एक के बाद एक हुई हिन्दू नेताओं की दिनदहाड़े हुई हत्याओं से शर्मसार हुई राजधानी… कट्टर हिंदूवादी नेता और हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रणजीत श्रीवास्तव की राजधानी के हजरतगंज जैसे वीवीआईपी इलाके में दिनदहाड़े हुई हत्या ने योगी राज और उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था को एक बार फिर शर्मसार कर दिया है।
अमिताभ बच्चन के जबरदस्त फैन होने के चलते अपने नाम के आगे बच्चन लिखने वाले रणजीत की जिंदगी की कहानी भी इतनी फिल्मी है कि पुलिस को फिलहाल पता ही नहीं चल पा रहा है कि उनकी हत्या की वजह क्या है। लिहाजा वह अंधेरे में तीर चलाकर हत्या की वजह और हत्यारे ढूंढने में लगी हुई है।
हालांकि हत्या की वजह चाहे कोई भी हो.. भले ही राजनीतिक कारणों से उनकी हत्या हुई हो अथवा निजी कारणों से , लेकिन जिस तरह से यह दुस्साहसिक वारदात अंजाम देकर अपराधी आसानी से आंखों से ओझल हो गए हैं, उसने योगी राज में राजधानी की चाक चौबंद पुलिसिंग की कलई जरूर खोल कर रख दी है।
अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है , जब इसी दुस्साहसिक तरीके से एक और कट्टर हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की हत्या भी यूं ही दिनदहाड़े करने के बाद हत्यारे आसानी से फरार हो गए थे। पुलिस ने हालांकि जल्द ही हत्यारों को दबोच लिया था लेकिन उस वारदात के बाद भी यही सवाल सबके जेहन में मंडराने लगा था कि अगर योगी आदित्यनाथ का खौफ प्रदेश के कोने कोने में इस कदर है कि अपराधी अपनी जान बचाने के लिए खुद ही थाने में सरेंडर कर रहे हैं तो फिर ये कौन लोग हैं, जो योगी की नाक के ही नीचे यानी राजधानी में बेखौफ होकर हत्या करने चले आए हैं।
यही नहीं, सवाल इस पर भी उठ रहे हैं कि दोनों ही वारदातों में आखिर हत्यारे कहीं भी किसी पुलिस चेकिंग में फरार होते समय पकड़े क्यों नहीं जा सके या फिर रास्तों में लगे सीसीटीवी कैमरों के जरिए फरार होते समय किधर को गए हैं, इसका सुराग क्यों नहीं लग सका।
जाहिर है, दोनों ही वारदातों से यह साबित हो गया है कि राजधानी के चप्पे चप्पे पर सीसीटीवी से निगरानी के सरकारी दावे में कोई सच्चाई नहीं है और न ही राजधानी के हर पुलिस पिकेट/ चौकी/ बैरिकेटिंग/ चेक पोस्ट आदि पर पुलिस मुस्तैदी से तैनात है। यदि पुलिस सभी जगहों पर मुस्तैदी से तैनात हो या उसकी गश्त की व्यवस्था हर इलाके में हो और साथ ही चप्पे चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे की निगहबानी हो तो सवाल ही नहीं उठता कि वारदात के पहले या बाद में अपराधियों के आवागमन की पुख्ता जानकारी न जुटाई जा सके।
वारदात होने के बाद पुलिस के हाथ इक्का दुक्का सार्वजनिक जगहों पर लगे या काम कर रहे सीसीटीवी या निजी सीसीटीवी कैमरों से फुटेज लग जाते हैं तो उससे उन्हें हत्यारों की कद काठी या हुलिया मिल जाता है तो कम से कम अंधेरे में तीर मारने से पुलिस बच जाती है। मगर राजधानी में कानून व्यवस्था का जलाल बनाए रखने के लिए इतना ही काफी नहीं है। योगी सरकार को अब अविलंब राजधानी की पुलिस व्यवस्था की हर खामी को दूर करके उसे हर वह तकनीकी सुविधा / वाहन आदि से लैस करना होगा, जो राजधानी में किसी कवच सरीखा सिस्टम प्रदान कर सके।
अव्वल तो बाहर के अपराधी यहां आने में कामयाब न हो सकें और यदि वे किसी तरह भीतर आकर कोई वारदात कर भी दें तो यहां से निकल पाना उनके लिए आसान न हो। अपराधी चाहे बाहरी हो या स्थानीय, अगर यहां व्यवस्था दुरुस्त कर दी जाएगी तो इससे उनमें वारदात करते ही तत्काल धरे जाने या एनकाउंटर में मारे जाने का खौफ बन जाएगा।
यह खौफ यहां बनाना जरूरी भी है ताकि फिर कोई हत्यारा यूं सरेआम राजधानी में आकर इसी बेखौफ अंदाज में दिनदहाड़े किसी की हत्या और वह भी खुद मुख्यमंत्री की नाक के नीचे किसी VVIP इलाके में करके योगी सरकार और उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की जग हंसाई न करवा सके …. वरना फिर चाहे कितने निवेशक सम्मेलन कराएं जाएं या एक्सपो का आयोजन यहां किया जाए, पैसा लगाकर बिजनेस करना तो दूर , पर्यटन के लिए भी यूपी आने से घबराने लगेंगे लोग ….
लेखक अश्विनी कुमार श्रीवास्तव दिल्ली में पत्रकार रहे हैं. इन दिनों वह बतौर उद्यमी लखनऊ में रियल इस्टेट फील्ड में सक्रिय हैं. अश्विनी अपने बेबाक लेखन के लिए जाने जाते हैं.