मेरठ से प्रकाशित अखबार अमर उजाला और जनवाणी को यही नहीं पता कि आईजी जोन का नाम क्या है. जनवाणी अखबार तो वैसे भी डूबने की तरफ बढ़ चला है. इस अखबार की बस नाम मात्र की कापियां ही छपती हैं. पर उन कापियों में भी क्या छप रहा है, यह किसी को नहीं पता होता. एक प्रपंची बिल्डर के इस अखबार का मकसद वैसे भी कभी पत्रकारिता करना नहीं रहा.
यह अखबार मूलत: बिल्डर के जमीन के धंधे को ग्रीस-आयल देने के काम में ही लगा रहता है. पर कम से कम इसमें कंटेंट क्या छप रहा है, इसे तो कायदे से चेक करने के लिए एकाध कायदे के आदमी को रख लेना चाहिए.
अमर उजाला और दैनिक जनवाणी अखबार में काम करने वालों को यही नहीं पता है कि मेरठ का आईजी जोन कौन है. जिन आलोक कुमार को आईजोन बताकर लिखा गया है वह इस समय नोएडा के पुलिस कमिश्नर हैं. मेरठ के आईजी जोन हैं प्रवीण कुमार.
माना कि मेरठ के सरधना वाले रिपोर्टर ने ग़लत लिखकर भेज दिया. पर डेस्क पर बैठे लोग क्या कर रहे थे?
पता चला है कि जो सरधना को जो रिपोर्टर जनवाणी को खबर भेजता है, वही अमर उजाला अखबार को भी भेजता है. इसलिए गलती दोनों जगह पर हुई है. तो सवाल है कि क्या अमर उजाला वाले भी भांग खाकर अखबार निकाल रहे हैं? जनवाणी में तो कम से कम फोटो कैप्शन में आईजी जोन का सही नाम लिखा है. अमर उजाला वालों ने तो फोटो में भी आईजी का नाम आलोक कुमार डाल दिया है.
ज्ञात हो कि मेरठ से निकलने वाला एक अन्य अखबार दैनिक प्रभात में बड़े पैमाने पर छंटनी की गई है. प्रभात अखबार के मालिक सुभारती मेडिकल कालेज और एजुकेशन ट्रस्ट वाले हैं. बताया जा रहा है कि सुभारती ग्रुप का जोश ठंढा पड़ चुका है और अखबार समेटने की तरफ बढ़ रहा है.
देखें जनवाणी अखबार और अमर उजाला अखबार की कटिंग-
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
इन्हें भी पढ़ें-