दिलीप खान-
देश मटियामेट हो जाए, लेकिन मोदी की प्राथमिकता में इमेज मेकओवर हमेशा पहले नंबर पर रहेगा. चौतरफ़ा त्राहिमाम के बीच भारतीय मीडिया इस आदमी से सवाल पूछने से भले ही अब भी पहरेज बरतता हो, लेकिन बीते कुछ दिनों से अंतरराष्ट्रीय मीडिया में मोदी की काफी किरकिरी हुई है. सबने सीधे मोदी पर उंगली तान दी.
मोदी को इसकी आदत नहीं है. भारत के भीतर वे ख़ुद को सवालों से ऊपर समझते हैं. उनके समर्थकों ने उन्हें ईश्वर का दर्जा दे रखा है. मोदी खींसे निपोरकर भीषण आपदा में भी हंसते रहते हैं. भारतीय मीडिया उनकी वंदना में जुटा रहता है.
अंतरराष्ट्रीय मीडिया पर ये दबाव नहीं है. अभी तीन दिन पहले विदेश मंत्रालय ने द ऑस्ट्रेलियन अख़बार के प्रधान संपादक को चिट्ठी भेज दी. सिर्फ़ इसलिए क्योंकि अख़बार ने मोदी पर अक्षमता और सनकपन भरे फ़ैसले लेने के आरोप लगाए. कल, विदेश मंत्री जयशंकर ने दुनिया भर के भारतीय राजदूतों और उच्चायुक्तों से कहा है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया जो छाप रहा है, उसके काउंटर में वे मोदी का छवि निर्माण करें.
कितना तेज़ रेस्पॉन्स है! कितनी छटपटाहट है छवि दुरुस्त करने की! लोग जब मर रहे थे, तब देश का गृह मंत्री ऑक्सीजन की कमी को हवाई बताता रहा था. मोदी दाढ़ी बढ़ाकर चुनावी भाषण दे रहे थे. हरिद्वार में लाखों लोगों की भीड़ जुटाने का तमाशा चल रहा था. फ़रवरी में पिछले साल बने अस्थाई अस्पतालों को मोदी सरकार ने उखड़वा दिया था.
जानकार लगातार चेतावनी दे रहे थे कि दूसरी लहर आएगी. लेकिन ये आदमी बंगाल में चुनावी लहर तलाश रहा था. भारतीय मीडिया अब भी नतमस्तक है. सीधे नाम लेने की हिम्मत नहीं है. मोदी के बदले ‘सिस्टम’ का नाम लिया जा रहा है. सिस्टम ठीक करने का काम क्या हॉकी टीम के खिलाड़ियों का है?
दैनिक भास्कर ने एक दिन ख़बर छापी कि देश में मौत का आंकड़ा सरकारी आंकड़े से पांच गुना ज़्यादा है. ख़बर ख़ूब वायरल हुई. लेकिन भास्कर को ये बात कहने के लिए न्यूयॉर्क टाइम्स का सहारा लेना पड़ा. सीधे कहने की हिम्मत नहीं हुई. सारे पत्रकार जानते हैं कि मौत की दर क्या है और दिखाया-छापा क्या जा रहा है.
यूपी में भाजपा के विधायक की मौत हो गई. ट्विटर पर मोदी जिन ट्रोल्स को फॉलो करते हैं, उनमें से कई गुज़र गए. इन ट्रोल्स को मोदी में मसीहा दिखता था. वे दिन-रात मोदी के लिए मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलते रहते थे. इनमें से कई ट्रोल्स को कोविड हुआ तो ट्विटर पर मदद मांगते रहे, लेकिन जवाब नहीं मिला.
सरकार हर दूसरे दिन कह देती है कि हालात क़ाबू में है. सक्रिय ट्रोल्स उसे वायरल करने में जुट जाते हैं. एक बुज़ुर्ग की मौत की झूठी कहानी गढ़कर देश भर में घुमाते रहते हैं, ताकि किसी की लाश पर संघ की झूठी छवि बनाई जा सके. प्रधानमंत्री की दाढ़ी में मौजूद तिनकों को छुपाया जा सके.
