में बेड नहीं मिलता है.मिलता है तो मुश्किल से. वो मर जाते हैं तो सिस्टम एक ट्वीट कर देता है……सिस्टम ने वो कर दिया जो करना था. यही सिस्टम है. राजन मिश्र की जगह अमित मालवीय होते (जो पद्मश्री नहीं हैं) तो देखते सिस्टम की तत्परता.

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