Yashwant Singh : इन पशुओं (जिनमें बूढ़ी गायें भी शामिल हैं) को कत्ल होने के लिए बूचड़खाने की तरफ रवाना करने वाले हमारे इन वर्दीधारी ‘हिंदू’ भाइयों को क्या कभी गाय के माता होने या इन माता के मारे जाने जैसा कोई खयाल परेशान करता होगा? क्या इन्हें अपनी मुट्ठी गर्म करके अपनी माता को काटने के लिए ले जाने की अनुमति देने के दौरान अपने धर्म का कोई डर लगता होगा? क्या माता को मारे जाने की अनुमति देने के नाम पर ये जो संगठित तौर पर पैसे की वसूली कर रहे हैं वह सिर्फ इन्हीं के पास रहता होगा या बड़े अफसरों से लेकर मंत्रियों, नेताओं, पक्ष, प्रतिपक्ष सबके बीच बंटता होगा क्योंकि ऐसे मामलों पर सबकी लंबी चुप्पी का आशय यही होता है कि मुंह बंद रखने के लिए पैसा हर सभी तक पहुंचना चाहिए और पहुंच रहा है.
पशु तस्करी को लेकर यूपी बिहार के कई जिलों के बीच जो तारतम्य होता है, उसके बारे में खुद मेरी नजदीकी जानकारी है. सारे के सारे नेता अफसर पशु तस्करी पर चुप रहते हैं क्योंकि सबको मोटा माल देने के बाद ये गाड़ियां निकलती हैं. पैसे कमाने के लिए हमारे नेताओं अफसरों के बीच कभी कोई मुद्दा नैतिकता जाति धर्म आड़े नहीं आते. हां, सत्ता हथियाने के वास्ते नेताओं को हमको आपको बांट कर वोट बैंक में अलग-अलग पोलराइज करने के लिए हमेशा हिंदु मुस्लिम ठाकुर बाभन गाय सूअर मंडल कमंडल पिछड़ा दलित हिंदी अंग्रेजी उत्तर दक्षिण बिहारी मराठी आदि मसले जुबानी रटे रहते हैं.
एक वीडियो देखिए. किस सुनियोजित तरीके से पुलिस संरक्षण में मवेशी कटने के लिए भेजे जा रहे हैं और पुलिस वाले पैसे लेकर चुपचाप इन गाड़ियों को निकलने दे रहे हैं. कायदे से न्यूज चैनलों को ऐसे वीडियो दिखाकर धर्म के ठेकेदारों को एक्सपोज करना चाहिए लेकिन चैनल वाले भी तो चाहते हैं कि बिना मुद्दे का मुद्दा ही मुख्य मुद्दा बना रहे जिससे मोदी जी के छप्पन इंच के सीने पर कोई दाग सवाल न लग उठ सके. सत्ता के आगे भीगी बिल्ली बने रहने वाले मीडिया वालों का धंधा नेताओं अफसरों से कोई अलग नहीं है. इसलिए सब मिलकर जनता को बांटने वाले मुद्दे उठाते रहते हैं. इस रिपोर्ट व वीडियो को देखिए, फिर फैसला करिए कि आप नेताओं की चाल समझने वाले समझदार किस्म के इंसान हैं या इन नेताओं के झांसे में लगातार आने वाले औसत बुद्धि के निरीह किस्म के चिरकुट प्राणी हैं
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भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.
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