जहां पर प्रशासन असंवेदनशील हो चुका हो, जहां मौत के बाद भी नग्न शव की तस्वीरों के लिए नुमाईश सजाई जाती हो, जहां इंसानियत से ज्यादा धर्म पर लोग विश्वास करते हो, जहां सांप्रदायिकता राजनीति का एक अहम पहलू बन चुका हो, जहां नराधमों को नादान कहा जाता हो, जहां कारगिल के शहीदों को धर्म के बिल्ले थमाकर बांटने की कोशिश की जाती हो, जहां भैंसों के खो जाने पर इंसान से ज्यादा खाकी संजीदगी दिखाती हो, जहां पत्रकार की मां से बलात्कार का प्रयास किया जाता हो और विफल होने पर जिंदा जला दिया जाता हो, जहां खबरनवीसों को पीट-पीटकर मार दिया जाता हो….उसे उत्तर प्रदेश कहते हैं.
हाल ही में एक और लेखक कहें या फिर चिंतक, हां सामाजिक कार्यकर्ता के साथ साथ एक वरिष्ठ पत्रकार रहे राजीव चतुर्वेदी की मौत पुलिस हिरासत में हो गई. दरअसल माना ये जा रहा है कि पुलिस ने राजीव को इतना प्रताड़ित किया कि राजीव ने दुनिया को अलविदा कह दिया. सपा सरकार में पत्रकारों की हत्या का सिलसिला जारी है. जागेंद्र को जलाकर मार दिया गया, चंदौली के रहने वाले हेमंत को गोली मार दी गई, बरेली जिले के संजय पाठक की हत्या किसी भारी चीज को मारकर कर दी गई. सिर्फ इतनी ही नहीं बल्कि मौतों की फेहरिस्त काफी लंबी है. चित्रकूट और पीलीभीत से भी पत्रकारों पर हमले की खबरें सामने आईं. लेकिन सूबे की सरकार उत्तम प्रदेश का सबूत जुटाने में लगी है. दादरी की घटना के स्याह सच को दबाने में लगी है.
इन सबके इतर शाहजहांपुर के जगेंद्र की मौत पर निगहबानी करने पर एक सपा नेता का ही हाथ होने की खबर आई. जिसके साथ ये कहना गलत नहीं होगा कि पत्रकार नौकरशाहों, नेताओं, प्रशासन के निशाने पर हैं. लेकिन सवाल ये है कि अभिव्यक्ति की आजादी को महज दिखावा मानते हुए खिलाफत की खबरों के कारण तो मौत नहीं बाटी जा रही. हो भी सकता है. खुन्नस निकालने का तरीका शायद इस तरह का अख्तियार किया गया हो. जो पत्रकारों को कर्तव्य से समझौता करो नहीं तो मर जाओ का डर दिखाती हो.
बहरहाल राजीव चतुर्वेदी की मौत के बाद सूबे के मुखिया से सवाल है. दरअसल एक महिला पत्रकार ने बीते कुछ महीनों पहले जब अखिलेश से सवाल किया था कि सपा के शासन काल में महिलाएं सेफ नहीं हैं तो जवाब देते हुए अखिलेश ने कहा कि आप तो सेफ हैं… अजी अखिलेश बाबू कहां सेफ हैं पत्रकार. अब जरा आप मौतों की कुल संख्या का पता लगाकर तय करो कि पत्रकार कितना सेफ हैं. लगातार उनके साथ शासन, प्रशासन मौत का खेल खेल रहे हैं. लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमजोर करने की कोशिशें लगातार जारी हैं. खबरों के दीदार को शौक रखने वालों के जहन में मौत का डर कूट कूट कर भरा जा रहा है. सूबे में कलम या तो कलाम बन रही है या फिर बाहुबलियों के नाम का गुणगान करते हुए धड़ल्ले से लोगों को अंधेरे में रखे हुए है. बहरहाल पत्रकारिता दोनों तरह से मर रही है. फिर तरीका चाहे कोई भी हो. इस बार भी शायद सरकार की ओर से मुआव्जे का कोई चेक आंसुओं को पोंछने के लिए तमाम जीरो लेकर उतर आए. लेकिन न्याय सरकार की तमाम योजनाओं के साथ कहीं खो जाएगा. वरिष्ठ पत्रकार राजीव चतुर्वेदी आपकी हत्या करने वालों को अंकों की गणित के साथ या कहें कीमत के साथ ये यूपी भुलाने को तैयार है. लेकिन आप याद आएंगे जल्द ही. हां तब जब फिर कोई पत्रकार कफन ओढ़ेगा क्योंकि खबर में आंकड़ों के तौर पर जिक्र आपका भी होगा न…
हिमांशु तिवारी ‘आत्मीय’
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