गिरीश मालवीय-
वाशिंगटन पोस्ट का यह लेख पढ़कर बतौर भारतीय मैं स्वयं को शर्म से गड़ा हुआ महसूस कर रहा हूँ. इस लेख का शीर्षक है-
Modi’s pandemic choice: Protect his image or protect India. He chose himself
महामारी में मोदी की प्राथमिकता क्या थी: अपनी इमेज को सुरक्षित रखें या भारत की रक्षा करें। मोदी ने अपनी इमेज को चुना.
यह लेख सुमित गांगुली ने लिखा है जो इंडियाना यूनिवर्सिटी में पोलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हैं और जानेमाने लेखक है
इस लेख के कुछ हिस्सों का गूगल से अनुवाद कर थोड़ा एडिट करने का प्रयास किया है, वैसे यह भारत के मुख्य मीडिया की जिम्मेदारी थी कि इस लेख का ढ़ंग सर अनुवाद करता …ओर छापता…. लेकिन !….बहरहाल पढिए वाशिंगटन पोस्ट की क्या राय है मोदी जी के बारे में……..
‘भारत के कोरोना वायरस से उपजे संकट को देखना आश्चर्यजनक है। उत्तरी भारत में, सार्वजनिक पार्कों में शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है क्योंकि श्मशान अपनी क्षमता से अधिक हो गए हैं। लोग घरों के पिछवाड़े में रिश्तेदारों को दफना रहे हैं जला रहे हैं’
‘दुनिया में टीकों के सबसे बड़े उत्पादक होने के बावजूद, भारत ने अपने 1.3 बिलियन लोगों में से 2 प्रतिशत से कम का टीकाकरण किया है। ……एंटीवायरल दवा रेमेडिसविर की कमी है कहाँ से मिल पाएगी इसलिए लोग सोशल मीडिया पर दोस्तों और रिश्तेदारों से भीख मांग रहे हैं। परिवार के सदस्य मरीज के लिए बेड मिल जाने की उम्मीद में एक-दूसरे को कई अस्पतालों में भटक रहे हैं
‘भारत ने जनवरी तक कोरोना की प्रारंभिक लहर को नियंत्रित कर लिया था। तब, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने असावधानी बरतते हुए, आश्चर्यजनक रूप से लापरवाह फैसलों की एक श्रृंखला में, दूसरी लहर को आमंत्रित किया जो अब देश को कुचल रही है।’
‘मोदी की घिनौनी निर्णय लेने की शैली वर्षों से महामारी को जन्म देती है। उनकी सरकार ने पहले कार्यकाल मे भारत की 80 प्रतिशत से अधिक मुद्रा के विमुद्रीकरण और एक बहु-आवश्यक गुड्स ओर सर्विस टैक्स GST का समान रूप से लेकिन गलत तरीके से रोलआउट किया’
‘अब जब पब्लिक पार्क अस्थायी श्मशान बन रहे हैं, मरीज अस्पतालों के बाहर फुटपाथों पर लेटे हुए हैं और एंबुलेंस (उपलब्ध होने पर) में ऑक्सीजन की कमी है, लेकिन तब भी मोदी के सहयोगियों ने अधिक कठोर, यद्यपि परिचित, रणनीति का सहारा लिया है। उनका तर्क है कि सरकार के आलोचक राष्ट्रव्यापी कलह बोना चाहते हैं दिल्ली में बैठी सरकार अब फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया आउटलेट्स पर दबाव डाल रही है कि उनकी आलोचना करने वालों के मुँह बन्द करवाए जाए’
इस लेख को एक बार अवश्य पढिए… आपको भी एक शर्मिंदगी का अहसास होगा. अंधभक्तो को न पढ़ने की सलाह दी जाती है. वो तो पहले से ही बेशर्म हैं.