Vijay Shanker Singh : जनसंदेश टाइम्स अख़बार के संपादक और संवाददाता को भुखमरी के चलते मुसहर समुदाय के बच्चों के घास खाने की ख़बर छापने पर कानूनी कार्रवाई की गैर कानूनी धमकी दी गई है। जनसंदेश टाइम्स ने बनारस के पिंडरा तहसील बड़ागांव थानांतर्गत कोइरीपुर गांव में मुसहरों के बच्चों का अंकरी की घास खाते हुए एक समाचार छापा था। अखबार को मिले नोटिस में कहा गया है कि वे खबर का खंडन छापें अन्यथा उन पर कार्यवाही की जाएगी।
Chanchal Bhu : जनाब कलेट्टर साहिब!
बनारस
आपका एक खत, बदर्जे धमकी जो आपने मीडिया के एक ‘ छोटे ‘ से सिपाही को भेजा है, उसे हमने गौर से पढा।आपके खत लिखने का जोश, मुलाजिम का नही, मुख्तार का लगा। बहरहाल इन दिनों जब से सियासित पुरुषार्थ से हट कर ‘अनुदान पर जा बैठी है तब से नौकर जमाल और मालिक कमाल हो गए हैं। 77 के बाद से यह नई परंपरा चली है। इसके पहले हर जिले का कलेट्टर अदब में और अपने हुदूद में रहता था, क्यों कि हर गैर वाजिब हादसे पर सड़क गरम हो जाया करती थी,। राजनीति का मकसद महज काठ की कुर्सी और अल्पकालिक ओहदा नही हुआ करता था, सियासत जन मन की अभिव्यक्ति थी।
बहरहाल यह आपसे शिकायत नही है, कमबख्त सियासत ही लफड़झंडूस हो गई है। ओहदेदारों को ( सांसद और विधायक ) का जेब खर्च बड़े खूबसूरत अंदाज़ में चलकर समाज को चकरघिन्नी का खेल दिखाता है। बोर मत होइए सुन लीजिए। आप निधि बोलते हैं,सांसद निधि, विधायक निधि,। जनता का पैसा है। सरकार के पास जाता है, सरकार सांसद और विधायक को देगी लेकिन सीधे नही, आपके यानी नौकरशाही के मार्फ़त निधि खर्च होता है ‘जनहित’ (?) में। कितना फीसद ? कालीटर साहिब ! जब यह सांसद या विधायक आपके सामने अकड़ कर खरी बात खड़े होकर बोलेगा तो आप ‘जी सर’ बोल कर मुस्कुरायेंगे -नेता जी की एक कमजोर नस। कमिसन आपके पॉलिस हुए बूट के नीचे दबी हुई है जिसे ‘ नेता जी ‘ भी जानते हैं। कल तक यह नही था। (सारे प्रतिनिधि ऐसे नही हैं यह बजि दावे के साथ कह सकता हूँ लेकिन उनका जलवा आज भी अलग है)
बहरहाल विषयांतर हो गया। हम्म आपके खत पर आते हैं। जनसन्देश ने एक खबर दी – बनारस पिंडरा तहसील के तहत एक गांव के कई घर मे तीन दिन से चूल्हा नही जला, उनके बच्चे घास खा रहे हैं। जस्ते की थाली में फोटो भी लगा दी। आपको गुस्सा आ गया। ‘ हम ऊपर (?) क्या जवाब देंगे’? कि प्रधान मंत्री के क्षेत्र से ऐसी खबर?। आप जिले के कस्टोडियन है। तुरत जांच दल भेजा। पिंडरा के उप जिलाधिकारी, तहसीलदार एक कोई जूनियर मजिस्ट्रेट। कलेट्टर साहिब क्या इस जांच दल को आपके गुस्से या मनोविज्ञान की भनक नही होगी? ये आपकी मंशा से वाकिफ नही रहे होंगे? इस जांच दल में कोई गैर नौकर भी था? कोई जन प्रतिनिधि? अंग्रेजों का जमाना याद है, बापू जिनकी तस्वीर के नीचे आप बैठे हैं वो केवल तस्वीर भर नही हैं, भूख की सबसे बड़ी पड़ताल चंपारण में हुई है वह इसी फकीर की देन है। उस जांच दल में अंग्रेजो के साथ भारतीय भी शामिल रहे।
