Sanjaya Kumar Singh : एक राजनीतिक दल का ब्रांड बन जाना… कुछ दिन पहले खबर आई थी कि भाजपा 10 शिखर के प्रचारकों में है और कर्नाटक चुनावों के कारण प्रचार में वृद्धि के चलते 28 अप्रैल – 4 मई 2018 वाले सप्ताह में यह विज्ञापनों की संख्या के लिहाज से दूसरे स्थान पर रही। इसकी पुष्टि इस तथ्य से भी हुई है कि आरटीआई के तहत मांगी गई एक सूचना में बताया गया है कि मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता में आने से लेकर अब तक अपने कार्यक्रमों के प्रचार के लिए विभिन्न मीडिया मंचों का इस्तेमाल किया और विज्ञापन पर 4,343.26 करोड़ रूपये खर्च किए।
इसमें प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के अलावा आउटडोर प्रचार पर किया गया खर्च शामिल है। इस तरह स्पष्ट है कि भाजपा नाम की पार्टी जो भ्रष्टाचार दूर करने के नाम पर सत्ता में आई थी असल में एक राजनीतिक ब्रांड बन गई है और देश का विकास करने के अपने दावे की जगह विज्ञापन बजट बढ़ा रही है और इसी का नतीजा है कि देर से ट्रेन चलाने का रिकार्ड बनाने वाला रेल मंत्रालय कभी अपने सोलर पैनल और कभी सुरक्षा उपायों के लिए चर्चा में होता है और यात्रियों पर दबाव बनाने के लिए मांगी गई कीमत पर टिकट खरीदने के बावजूद यह लिखकर दबाव बनाता है कि, “आपके किराए का 43 प्रतिशत बोझ देश की आम जनता उठाती है।”
मैं इस दावे का आधार नहीं जानता। मोटे तौर पर मानता हूं कि रेलवे सरकारी है यानी जनता की है। उसका मकसद फायदा कमाना नहीं, जनता की सेवा सुविधा है। पर वह पैसे कमाने में लग गई है। सेवा भूलकर। दूसरी ओर, इस सरकार के सबसे बड़े प्रचारक एक बूसीबसिया हैं जो झूठ-और गलत जानकारी के आधार पर दावे तो करते ही रहे हैं अब धमकाने भी लगे हैं। पार्टी का एकमात्र मकसद चुनाव जीतना है और उसमें नियम-कानून, कायदों, नैतिकता की कहीं कोई परवाह नहीं की जाती। उल्टे एक गरीब देश के चुनाव को बेहद खर्चीला बना दिया गया है। अभी तक यही माना जाता था कि चुनाव में जीतने वाला जनता की अदालत में जीतता है और लोकतंत्र में जनता की अदालत सर्वोपरि है। पर मीडिया को नियंत्रण में करके प्रचार आदि के बल पर चुनाव जीतना असल में जनता को धोखा देना है।
वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर व्यास ने लिखा है, ‘मीडिया की मोदी भक्ति में नंगई और नीचता का एक पैटर्न है!’ एक साथ इतने एक्जिट पोल और उसमें एक से पैटर्न के पीछे खटका ईवीएम मशीन की धांधली का बन रहा है। आप जानते हैं और मैं लिखता रहा हूं कि मैं ईवीएम मशीन से धांधली की बात पर भरोसा नहीं करता हूं। बावजूद इसके मेरी थीसिस है कि मोदी-शाह चुनाव जीतने के लिए वोटों की असेंबली लाइन बना, माइक्रो प्रबंधन में जैसे अपने वोट निकलवाते हैं और पड़वाते हैं तो उसके पीछे उनकी हर सूरत मे चुनाव जीतने की असाधारण धुन है। ये चुनाव जीतने के लिए कुछ भी करेंगे। कर्नाटक में भी सब किया। जीतने की इस कबीलाई भूख में सब कुछ मान्य और स्वीकार! मतदाताओं को यह बात समझनी होगी और इसके साथ ही विकास और भ्रष्टाचार खत्म करने के दावे बेमतलब हो जाते हैं। इसीलिए अब इनपर बात भी नहीं होती।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.
dp singh
May 16, 2018 at 7:05 am
संजय जी एक पत्रकार का धर्म है कि तटस्थ रहकर व्यवस्था के बारे में लिखें बोलेन बताएं.
ये लिंक भी देखिये एक बार: https://timesofindia.indiatimes.com/india/UPA-govt-spent-about-Rs-2048-crore-on-publicity-in-three-years/articleshow/38895769.cms
ये वाला क्या आपको उचित लगता है?
इसका मतलब है कि हज़ारों करोड़ रुपये खर्च करना कोई नयी बात नहीं है. फिर जो आपने लिखा है उसका आशय क्या है? देश में क्या नया हो गया या क्या गलत हो गया?
आप जिस तरह से एक पार्टी विशेष के विरुद्ध लिख रहे हैं वो हमारे चौथे स्तम्भ के लिए धिक्कार वाली बात है.
vinod
May 20, 2018 at 8:01 am
बिलकुल सही