रंगनाथ सिंह-
अनुसूचित जाति से आने वाले मुक्तेंद्र एक कमरे में पाँच लोगों के परिवार के साथ रहते थे। मुक्तेंद्र 23 साल की उम्र में UPSC पास कर के IRS बन गये हैं। मुक्तेंद्र ने अपनी इच्छाशक्ति और लगन के दम पर अभाव और सामाजिक भेदभाव को परास्त कर दिया लेकिन मेरे ख्याल से मुक्तेंद्र भाग्यशाली भी हैं कि वो ऐसे किसी गैंग की चपेट में नहीं आये जो उन्हें ‘भारत सरकार से युद्धरत’ लड़ाका बनने की राह पर भेज देता!

मुक्तेंद्र की कहानी से मुझे बीएचूय के जमाने के एक साथी याद आ गये जिनके बारे में माना जाता है कि वो प्रतिबन्धित भूमिगत माओवादी संगठन की तरफ से परिसर में भेजे गये थे। उनके निशाने पर सबसे पहले वो बच्चे आए जो गरीब और अभावग्रस्त परिवारों से आते थे। वो उन बच्चों को अपने संगठन के लिए ग्रूम कर रहे थे। उनमें से एक बच्चा अनुसूचित जाति से आता था। उस बच्चे ने एक बार मुझे अपने परिवार की अभावग्रस्तता के बारे में बताया था। उसने यह भी बताया था कि वह MSc तक कितने संघर्ष से पहुँचा है।
जब मुझे पता चला कि कट्टर कॉमरेड उस बच्चे को ग्रूम कर रहे हैं तो मैंने उसे परोक्ष रूप से समझाया कि वह थोड़ा सा फोकस रहा तो एक दिन वह अच्छी नौकरी पाकर अपने परिवार की दशा-दिशा बदल सकता है। पता नहीं, उसने मेरी बात को कितनी तवज्जो दी।
बीएचयू छोड़ने के बाद उस बच्चे से मेरा कोई सम्पर्क नहीं रहा। कथित रेडआर्मी के कथित वैनगार्ड साहब से भी बीएचूय के बाद मेरा वास्ता नहीं रहा लेकिन काफी समय बाद पता चला कि वो सरकारी नौकर हो गये हैं। मुझे पूरा यकीन है कि आज भी वो सरकारी तनख्वाह पर ‘लाल क्रान्ति’ कर रहे होंगे।
यहाँ केवल एक किस्सा लिखा है। ऐसे अनगिनत किस्से अभी लिखे जाने बाकी हैं। संक्षेप में कहें तो अभावग्रस्त या वंचित परिवारों के बच्चोंको उन्हें नकारात्मक रास्ते पर डालने वाले गिरोहों से बचना चाहिए और मुक्तेंद्र जैसों को अपना आदर्श बनाना चाहिए।
(तस्वीर और तथ्य दि प्रिंट पर प्रकाशित नूतन शर्मा की वीडियो स्टोरी से साभार)