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सुख-दुख

वरिष्ठ पत्रकार नीलााभ मिश्र नहीं रहे

खबर आ रही है नीलाभ मिश्र के गुजर जाने की. आज सुबह साढ़े सात बजे चेन्नई में उनका इंतकाल हो गया. वे लीवर सिरोसिस की बीमारी से पीड़ित थे. उनका चेन्नई के अपोलो अस्पताल में इलाज चल रहा था. उनका वहीं पर आज शाम अंतिम संस्कार किया जाएगा. नीलाभ फिलहाल नेशनल हेरल्ड और नवजीवन अखबारों के एडिटर-इन-चीफ के रूप में कार्यरत थे. उसके पहले वे आउटलुक हिंदी मैग्जीन के संपादक हुआ करते थे.

खबर आ रही है नीलाभ मिश्र के गुजर जाने की. आज सुबह साढ़े सात बजे चेन्नई में उनका इंतकाल हो गया. वे लीवर सिरोसिस की बीमारी से पीड़ित थे. उनका चेन्नई के अपोलो अस्पताल में इलाज चल रहा था. उनका वहीं पर आज शाम अंतिम संस्कार किया जाएगा. नीलाभ फिलहाल नेशनल हेरल्ड और नवजीवन अखबारों के एडिटर-इन-चीफ के रूप में कार्यरत थे. उसके पहले वे आउटलुक हिंदी मैग्जीन के संपादक हुआ करते थे.

Neelabh Mishra passed away this morning at 7.30 am in Apollo Hospital, Chennai. Cremation will take place at 3.30 pm today at Nungambakkam crematorium there.

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अपने गुरु नीलाभ को याद करते हुए पत्रकार भाषा सिंह लिखती हैं-

आप हमेशा दिखाते रहेंगे राह। इस मुश्किल दौर में आपकी सख्त जरूरत थी—नीलाभ जी, ऐसे न जाना था… वह एक जनपक्षधर-धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी थे, जो ताउम्र नफरत और हिंसा की राजनीति के कट्टर विरोधी रहे और इसके लिए बड़ी से बड़ी कीमत भी चुकाने के लिए तैयार रहे। विचारधारा से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। एक सच्चा दोस्त, एक सच्चा गुरू, एक सच्चा खबरनवीस, एक सच्चा योद्धा, एक सच्चा वाम-प्रगतिशील चिंतक-विचारक, एक सच्चा नारीवादी, एक सच्चा प्रेमी, एक सच्चा भोजनभट्ट, एक सच्चा भारतीय, एक सच्चा-खरा इंसान, एक सच्ची-विनम्र आत्मा… अनगिनत छवियां एक दूसरे को पार करती जा रही हैं और नीलाभजी के अलग-अलग अक्स कौंध रहे हैं। उन्हें जानने वालों, उनसे जुड़े लोगों के लिए उनका जाना एक ऐसा दुख है, जो जीवन भर एक अदृश्य झोले की तरह कंधे पर साथ लटका रहेगा। उनकी मौजूदगी एक ऐसे लोकतांत्रिक स्पेस देने वाले अड्डे की गारंटी थी, जहां जाकर आप निर्द्वंद्ध होकर अपनी चिंताएं रख देते थे, खुद को खोल देने का जोखिम उठाने में हिचकिचाते नहीं थे, जमकर बतियाते थे, बहस करते थे। हर बार नीलाभ जी की ज्ञान और अनुभव की गंगा में डुबकी लगाकर हम सब जो उनसे उम्र में छोटे थे, और वे भी जो उनके हम उम्र थे, या बड़े थे, वे सब अपनी झोली में कुछ न कुछ लेकर ही कर लौटते थे। वह हमारे लिए एक चलता फिरता इनसाइकलोपिडिया थे। कहीं कोई चीज अटकती तो लगता बस नीलाभ जी के पास हल होगा, नहीं तो वह हमारे लिए कोई राह बना देंगे, और वह भी पूरे निस्वार्थ भाव से। ज्ञान और मानव गरिमा का अकूत भंडार थे नीलाभी जी। हमारे दौर के वह बेहतरीन-पैनी नजर वाले संपादक थे। खबर की नब्ज वह समझते थे और उससे जुड़े जोखिम से भी वाकिफ रहते थे। वह सच के लिए समर्पित पत्रकार थे। ज्ञान हासिल करने और उसे तमाम लोगों में सम भाव से वितरत करने की अजब ललक उनके आंखों में हमेशा ही दिखाई देती थी। संग्रह करना, अपने पास कुछ छिपाना उनके स्वभाव में था ही नहीं। इंसानियत से लबरेज ऐसे शख्स जो बराबरी और वैमनस्य-भेदभाव मुक्त जीवन में विश्वास ही नहीं करते थे, बल्कि उसे जीते थे। वह एक जनपक्षधर-धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी थे, जो ताउम्र वैमनस्य और हिंसा की राजनीति के कट्टर विरोधी रहे और इसके लिए बड़ी से बड़ी कीमत भी चुकाने के लिए तैयार रहे। विचारधारा से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। भ्रष्ट और दलाल किस्म के पत्रकार शायद इसलिए हमेशा उनसे दूर-दूर भागते रहे। उनके रहन सहन, उनके कपड़ों, उनके खानपान में जो सादगी थी, वह उन्हें अपने गांधीवादी पिता से विरासत में मिली थी। अगर वह कभी अपने पिता और दादा के बिहार के चंपारण आंदोलन में भूमिका का जिक्र करते तो साथ ही यह बताना कभी नहीं भूलते कि उनकी मां पश्चिमी उत्तर प्रदेश की थी और बहुत प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली थीं। वह ऐसे विरले संपादक थे, जिनकी हिंदी-अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर जबर्दस्त पकड़ थी। इसके अलावा भोजपुरी-मैथली में भी उनकी तगड़ी गिरफ्त थी। हर भाषा और बोली को बरतने का सलीका उन्हें क्या खूब आता था। अगर अंग्रेजी बोलते-लिखते तो 100 फीसदी उसी भाषा के नियम-कायदे लागू करते। उनकी हिंदी तो फिर दोआब की पट्टी की गंध से गमकती हुई थी। हिंदी-ऊर्दू-फारसी-संस्कृत सब घुल-मिलकर नीलाभजी के यहां मौजूद थे। वह जी-जान लगाकर हिंदी में ही तमाम शब्दों का तर्जुमा करने की कोशिश करते। नीलाभ जी की बात हो और कबीर न याद आएं, ऐसा संभव नहीं। उनसे चेन्नई में मिलते समय भी मैंने यही कहा, बिन सतगुरु नर रहत भुलाना, खोजत-फ़िरत राह नहीं जाना… नीलाभ का जाना, गुरु का जाना है, कोशिश रहेगी कि गुरु की तमाम सीखों पर अमल कर पाएं हैं। यह उनसे मेरा वादा है। नदियों और सभ्यता के विकास के ज्ञाता नीलाभ जी सदा रहेंगे : चंपारण की गंडक नदी की धार में जिसमें वेग होने पर लोग सोना छानते हैं, सरहदों को बेमानी साबित करने वाली सिंधु नदी में, सोन नदी के दिलफरेब कछार में, कृष्णा नदी के उर्वरक विस्तार में, ब्रहमपुत्र नदी के बहा ले जाने वाले आवेग में और गंगा की अविरल धारा में… मुझे पता है नीलाभ जी जहां भी हैं, अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराते हुए, गर्दन हिलाते हुए, सुन रहे होंगे, कुमार गंधर्व की आवाज में निर्गुण भजन कबीर की बानी…
सुनता है गुरु ज्ञानी
गगन में आवाज हो रही झीनी-झीनी
पहिले आए , पहिले आए
नाद बिंदु से पीछे जमाया पानी, पानी हो जी
सब घट पूरण गुरू रहा है
अलख पुरुष निर्बानी हो जी
गगन में आवाज हो रही झीनी-झीनी…