बहरहाल दिलचस्प है आपने अपने खत में जांच दल की रपट भी बता गए कि वह घास नही है बल्कि खेत मे उगने वाली एक घास है जिसे ‘अखरी’ दाल कहते हैं। आपने प्रकाशित खबर का बड़ा हिस्सा ‘तीन दिन से चूल्हा नहीं जला’ की जांच नही कराई क्यों कि अगर यह खबर सच हैतो, आप की सरकार जिसके आप कस्टोडियन हैं, अपराध के दायरे में आ जाते है। ( भूख के खिलाफ कांग्रेस सरकार ने खाद्य सुरक्षा अधिनियम बनाया है, वह जस का तस चल रहा है ) दूसरा – अगर कोई किसी को आत्महत्या के लिए मजबूर करे तो वह भी अपराधी बनता ही कि नही ? सरकार आत्म हत्या के लिए मजबूर कर रही है।
वह पत्रकार भी होम वर्क करके नही गया था बेचारे ने हड़बड़ी में महज घास ही लिख गया।
कलेट्टर साहिब ! आप कहते है वह घास आपके जांच रपट के साथ सुरक्षित है। जिसे आप अखरी कह रहे हैं इसके कई नाम है। आम भाषा मे यह जहर से भी ज्यादा खरनाक जहर है। अंग्रेजी में इस दाल का नाम है – लेथाइरस सेटाइव्स। हिंदी में लतरी, खेसारी वगैरह। इस दाल मे ODAP नामक जहरीला पदार्थ पाया जाता है को इंसान को ‘ न्यूराजिकल डिसऑर्डर ‘ की बीमारी दे देता है और इंसान के पैर की हड्डियां बेकार हो जाती है। 61 से इस दाल पर प्रतिबंध है इधर कुछ दिनों से खाद्य जांच दल और आपूर्ति विभाग ने अरहर के दालकी कमी को देखते हुए, इसे प्रतिबंध से बाहर रखने की सिफारिश किया है लेकिन इसके साथ यह शर्त है कि इस दाल कि जो नई प्रजाति खोजी गयी है उसे। बनारस अभी नई प्रजाति से बाहर है क्यों कि अभी इस खेसर को खेती नही होती यह जदा कदा खुद उपज जाती है, जिसे आपने अपने खत में लिखा है।
कहना यह है कि कलेट्टर साहिब ! खत वापस लीजिये। करोना से लड़िये हम भी आपके साथ हैं। भूखों को भोजन दीजिये आप कस्टोडियन है किसी को हिट और हलाल करने का वक्त नही है, जख्म सहला कर, सुकून बांटें।
भारत गोयल
March 30, 2020 at 5:35 pm
भाई इस लेखनी को थामने वाले हाथों को प्रणाम, इस लेखनी को चलाकर वास्तविकता को उकेरने वाले उस महान विभूति को प्रणाम। आदरणीय बन्धुवर यह समस्या आम हो चली है, कि पत्रकारों का दमन करने के लिए अधिकारी वर्ग ऐसे ही चेतावनी भरे पत्र आजकल प्रेषित करने लगा है। साथ ही जो बड़े बड़े मीडिया हाउस से जुड़े हैं उन पत्रकारों को ही अधिकारी पत्रकार समझते हैं बाकि तो उनके लिए केवल यूं ही चलते फिरते टटपूंजिये हैं। और ऐसे लोगों को अपमानित करने में भी ये अधिकारी गुरेज नहीं करते।