माई लॉर्ड ने वरिष्ठ पत्रकार को अवमानना में तिहाड़ भेजा पर मीडिया मालिकों के लिए शुभ मुहुर्त का इंतजार!

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 शेखी बघारने और सुर्खियों में रहने की लालसा के कारण कई बार अच्छा खासा आदमी भी जेल की हवा खा लेता है. चेन्नई के एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, प्रकाश स्वामी. ये फिलहाल एक महीने के लिए तिहाड़ जेल की हवा खाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें अवमानना का दोषी पाया है. ये महोदय कभी सहारा समूह के न्यूयॉर्क स्थित प्लाजा होटल को खरीदने की पेशकश कर चुके थे, जिसके कारण उस वक्त सुर्खियों में थे. लेकिन बाद में जब वाकई खरीद प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का काम शुरू किया गया तो ये जनाब मुकर गए. बस, खफा सुप्रीम कोर्ट ने करीब 35 साल से पत्रकारिता में रहे प्रकाश स्वामी को जेल भेज दिया.

इस पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट के गुस्से को शांत करने के लिए और सजा से बचने के लिए कोर्ट रूम में तिरूपति बालाजी की फोटो लेकर गया था और जज के सामने हाथ जोड़कर रोते हुए माफी भी मांगी थी लेकिन न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस नौटंकी पर ध्यान न देते हुए उन्हें जेल भेज दिया. पीठ ने स्पष्ट कहा कि अगर इस पत्रकार को ऐसे ही जाने की अनुमति दे दी गई तो बाकी सभी मामलों में गलत संदेश जाएगा….

सुप्रीम कोर्ट को ‘औकात’ दिखा रहे मीडिया मालिकों के मामले में सुस्ती क्यों है माई लॉर्ड!

कुछ लोग सवाल कर रहे हैं कि पत्रकार को तो सुप्रीम कोर्ट ने एक छोटे से मामले में जेल भेज दिया, लेकिन मीडिया मालिक तो सुप्रीम कोर्ट को कई साल से ‘औकात’ बताते-दिखाते-चिढ़ाते आ रहे हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट लगातार न सिर्फ चुप है बल्कि उन्हें तरह तरह से समय मुहैया कराकर हक की लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों को उत्पीड़ित करने की खुली छूट भी दे रखी है, ऐसा क्यों है?

बात सहारा के होटल खरीद वाले मामले की करें तो जिस पत्रकार को अवमानना का दोषी मानते हुए जेल भेजा गया है उसकी उम्र 64 साल है और वह 34 साल तक संयुक्त राष्ट्र में बतौर संवाददाता काम कर चुका है. न्यूयॉर्क स्थित एमजी कैपिटल होल्डिंग्स के पावर ऑफ अटॉर्नी रखने वाले स्वामी ने सहारा के न्यूयॉर्क में होटल प्लाजा खरीदने की रुचि दिखाई थी. यह पत्रकार सहारा के होटल खरीद मामले में दायर अपने हलफनामा में कही गई बातों पर कायम नहीं रहा. इसी के चलते उसे न्यायालय की नाराजगी झेलनी पड़ी.

सहारा-सेबी विवाद की सुप्रीम कोर्ट में हुई ताजी सुनवाई में प्रकाश स्वामी सिर से ऊपर हाथ जोड़कर कोर्ट में पहुंचे और जेब से तिरूपति बालाजी की तस्वीर निकाल कर बचने की दुआ करने लगे. इस दौरान वे लगातार बुदबुदाते रहे- भगवान, गलती हो गई, बचा लो. तभी कोर्ट ने स्वामी के बारे में पूछा तो उसने तुरंत सिर के ऊपर हाथ जोड़ लिया और खड़ा हो गया. स्वामी ने अपनी दलील में कहा कि उन्होंने अंजाम जाने बिना यारी-दोस्ती में हलफनामा दायर कर दिया था….

बड़ा आदमी बनने के लिए गलत रास्ता चुनने पर जेल भेज दिया लेकिन बड़ा आदमी जो बन चुका है वह लगातार गलत रास्ते पर चल रहा है तो उसका बाल तक बांका नहीं हो पा रहा माई लॉर्ड!

