-जितेन्द्र जायसवाल-
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) : 21 जुलाई 2019 को दिन में पंकज बेक एवं इमरान नामक दो युवकों को एक मामले में आरोपी बनाकर पुछताछ के लिए कोतवाली थाना अंबिकापुर लाया गया। पुख्ता सूत्र एवं चश्मदीद गवाहों के अनुसार साइबर सेल में पंकज व इमरान को दिन से लेकर रात तक पारी बदल-बदलकर पुलिस वालों ने जबरिया अपराध कबूलवाने के लिए इतना मारा कि 21-22 जुलाई 2019 की रात पंकज की मौत हो गई। पुलिस ने इमरान को घायल अवस्था में ही जेल में दाखिल करा दिया।
पुलिसकर्मी निलंबित हुए फिर हर स्तर पर सेटिंग और रसूख के साथ पुलिस महकमें ने अपनी धाक और जिले के तस्कर एवं माफियाओं के माध्यम से मिलकर डॉक्टरी मुलाहिजा, गवाहों को धमकाने से लेकर मजिस्ट्रियल जांच तक को प्रभावित किया। सत्ता के गलियारों से होते हुए विपक्ष के द्वारा विधानसभा में हंगामें के बीच मात्र 5 पुलिसकर्मियों पर अपराध पंजीबद्ध हो पाया। पंरतु एक साल तक बड़े आराम से आरोपी पुलिसकर्मी घूमते-फिरते, थाने में आते-जाते नज़र आये। खुले-आम सोशल मीडिया पर अभियोजन पक्ष को धमकियां देते रहे। लेकिन इनकी गिरफ्तारी नहीं हुई। फर्जी दस्तावेज बनवाकर जमानत ले लिए। अब अपनी वापस बहाली के फिराक में हैं जिससे खुद शक्तिशाली होकर सीधे अपने केस की खुद जांच कर सकें।
इस बीच विभिन्न सम्बंधित घटनाक्रमों के बीच कोरोना महामारी के कारण जब सभी का ध्यान कोविड-19 संक्रमण पर है तो इस बीच विभागीय जांच बैठाकर आनन-फानन में एक दिन पूर्व पीड़िता रानू बेक एवं घटना के सह-पीड़ित इमरान एवं अन्य साक्षी को सूरजपुर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के द्वारा अपने कार्यकाल दिनांक 16.07.2020 को बयान दर्ज कराने बुलाया जाता है। परन्तु वहां पहले से फील्डिंग जमाये उक्त मामले में पांचों आरोपी विनीत दुबे, मनीष यादव, प्रियेश जॉन, लक्ष्मण राम व दीन दयाल सिंह मौजूद होते हैं। पुलिसकर्मियों द्वारा ही अपनी जांच खुद की जाती है। पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु मामले के आरोपी तत्कालीन टीआई विनीत दुबे द्वारा स्वयं प्रश्न-उत्तर डेटा ऑपरेटर को निर्देशित कर लिखवाया जाता है। पीड़ित पक्ष कुछ बोले तो उन्हें डांट-डपटकर और अभियोजन साक्षियों के बयान को काट-छाटकर अपनी इच्छानुसार बयान लिखवाकर भयभीत कर हस्ताक्षर लिया जाता है। जांच अधिकारी पूरे समय अलग अपने चैम्बर में रहते हैं तथा आरोपियों को खुली छूट दे दिए होते हैं कि वे मनमानी बयान दर्ज करा लें। उक्त घटना से क्षुब्ध होकर तत्काल पीड़ित पक्ष पुलिस अधीक्षक सूरजपुर को शिकायत करके पावती प्राप्त करते हैं तथा आईजी सरगुजा रेंज को भी शिकायत कर मामले से अवगत कराते हैं।
अब जबकि घटना को एक वर्ष पूर्ण होने को है, न्याय तो कोसों दूर है, कहीं पर निष्पक्षता तक नजर नहीं आ रही है। सूत्र बताते हैं कि विभागीय जांच में गति लाकर निलंबित पुलिस कर्मियों को बहाल करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है।
इसका मतलब साफ है कि विभागीय जांच नाम मात्र है। जांच और कोई नहीं आरोपी स्वयं कर रहे हैं। निलंबित पुलिस कर्मियों को यह अधिकार किसने दिया और क्यों, यह सवाल बना हुआ है। हराम की कमाई की मोटी रक़म रिश्वत के रूप में बांटे जाने की चर्चा है।
असिस्टेंट प्रोफेसर अकील अहमद के अनुसार किसी भी जांच में दोनो पक्षों को सुनना न्यायिक दृष्टिकोण से आवश्यक एवं लाज़मी है। पुलिस मैनुअल में उल्लेख है कि जांच, अन्वेषण और विचारण तीनो अलग प्रक्रियाएं हैं। जब किसी मामले में आरोपी थ्री स्टार स्तर का अधिकारी हो तो जांच अधिकारी पुलिस अधीक्षक अन्यथा सहायक पुलिस अधीक्षक होगे। पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु जैसे अत्यंत गम्भीर किस्म के आरोप में तो इन्हें और भी सावधानी बरतनी चाहिए।
परन्तु पीड़ित पक्ष के कथन लेते समय जांच अधिकारी के मौजूद ना रहते हुए स्वयं आरोपियों द्वारा किसी न्यायालय में चल रहे विचारण की तरह मुख्य परीक्षा एवं प्रति-परीक्षा किये जाने का जो आरोप लगा है यह निहायत ही चिंताजनक एवं शर्मनाक है। वह महकमा जो हमें सुरक्षा प्रदान करता है उस पर लगने वाले इस तरह के आरोप यदि सही पाए जाते हैं तो इसका अर्थ है कानून का नहीं, क्षेत्र में जंगल राज है। पुलिस विभागीय जांच कर सकती है, न्यायालय की तरह विचारण नहीं कर सकती जिसमें आरोपी सेल्फ-एपीयरेन्स बताकर प्रतिपरीक्षा करें।