 नीलाभ के निधन पर कुछ अन्य त्वरित प्रतिक्रियाएं…. फेसबुक के सौजन्य से… यूं है…

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Karmendu Shishir : नीलाभ मिश्र के निधन की बात मन मान नहीं रहा है। लगता है कोई आकर कह दे यह अफवाह है। खबरें अफवाह हो जाती हैं लेकिन मृत्यु नहीं। नीलाभ ने कुछ ज्यादा ही जल्दी कर दी। वे मेरे छोटे भाई के सहपाठी थे और छात्र जीवन से ही जुड़े थे। बाद में हम बहुत अभिन्न बन गये। वे अंग्रेजी साहित्य से आये थे लेकिन हिन्दी पत्रकारिता की राह चल पड़े। मैंने बहुत जोर देकर उनसे कुछ साहित्यिक आलोचनात्मक लेख लिखवाये थे। उनकी मौत की खबर ने अंदर मन को बुरी तरह छिन्न-भिन्न कर दिया है। ऐसी निजी क्षति को हम बिल्कुल तैयार नहीं थे।

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DrPraveen Tiwari : दुखद समाचार नीलाभ मिश्र नहीं रहे.. नीलाभ जी के साथ सैंकड़ों संवाद हुए…विश्वास नहीं होता वे अब हमारे बीच नहीं हैं… मेरी श्रद्धांजलि.. Om Thanvi सर की टाइम लाइन से जानकारी मिली.. उन्हीं के शब्दों में नीलाभ जी का जीवन… सुबह की किरण में आज उजाला नहीं। अलस्सबह मित्रवर अपूर्वानंद ने चेन्नई से सूचित किया कि नीलाभ मिश्र नहीं रहे। वे अपोलो अस्पताल में चिकित्सा के लिए भरती थे। पर कुछ रोज़ से हताशा भरे संकेत मिलने लगे थे। इसके बावजूद सुबह उनके निधन की ख़बर किसी सदमे की तरह ही मिली। नीलाभ कम बोलने वाले पत्रकार थे, सौम्य और सदा मंद मुस्कान से दीप्त। लेकिन उनका काम बहुत बोलता था। जब पत्रकारिता में सरोकार छीजते चले जा रहे थे, नीलाभ ने सरोकार भरी पत्रकारिता की। आउटलुक हिंदी को उन्होंने ढुलमुल शक्ल से उबारते हुए जुझारू तेवर दिया। साहित्य-संस्कृति से भी उनका अनुराग गहरा था, जो कम पत्रकारों में दिखाई देता है। पिछले साल उन्होंने नेशनल हेरल्ड के प्रधान सम्पादक का ज़िम्मा संभाला था। सीमाओं के बावजूद वहाँ भी उन्होंने कई अनुष्ठान अंजाम दिए। उनकी साथी-संगिनी कविता श्रीवास्तव के दुख का अंदाज़ा मैं लगा सकता हूँ। वे नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाली दबंग महिला है। नीलाभ का जाना उन्हें सबसे ज़्यादा तकलीफ़ देगा। पर उनका संघर्ष इससे विचलित न होगा। नीलाभ नहीं होंगे, पर स्मृति की भी अपनी ताक़त होती है।

Ajay Prakash : नीलाभ की पहचान उन जनपक्षधर पत्रकारों में थी जो बिकाउ मीडिया के दौर में जनता के पक्ष में खड़े थे और तमाम जनसंघर्षों में एक एक्टिविस्ट की तरह भी शामिल होते रहे…

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