पत्रकार प्रकाश स्वामी ने पहले तो गल्ती मानी, रोया, गिड़गिड़ाया और फिर अपनी दलील में कहा कि उन्होंने अंजाम जाने बिना यारी-दोस्ती में हलफनामा दायर कर दिया था. इस पर जस्टिस दीपक मिश्रा बोले- बड़ा आदमी बनने के लिए गलत रास्ता चुना तो नतीजा भी भुगतो. पीठ में शामिल अन्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायाधीश ए.के. सीकरी थे. मतलब ये कि जज साहब लोग बड़ा आदमी बनने के लिए गलत रास्ता चुनने पर जेल भेज देते हैं लेकिन जो बड़ा आदमी बन चुका है, वह लगातार गलत रास्ते पर चलता रहे तो उसका बाल तक बांका नहीं होता… संदर्भ मजीठिया वेज बोर्ड है और बड़ा आदमी देश के बड़े बड़े अखबारों के मीडिया मालिकों को कहा जा रहा है जो एक साथ चारो खंभे को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं और कर भी रहे हैं क्योंकि वे तथाकथित चौथा खंभ खुद हैं इसलिए खुदा से कम नहीं हैं, सो उनका अपराध क्या अपराध नहीं कहा जाएगा?

उल्लेखनीय है कि न्यायाधीश रंजन गोगोई ही मजीठिया वेज बोर्ड के मामले को भी देख रहे हैं जिसमें देश भर के दर्जनों मीडिया मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट की अवमानना कर रखी है और याचिका लगाने वाले पत्रकारों को उत्पीड़ित कर रहे हैं पर इन मीडिया मालिकों पर सुप्रीम कोर्ट की फिलहाल कृपा दृष्टि बनी हुई है. अवमानना याचिका लगाने वाले सैकड़ों पत्रकार या तो भुखमरी के शिकार हैं या दूर तबादला करके प्रताड़ित किए जा रहे हैं या फिर जबरन नौकरी से निकाले जा रहे हैं. इनकी आह पुकार शायद सुप्रीम कोर्ट के जजों तक नहीं पहुंच रही या फिर मीडिया मालिकों की तगड़ी औकात का असर है जो अवमानना प्रकरण लगातार चींटी की तरह रेंगते हुए चल रहा है और न्याय में देरी करके अन्यायियों को समर्थन दिया जा रहा है.

वो रोता गिड़गिड़ाता रहा और माई लॉर्ड लोग लगातार सख्त बनकर उपदेश देते रहे…

चेन्नई के पत्रकार प्रकाश स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में आगे कहा- ”एमजे होल्डिंग्स मेरी कंपनी नहीं है, मैं तो पत्रकार हूं, 34 साल तक यूएन में रिपोर्टिंग के बाद रिटायर हुआ हूं, कंपनी का मालिक मेरा दोस्त है, उसी ने पावर ऑफ अटॉर्नी देकर मुझे हलफनामा दायर करवा लिया था.”

उनकी इस बात को सुनने के बाद, जस्टिस दीपक मिश्रा बोले- आपने कोर्ट का मजाक बनाने की कोशिश की है, आपके ही हलफनामे पर बेंच बैठी और फिर होटल खरीदने से मना कर दिया, यह कोर्ट की अवमानना है, आपको बख्श नहीं सकते.

जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि आप जुर्माने के 10 करोड़ रुपए जमा कराएं. इस पर स्वामी रो पड़े. कहा- मैं छोटा आदमी हूं, नहीं जानता था कि ऐसा होगा.

तब जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा- आप बड़ा आदमी बनना चाहते थे, इसके लिए गलत रास्ता चुना, अब परिणाम भी भुगतिए.

न्यायालय के आदेश से आहत और कांपते हुए स्वामी ने अपने को निर्दोष बताया और कहा कि वह 10 करोड़ रुपए के बजाए 10 लाख रुपए शीर्ष अदालत में जमा कराने को तैयार हैं. हालांकि पीठ ने उनके अनुरोध को खारिज कर दिया और कहा कि संभवत: यह लालच है जिसके कारण किसी विदेशी कंपनी का पावर ऑफ अटॉर्नी उन्हें मिला. पीठ ने यह भी कहा कि अदालत की अवामनाना को लेकर उन्हें छह महीने की जेल भी हो सकती है.

शुरू में स्वामी ने अपने हलफनामा में कहा था कि कंपनी होटल खरीदना चाहती है. उसके बाद न्यायालय ने सेबी-सहारा रिफंड खाता में 750 करोड़ रुपए जमा करने को कहा था ताकि होटल में खरीदने को लेकर उनकी पात्रता का पता चल सके. होटल का मूल्य 55 करोड़ डॉलर आंका गया है. स्वामी के वकील ने 17 अप्रैल को स्वीकार किया कि 750 करोड़ रुपए जमा नहीं किया जा सका क्योंकि होटल में खरीदने को लेकर सौदे में कुछ कठिनाइयां हैं.

