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सुख-दुख

बिलासपुर के पत्रकार गणेश तिवारी का निधन

Neelkanth paratkar-

बिलासपुर नवभारत में वरिष्ठ सहयोगी रहे गणेश तिवारी इतने जल्दी हमें तनहा कर जायेंगे. ये सोचा नहीं था. अभी डेढ साल पहले ही वें सेवा निवृत्त हुए थे. कद काठी से छरहरे और सदा सक्रिय तिवारी जी सेंट्रल डेस्क पर राष्ट्रीय अंतर राष्ट्रीय खबरें बनाते किसी भी मुद्दे पर बहस करने तत्पर रहा करते थे.

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देश की मीडिया से उनका विश्वास उठ चुका था, रात १२ बजे घर पहुंचने के बाद खाना खाकर वें अपने कम्प्युटर पर बीबीसी और सीएनएन सुनते बैठते और उसके विश्लेषण मुझे सुनाते.

बचपन से वामपंथी विचारों के बीच पले बढे,आवारापन से सराबोर गणेश जी को सीतेश द्विवेदी ने नवभारत में न सिर्फ पकड के लाया पत्रकारिता का क ख ग भी सीखाया. उनके किस्से वें खूब सुनाते थे, जिंदगी की बेफिकिरी उन में खूब भरी थी.

बेटा बेंगलूर में इंजीनियरिंग कर नौकरी कर रहा था. उसकी शादी की तैयारियों की रोज बातें बताना,सेवानिवृति के बाद बेंगलोर जाओगे क्या पूछने पर वे बोले थे, वहां सात आठ दिन बाद मन नहीं रमेगा, अपना बिलासपुर अच्छा, जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां?

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अलविदा कामरेड!

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