इस पर न्यायालय ने स्वामी का पासपोर्ट जब्त करने का निर्देश दिया. साथ ही उन्हें लागत के रूप में 10 करोड़ रुपए जमा करने और व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में पेश होने को कहा था. असल में सुब्रत राय को 2014 में हिरासत में लिया गया था और 10 हजार करोड़ रुपए की जमानत पर पैरोल पर छोड़ा गया था. सुप्रीम कोर्ट के दबाव के बाद सहारा ग्रुप्स को अपनी कई प्रॉपर्टी बेचनी और नीलाम करनी है और इसी में न्यूयॉर्क स्थित होटल प्लाजा भी है. इस होटल को सहारा ग्रुप ने 2012 में 575 मिलियन डॉलर में खरीदा था.

हे माई लॉर्ड, आपका निर्णय अदभुत रहा, पर उससे बड़े मामले में आप ‘अन्याय’ क्यों कर रहे हैं?

देश भर के वो सभी सैकड़ों पत्रकार सुप्रीम कोर्ट से हाथ जोड़कर अनुरोध कर रहे हैं जिन्होंने मजीठिया वेज बोर्ड मामले में पूरे दमखम के साथ अपने अपने नाम पहचान के साथ सुप्रीम कोर्ट में अपने अपने लालची-स्वार्थी और कानून विरोधी मालिकों के खिलाफ अवमानना याचिका वर्षों से दायर कर रखे हैं कि—-

हे प्रभुओं, हे माई लॉर्डों, तनिक ऐसी ही तेजी मजीठिया मामले में दोषी दिख रहे मीडिया मालिकों के मामले में भी दिखाओ या फिर हम पीडित पत्रकारों को ही हक मांगने का दोषी मानते हुए तिहाड़ जेल भिजवाओ ताकि कम से कम वहां रोटी तो शांति से मिले. कबसे सुनते आ रहे हैं कि समय से न्याय न मिलना भी अन्याय होता है (बकौल ग़ालिब- कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक…) लेकिन यहां तो प्रकरण भी सैकड़ों लोगों को है, पूरे एक स्तंभ का है, जिसे चौथा खंभा कहा जाता है…

हे माई लार्डों, सहारा मामले में पत्रकार के साथ बिलकुल ठीक सुलूक आपने किया… कानून और न्याय का सम्मान ऐसे ही बचेगा… लेकिन दर्जनों मगरमच्छ मीडिया मालिक इससे बड़े अपराध को खुलेआम कर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के मान-सम्मान की खिल्ली उड़ा रहे हैं… तनिक आंखें खोलों प्रभुओं… हम लोगों के देवता आप ही लोग हो… देवता से तनिक कम न हो… लेकिन कभी कभी देवताओं पर भी गुस्सा आने लगता है भक्तों को… अब देर न करो क्योंकि बहुत अंधेर हो चुकी है हम मीडियाकर्मियों के साथ…

मजीठिया वेज बोर्ड प्रकरण असल में इस लोकतंत्र का एक ऐसा आइटम है जिसे पूरा का पूरा एक नए ‘राग दरबारी’ उपन्यास का प्लॉट कह सकते हैं, इस आइटम के जरिए कोई एक खंभा / स्तंभ नहीं बल्कि मुकम्मल पूरा लोकतंत्र नंगा होता जा रहा है… ईश्वर करें, कुछ बचे खुचे चीथड़े पहनाकर लोकतंत्र की इज्जत ढंक रखने में कामयाबी मिल सके ताकि देश की जनता और हम सबका भरोसा इसमें कायम रखने के लिए प्रचुर बहाना मिल सके, बतर्ज ग़ालिब-दिल को खुश रखने को ग़ालिब ये खयाल अच्छा है… फिलहाल एक पुरानी पोस्ट, पिछले साल अगस्त की, यहां शेयर कर रहा हूं… नीचे क्लिक करें…

मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई : न मीडिया मालिक जेल जाएंगे न अफसर, हारे हुए हम होंगे!

भड़ास के संस्थापक और संपादक यशवंत सिंह की रिपोर्ट.

मजीठिया वेज बोर्ड की पिछली कुछ पोस्ट्स के शीर्षक यहां डाले जा रहे हैं ताकि मन करे किसी का तो इसे भी पढ़ ले और पीड़ित सैकड़ों मीडियाकर्मियों के दुख को महसूस कर सके…

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